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हेड कॉन्स्टेबलों और ड्राइवरों का प्रमोशन क्यों नहीं? HC का प्रमुख सचिव गृह, DGP, पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष से जवाब-तलब

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में तैनात हेड कांस्टेबल ड्राइवरों एवं हेड कांस्टेबल सशस्त्र पुलिस को दरोगा के पद पर पदोन्नति न देने के सम्बन्ध में पुलिस के आलाधिकारियों से जवाब तलब किया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में तैनात हेड कांस्टेबल ड्राइवरों एवं हेड कांस्टेबल सशस्त्र पुलिस को दरोगा के पद पर पदोन्नति न देने के सम्बन्ध में पुलिस के आलाधिकारियों से जवाब तलब किया है।

इलाहाबाद, आगरा, कानपुर नगर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुजफ्फरनगर,  बरेली,  वाराणसी गोरखपुर,  बाँदा,  मिर्जापुर व कई अन्य जिलों में तैनात सैकड़ों मुख्य आरक्षी ड्राइवरों एवं मुख्य आरक्षी सशस्त्र पुलिस ने अलग-अलग ग्रुप वाइज उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर समानता के अधिकार के तहत उप-निरीक्षक ड्राइवर व उपनिरीक्षक सशस्त्र पुलिस के पद पर पदोन्नति देने की मॉग की है। याचीगणों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम का कोर्ट में तर्क था कि सभी याचीगण वर्ष 1984 से वर्ष 1990 के बीच आरक्षी के पद पर पीएसी में भर्ती हुए थे। बाद में याचीगणों को पीएसी से सशस्त्र पुलिस में वर्ष 2000 – 2002 में तबादला कर दिया गया। तत्पश्चात याचीगणों ने ड्राइवर का कोर्स किया एवं याचीगणों को आरक्षी चालक के पद पर पोस्टिंग प्रदान की गयी। सभी याचीगणों को वर्ष 2017-2018 में मुख्य आरक्षी ड्राइवर के पद पर प्रोन्नति प्रदान की गयी।

याचीगणों का कहना था कि उनसे सैकडों जूनियर आरक्षी 1991 बैच तक के उपनिरीक्षक के पद पर सिविल पुलिस में पदोन्नति प्राप्त कर चुकें है जबकि याचीगण 1984 से 1990 बैच तक के आरक्षी है, लेकिन उन्हें उपनिरीक्षक के पद पर पदोन्नति नहीं प्रदान की गयी है, जो कि समानता के अधिकार के विरूद्ध है। उनका कहना था कि मुख्य आरक्षी से उपनिरीक्षक मोटर परिवाहन के पद पर शत-प्रतिशत रिक्तियां अनुपयुक्तों को अस्वीकार करते हुए ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नति द्वारा ऐसे मुख्य आरक्षी परिवाहन में से भरी जायेंगी जिन्होंने भर्ती वर्ष के प्रथम दिवस को तीन वर्ष की सेवाएं पूर्ण कर ली है एवं मुख्य आरक्षी सशस्त्र पुलिस/ सिविल पुलिस से उपनिरीक्षक सशस्त्र पुलिस /सिविल पुलिस के पद पर भर्ती के लिए मुख्य आरक्षी के पद पर तीन वर्ष की सेवायें पूर्ण होनी चाहिए। कहा गया था कि पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर अनुपयुक्तों को छोड़कर की जाने की प्रक्रिया है। याचीगणों की ओर से कहा गया है कि प्रदेश के गृह सचिव लखनऊ द्वारा जारी शासनादेश दिनांक 30 अक्टूबर 2015, 18 अक्टूबर 2016 एवं 12 मार्च 2016 के तहत आरक्षी सशस्त्र पुलिस के कुल स्वीकृत पदों को आरक्षी नागरिक पुलिस के पदो के साथ पुलिस विभाग में आरक्षी पुलिस के पद में समाहित कर दिया गया है एवं आरक्षी सशस्त्र पुलिस एवं आरक्षी नागरिक पुलिस को एक ही संवर्ग (आरक्षी उप्र संवर्ग के रूप में माना जायेगा)।

हाईकोर्ट ने भी सुनील कुमार चौहान व अन्य के केस में कानून की यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी है कि पीएसी, सिविल पुलिस एवं सशस्त्र पुलिस एक ही संवर्ग / कैडर की शाखाएं है एवं सभी को एक ही संवर्ग में माना जायेगा। सभी याचीगण या तो एसपी/ एसएसपी / डीआईजी/आईजी / एडीजी व अन्य पुलिस के आलाधिकारियों की गाड़ी चला रहे है या सशस्त्र पुलिस के मुख्य आरक्षी माननीयों की सुरक्षा में तैनात है। इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने पुलिस विभाग के प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी उप्र, पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष,  डीआईजी स्थापना / कार्मिक तथा एडीजी लॉजिस्टिक उप्र से आठ सप्ताह में जवाब तलब किया है और पूछा है कि याचीगणों को अभी तक उपनिरीक्षक के पद पदोन्नति क्यों नहीं प्रदान की गयी, जबकि याचीगणों से जूनियर बैच के आरक्षीगण सिविल पुलिस में उपनिरीक्षक के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर चुकें है। याचिकाए संजय कुमार सिंह व अन्य, दानवीर सिंह व अन्य तथा गुलाब चन्द्र तिवारी व अन्य ने दाखिल की है।

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