सबके पापों को धोने वाली मां गंगा का पाप कैसे धुलता है?

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. अब तक करोड़ों लोग गंगा में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से अनजाने में किए जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं. गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदी माना जाता है. गंगा स्नान करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि हिंदू धर्म को मानने वाले लोग सबसे अधिक गंगा स्नान को महत्व देते हैं
गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को शारीरिक रूप से शुद्धता, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है. गंगा में स्नान से व्यक्ति को विशेष प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है, लेकिन क्या सभी पाप खत्म हो जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन में अलग-अलग प्रकार के पाप करता है. इनमें से 10 प्रकार के पापों का वर्णन किया गया है जो गंगा स्नान से समाप्त हो सकते हैं. गंगा स्नान से वो पाप खत्म होते हैं जो व्यक्ति अनजाने में करता है. शास्त्रों के अनुसार, इन पापों का प्रायश्चित होता है.
गंगा कैसे पवित्र होती है?
गंगा सबको पवित्र कर देती हैं, लेकिन वो खुद कैसे निर्मल होती हैं. ये एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के जेहन में होता है. इसका जवाब शास्त्रों में दिया गया है.
मां गंगा को हर समय पुण्य चाहिए. उनका काम है लोगों के पापों को धुलना. तो फिर गंगा कैसे प्रसन्न रहती हैं. अगर मां गंगा को मनचाहा व्यवहार ना मिले तो वो कैसे सुखी रहेंगी. गंगा को निर्मल करने के लिए भगवान ने संन्यासियों को भेजा है. संन्यासियों का जीवन कितना महान है ये भगवान खुद बता रहे हैं. उन्होंने कहा है कि गंगा जब पाप धोते-धोते अपवित्र हो जाती है तब तपस्वी, योगी और संन्यासी गंगा में स्नान करते हैं.
इससे गंगा के सभी पाप धूल जाते हैं. वो निर्मल हो जाती है. तुलसीदास भी कहते हैं कि गंगा का हित वो कर सकता है जो सचमुच का संन्यासी है. अगर किसी ने संन्यास को धारण किया है और वो गंगा में डुबकी लगा लेता है तो गंगा पूरी पवित्र हो जाती है. इसलिए सभी संन्यासियों को चाहिए कि वो अपनी महिमा को कम ना होने दें.