सम्पादकीय
मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की दुर्गति की एक बड़ी वजह कमलनाथ बनाम दिग्गी राजा, अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट भी है। हरियाणा कांग्रेस को भी समय रहते इससे सबक लेना चाहिए। आज के परिणामों से पहले हरियाणा के कांग्रेसी और उनके प्रति सहानुभूति रखने वालों का आत्मविश्वास और जोश हाई था, उन्हें यह तय दिख रहा था कि दस साल की मनोहर सरकार के प्रति उपजे नाराजगी का सीधा लाभ कांग्रेस को मिलेगा। खासकर भूपेंद्र हुड्डा कैंप में यह जोश उच्च स्तर पर है, पर अब शायद ऐसा नहीं होगा। कांग्रेस को अभी से यह समझना और तय करना होगा कि आपसी सिर फुटव्वल का असर हरियाणा में सरकार बनने की उनकी किसी भी संभावना को धो सकता है।
हालांकि कांग्रेस को अपनी गलतियों से सबक लेने, सीखने की आदत नहीं है, वरना 2014 के चुनावों में हुई करारी हार के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता ए के एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में नहीं डालती। फिर भी यही कहा जा सकता है कि शायद पार्टी को कुछ अक्ल आए और सबसे पहले तो फौरन संगठन के चुनाव करके, जिला, ब्लॉक हल्का स्तर तक पदाधिकारियों की घोषणा करे।
कांग्रेस को चाहिए कि वह कांग्रेस के अंदर बनी हुड्डा कांग्रेस, शैलजा कांग्रेस, सुरजेवाला कांग्रेस, किरण कांग्रेस जैसी कांग्रेसियों से आजाद कर एक जुट कांग्रेस चुनाव लड़े। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगर मध्यप्रदेश में लगातार 18 वर्षों तक शिवराज सिंह मुख्यमंत्री रहकर सरकार बना सकते हैं तो अगले पांच साल मनोहर सरकार क्यों नहीं रह सकती…?
अरुण भाटिया
सम्पादक