भगवान श्री हरि विष्णु को जगत का पालनहार और संचालनकर्ता कहा जाता है. भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए हैं. उनमें से ही एक मत्स्य अवतार. दरअसल, शास्त्रों में भगवान श्री हरि विष्णु के हर अवतार के पीछे कोई न कोई उद्देशय बताया गया है. मत्स्य अवतार के पीछे भी एक उद्देश्य था और वो था सृष्टि का उद्धार. आज हम आपको श्री हरि के मत्स्य अवतार के बारे में बताएंगे. साथ ही बताएंगे कि कैसे ये अवतार लेकर उन्होंने सृष्टि का उद्धार किया था.
मत्स्य अवतार श्री हरि ने सृष्टि के अंत में लिया था, दरअसल, जब सृष्टि का अंत नजदीक था और कुछ ही समय बाकी था, तब भगवान मत्स्य रूप में अवतरित हुए. उन्होंने सृष्टि के उद्धार के लिए ये अवतार लिया था. कथाओं के अनुसार, सत्यव्रत नाम का एक प्रतापी राजा हुआ करता था. एक दिन वो राजा कृतमाला नदी में नहा रहा था. नहाने के बाद उसने नदी से भगवान सूर्य को देने के लिए अंजुली में जल लिया. उसी जल के साथ उसकी अंजुली में एक छोटी सी मछली आ गई.
मछली पर राजा को आई दया
राजा सत्यव्रत ने उस मछली को दोबारा नदी में छोड़ दिया, लेकिन तभी मछली की आवाज आई. मछली ने कहा कि हे राजन इस नदी में बड़े-बड़े जीव हैं. वो अपने से छोटे जीवों को मारकर खा लेते हैं. कृपया आप मेरे जीवन की रक्षा कीजिए. मछली की ये बात सुनकर राजा को दया आ गई. इसके बाद राजा ने मछली को अपने कमंडल में रखा और महल में ले आया. अगली सुबह राजा उठा तो हैरान रह गया.
मछली बड़ी हो चुकी थी
राजा सत्यव्रत ने देखा कि उसने मछली को जिस कमंडल में रखा था वो उसके लिए छोटा पड़ने लगा था. क्योंकि मछली बड़ी हो चुकी थी. राजा को देखते ही मछली बोली कि हे राजन मैं यहां नहीं रह पा रही हूं. कृपया मेरे रहने के लिए किसी और स्थान की व्यवस्था कीजिए. तब राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर पानी के मटके में डाल दिया. फिर रात भर में मक्षली का आकार उस मटके से भी बड़ा हो गया. वो मटका भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा.
ऐसा करते करते मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसे राजा ने सरोवर में डलवा दिया. कुछ ही वक्त के बाद उसका आकार इतना बड़ा हो गया कि उसको समुंदर में डलवा दिया गया. जब वो मछली समुंदर से भी बड़ी हो गई तो राजा ने विनम्रता से पूछा कि मछली रूप में आप कौन हैं, जिसके आगे ये सागर भी छोटा पड़ गया. तब भगवान श्री हरि ने कहा कि वो दैत्य हयग्रीव के वध के लिए अवतरित हुए हैं.
दैत्य हयग्रीव ने चुराए वेद
भगवान श्री हरि ने कहा कि दैत्य हयग्रीव वेदों की चोरी कर ली है, जिसकी वजह से संसार भर में अज्ञान और अधर्म फैल गया है. भगवान विष्णु ने राजा से कहा कि आज से सात दिन बाद धरती पर प्रलय होगी. उस प्रलय में सारी धरती जल में डूब जाएगी. चारों तरफ केवल पानी होगा. उन्होंने राजा से कहा कि उस समय आपके पास नाव आएगी. उसी में अनाज, औषधि समेत सारी जरूरी चीजें और सप्त ऋषियों को लेकर उनको सवार होना है. भगवान ने राजा से कहा कि वो उसी समय उसे मिलेंगे.
जब धरती पर प्रलय आया
इसके बाद राजा ने भगवान का आदेश मान लिया. सातवें दिन जब धरती पर प्रलय आया और पृथ्वी जल में समाने लगी तब सत्यव्रत को एक नाव दिखी. भगवान के आदेश का पालन करते हुए उसने सप्त ऋषियों को बिठाया. साथ ही अनाज और औषधि समेत सभी चीजें नाव में रखी. सागर के वेग के कारण वो नाव चलने लगी. चारों ओर केवल पानी था. इसी बीच मत्स्य रूप में भगवान ने सत्यव्रत और सप्त ऋषियों को दर्शन दिए.
इसके बाद जब प्रलय शांत हुई तो भगवान ने दैत्य हयग्रीव का वध किया और वेद लेकर बह्मा जी को दे दिए. इस प्रकार से भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेदों की रक्षा की और प्राणियों का कल्याण किया.