भोपाल में महात्मा गांधी की यात्रा: नवाब ने क्यों रखी थी इसे सीक्रेट?

2 अक्टूबर को पूरे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 156वीं जयंती मनाई जा रही है. देशभर में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित कर उनके जीवन मूल्यों, सत्य, अहिंसा और स्वदेशी के संदेश को याद किया जा रहा है. गांधी जी का जीवन संघर्ष और यात्राओं से भरा हुआ है. उन्होंने भारत के कोने-कोने का भ्रमण किया और लोगों को जागरूक किया. इन्हीं यात्राओं में से एक महत्वपूर्ण पड़ाव मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी रहा.
2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में महात्मा गांधी का जन्म हुआ था. उन्होंने न केवल भारत को आज़ादी दिलाने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह का मार्ग चुना, बल्कि विश्व को भी यह रास्ता दिखाया कि बिना हिंसा और द्वेष के भी बड़े परिवर्तन लाए जा सकते हैं. महात्मा गांधी कुल दो बार भोपाल आए थे और दोनों यात्राओं ने शहर के इतिहास में एक स्थायी छाप छोड़ी.
- पहली यात्रा (1929): गांधी जी 8 सितंबर 1929 को भोपाल पहुंचे और 10 सितंबर तक यहीं रहे.
- दूसरी यात्रा (1933): गांधी जी पुनः भोपाल आए और यहां कुछ समय व्यतीत किया. (इन दोनों यात्राओं से जुड़े स्थल आज भी बापू की स्मृतियों को संजोए हुए हैं.)
गांधी जी की भोपाल यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण स्थल था राहत मंजिल, जो उस समय नवाब भोपाल के अहमदाबाद पैलेस के समीप स्थित एक भव्य इमारत थी. 1929 की यात्रा के दौरान बापू यहीं ठहरे थे. खास बात यह रही कि पूरी इमारत को खादी से सजाया गया था. खादी गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक थी, और इसका संदेश ही था विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और देशी उत्पादों को अपनाना.
9 सितंबर 1929 को राहत मंजिल परिसर में प्रार्थना सभा आयोजित की गई. इसमें महात्मा गांधी के साथ कस्तूरबा गांधी (बा) और उनकी अनुयायी मीराबेन भी मौजूद थीं. इस सभा में भोपाल के नवाब परिवार सहित कई गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया. गांधी जी भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां के विशेष आमंत्रण पर आए थे. हालांकि नवाब की इच्छा थी कि उनकी यात्रा अधिक प्रचारित न हो, ताकि भीड़भाड़ और अव्यवस्था से बचा जा सके. यही कारण था कि यह प्रवास काफी हद तक गोपनीय रखा गया.
भोपाल में गांधी जी ने प्रवास किया
भोपाल स्वातंत्र्य आंदोलन स्मारक समिति के सचिव डॉ. आलोक गुप्ता के अनुसार, गांधी जी के इस प्रवास के दौरान शहर में स्वदेशी और खादी को बड़े स्तर पर अपनाया गया. 10 सितंबर 1929 को गांधी जी की एक बड़ी सार्वजनिक सभा भोपाल के बेनजीर मैदान में आयोजित की गई. इस सभा में हजारों लोग शामिल हुए और विशेष बात यह रही कि अधिकांश लोग खादी के वस्त्र पहनकर पहुंचे थे. राहत मंजिल से लेकर बेनजीर मैदान तक के मार्ग को खादी से बने दरवाजों और सजावट से सजाया गया था. यह दृश्य स्वयं गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन के प्रति सम्मान और जनता की आस्था को दर्शाता था.
इतिहासकारों की मानें तो महात्मा गांधी की भोपाल यात्रा केवल एक ऐतिहासिक घटना भर नहीं थीं, बल्कि उन्होंने शहर की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को गहराई से प्रभावित किया. खादी, स्वदेशी और अहिंसा का जो संदेश उन्होंने दिया, उसकी गूंज आज भी सुनाई देती है. बापू की जयंती पर जब हम उनके आदर्शों को याद करते हैं, तो उनकी भोपाल यात्राओं का यह प्रसंग हमें बताता है कि उनका हर कदम स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत करने और देशवासियों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाने के लिए समर्पित था.