महाराष्ट्र की सियासत में क्या तुरुप का इक्का हैं छगन भुजबल? मंत्री बनाने से अजित-फडणवीस को होंगे ये 5 फायदे

महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल एक बड़ा और प्रभावशाली ओबीसी चेहरा हैं. चार दशकों से ज्यादा लंबे राजनीतिक करियर में वे शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी में अलग-अलग भूमिकाओं में सक्रिय रहे हैं. वर्तमान में वे अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के प्रमुख नेता हैं और अब दोबारा मंत्री पद पर लौटे हैं. ऐसे में उनका सरकार में आना, खासकर देवेंद्र फडणवीस के लिए कई रणनीतिक लाभ लेकर आ सकता है. महाराष्ट्र में अगले कुछ महीनों में स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव होने हैं, ऐसे में छगन भुजबल का मंत्री बनना महायुति गठबंधन को कितना और कैसे फायदा पहुंचाएगा ये जानते हैं?
अब ये समझना जरूरी है कि आखिर कई विवादों में रहे छगन भुजबल को सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अपने मंत्रिमंडल में जगह क्यों दी और भुजबल की यह नियुक्ति फडणवीस सरकार और महायुति गठबंधन के लिए कैसे उपयोगी हो सकती है?
1- ओबीसी वोटबैंक को साधने की रणनीति
महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय राज्य की कुल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है और राजनीतिक रूप से भी काफी सक्रिय है. छगन भुजबल न केवल इस समुदाय के सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं, बल्कि उन्होंने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर हाल ही में मराठा नेता मनोज जरांगे के खिलाफ मुखर होकर अपनी स्थिति और मजबूत की है.
भुजबल की वापसी से महायुति को ओबीसी वर्ग का समर्थन मिल सकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र जैसे इलाकों में. ओबीसी फ्रंट के जरिए उन्होंने राज्य के ओबीसी नेताओं को एकजुट करने की जो कोशिश की है, उसका सीधा फायदा बीजेपी और महायुति को मिल सकता है.
2- क्षेत्रीय पकड़ से स्थानीय चुनावों में लाभ
नाशिक, मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र और मुंबई जैसे क्षेत्रों में भुजबल की मजबूत पकड़ रही है. उनके मंत्री बनने से इन क्षेत्रों में महायुति की स्थिति मजबूत हो सकती है. नाशिक महानगरपालिका, औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर), मालेगांव जैसे संवेदनशील नगर निकायों में चुनावी समीकरण बदल सकते हैं. स्थानीय नेताओं को भुजबल के राजनीतिक अनुभव और जमीनी नेटवर्क का सहारा मिलेगा.
3- राजनीतिक संतुलन और अनुभव का लाभ
छगन भुजबल राज्य की लगभग हर सरकार में मंत्री या उप मुख्यमंत्री रहे हैं. वे एक अनुभवी प्रशासक भी माने जाते हैं. उनके अनुभव का फायदा देवेंद्र फडणवीस को प्रशासनिक स्तर पर निर्णयों में मिल सकता है. वे विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी में अंदरूनी समीकरण को अच्छी तरह जानते हैं, जिससे रणनीतिक बढ़त मिल सकती है.
4- अजित पवार और बीजेपी के रिश्तों में मजबूती
छगन भुजबल की वफादारी वर्तमान में अजित पवार के साथ है और उनका मंत्री बनना यह दर्शाता है कि एनसीपी (अजित गुट) और बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच गठबंधन स्थायी और मजबूत हो रहा है. इससे सरकार की स्थिरता को लेकर जो शंकाएं थीं, वे कम हो सकती हैं. महायुति की चुनावी एकता को भी बल मिलेगा.
5- विपक्ष को घेरने में मदद
भुजबल की राजनीति में सधी हुई भाषा, रणनीतिक आक्रामकता और सामाजिक मुद्दों पर पकड़ विपक्षी दलों के लिए चुनौती बन सकती है. खासकर जब ओबीसी बनाम मराठा आरक्षण का मुद्दा उभरता है, तब भुजबल सरकार के पक्ष में जनमत बनाने का काम कर सकते हैं.
कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के ओबीसी नेताओं में भ्रम और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. छगन भुजबल का मंत्री बनना न केवल एक राजनीतिक वापसी है, बल्कि महायुति की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा भी है. इससे न केवल देवेंद्र फडणवीस सरकार को प्रशासनिक मजबूती मिलेगी, बल्कि आगामी नगर निकाय, महानगरपालिका और जिला परिषद चुनावों में महायुति को ओबीसी और क्षेत्रीय समर्थन के रूप में बड़ा फायदा हो सकता है. यदि भुजबल अपने प्रभाव का सही उपयोग करते हैं, तो वे भाजपा और एनसीपी-अजित पवार के लिए “गेमचेंजर” की भूमिका निभा सकते हैं.