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दिल्ली में जहां हुआ दंगा, वहां मतदान रहा चंगा, जानें मुस्लिम इलाकों का क्या कहता है वोटिंग ट्रेंड

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए सभी 70 सीटों पर मतदान हुआ, जिसमें 699 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो चुकी है. दिल्ली के मतदाताओं का उत्साह पिछली बार के विधानसभा चुनाव की तरह नहीं दिखा. दिल्ली में इस बार 60.44 फीसदी मतदान रहा जबकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में 62.59 फीसदी रहा था. इस तरह दो फीसदी कम वोटिंग हुई है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 1.8 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई है. हालांकि, दिल्ली में दंगा प्रभावित इलाके वाली सीटों पर मतदान ‘चंगा’ रहा है.

दिल्ली की सभी 70 सीटों पर भले ही 60.44 फीसदी वोटिंग रही हो, लेकिन सबसे ज्यादा मतदान नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली जिले में रहा. नार्थ ईस्ट दिल्ली में 66.25 फीसदी वोटिंग हुई तो साउथ-ईस्ट दिल्ली जिले में सबसे कम 56.31 फीसदी मतदान हुआ. दिल्ली में सबसे ज्यादा मतदान मुस्तफाबाद सीट पर रहा, जहां पर 69 फीसदी लोगों ने वोटिंग की जबकि, सबसे कम वोटिंग महरौली सीट पर रही, जहां पर 53 फीसदी मतदान रहा. दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में बंपर वोटिंग हुई है और सभी सीटों पर 60 फीसदी से ज्यादा मतदान रहा.

दिल्ली में जहां हुआ दंगा, वहां वोटिंग रही चंगा

दिल्ली में पांच साल पहले 2020 में दंगा हुआ था, जिसके चपेट में नार्थ ईस्ट की 6 विधानसभा सीटें आईं थीं. दंगों से प्रभावित सीलमपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुरी, करावल नगर, घोंडा और बाबरपुर सीट सीधे तौर पर हुईं थी. इन सभी 6 सीटों पर 60 फीसदी से ज्यादा वोटिंग रही है. मुस्तफाबाद में 69 फीसदी, सीलमपुर में 68.70 फीसदी, गोकुलपुरी में 68.3 फीसदी, बाबरपुर में 66 फीसदी, घोंडा में 61.03 फीसदी और करावल नगर सीट पर 64.44 फीसदी वोटिंग रही. सीमापुरी सीट पर 65.3 फीसदी वोटिंग हुई है, जो दंगे प्रभावित सीट से सटी हुई है.

दिल्ली के जिन टॉप 5 विधानसभा सीटों पर सबसे ज्यादा वोटिंग हुई है, वो सभी दंगा प्रभावित क्षेत्र वाली रही हैं. इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 34 फीसदी से ज्यादा है. मुस्तफाबाद सीट सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में रही, जहां से दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन AIMIM से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां पर मुस्लिम वोटर्स करीब 44 फीसदी हैं और हिंदू वोटर 56 फीसदी हैं. ऐसे ही करावल नगर सीट से कपिल मिश्रा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, उन पर दिल्ली दंगे भड़काने का आरोप लगा था. करावल नगर सीट पर साढ़े 64 फीसदी वोटिंग हुई है.

दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में बंपर वोटिंग का ट्रेंड

दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके वाली सीटों पर बंपर वोटिंग हुई है. मुस्लिम बहुल सीटों में ओखला विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर बाकी के इलाके में औसत 65 फीसदी मतदान रहा है. बुधवार को मुस्लिम बहुल इलाकों में शुरुआत बंपर वोटिंग से हुई. पिछली बार की तरह ही इस बार भी मुस्तफाबाद में वोटिंग बाकी मुस्लिम बहुल इलाकों की तुलना में ज्यादा रहा. पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में कुल 70.55 प्रतिशत और बल्लीमारान विधानसभा क्षेत्र में मतदान 71 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया था. जबकि, इस बार मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में 69 फीसदी और बल्लीमरान में 63.87 फीसदी रहा.

सीलमपुर में 68.7 फीसदी, मटिया महल में 65.10 फीसदी, चांदनी चौक में 55.96 फीसदी, ओखला सीट पर 54.90 फीसदी, किराड़ी में 62.4 फीसदी, सदर बजार 60.40 फीसदी, सीमापुरी में 65.27 फीसदी, गांधी नगर में 61 फीसदी, संगम विहार में 60.80 फीसदी और जंगपुरा में 57.42 फीसदी वोटिंग हुई. ये सभी सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं, जहां पर 25 फीसदी से 50 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं. 2020 के चुनाव में दो सीटें छोड़कर सभी सीटें आम आदमी पार्टी जीतने में सफल रही थी.

मुसलमानों ने क्या बिगाड़ा केजरीवाल का खेल?

दिल्ली के 13 फीसदी मुसलमानों ने 2015 और 2020 के चुनाव में एकमुश्त वोट आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को दिया था. सीएसडीएस के आंकड़े के मुताबिक, 2020 में 83 फीसदी मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था. इसके चलते ही मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर कांग्रेस अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी थी. आम आदमी पार्टी सभी मुस्लिम बहुल सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन इस बार मुस्लिम मतदाताओं में जमकर बिखराव दिखा है.

मुसमलान बीजेपी के जीत जाने के खौफ से बेफिक्र नजर आए और अपने मनपसंद उम्मीदवार को वोट दिया. इतना ही नहीं युवा मतदाता अपने वोटिंग च्वॉइस को लेकर इस बार काफी मुखर नजर आए. ओखला क्षेत्र में मुसलमान AIMIM प्रत्याशी शिफाउर रहमान और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान के बीच बंटता नजर आया. जबकि, कांग्रेस को पूरी तरह इग्नोर कर दिया गया. ओखला के जामिया नगर, शाहीन बाग,बटला हाउस, अबुल फजल एनक्लेव, जाकिर नगर, जोगा बाई जैसे इलाकों के पोलिंग स्टेशनों पर सुबह से शाम तक उत्साह दिखा.

किनके बीच बंटा मुस्लिमों का वोट?

मुस्तफाबाद सीट पर मुस्लिम मतदाता AIMIM, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच बंटा है. AIMIM के ताहिर हुसैन और आम आदमी पार्टी के आदिल खान के बंटा है जबकि कांग्रेस के अली मेंहदी को मुस्लिम वोट समर्थन बहुत ज्यादा नहीं मिल सका. AIMIM के दोनों ही प्रत्याशी-ताहिर हुसैन और शिफाउर रहमान दिल्ली दंगे के आरोप में जेल में बंद है, जिनके प्रति मुस्लिमों की शिंपैथी साफ दिखी. इसके चलते आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गेम बिगाड़ दिया है.

मुस्लिम बहुल वाली मटिया महल, बल्लीमरान, सीलमपुर और बाबरपुर सहित अन्य सीटों पर मुस्लिम वोटर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बंटते नजर आए हैं. मटिया महल में कांग्रेस के हारुन यूसुफ और AAP के इमरान हुसैन के बीच मुस्लिम वोट बराबर से बंटे है तो मटिया महल में आम आदमी पार्टी ने जरूर मुस्लिम वोटों में थोड़ी बढ़त बनाए रखा जबकि सीलमपुर सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के बीच बंटा है.

बाबरपुर में मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में कांग्रेस के साथ खड़ा नजर आया. इसके चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर आम आदमी पार्टी का खेल गड़बड़ा गया है, जिसका लाभ बीजेपी को मिलता दिख रहा है. इसकी वजह यह है कि मुस्लिम वोटर इस बार के चुनाव में एकजुट होकर किसी एक दल को नहीं गया जबकि बीजेपी के पक्ष में मुस्लिम बहुल सीटों पर हिंदू वोटर 70 फीसदी एकजुट रहा. इसके चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर भी बीजेपी कमल खिलाती नजर आ रही है.

मुस्लिम क्यों आम आदमी पार्टी से आए नाराज

दिल्ली के मुस्लिम मतदाता इस बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से नाराज दिखा. मुस्लिम बहुल इलाके में तब्लीगी जमात के मरकज और दिल्ली दंगे के मुद्दे सबसे बड़ा बना रहा.कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से चुनाव प्रचार के दौरान उठाया था. केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व वाला दांव, जिसके चलते किसी भी मुस्लिम बहुल सीट पर प्रचार करने नहीं गए.

कोराना काल में जिस तरह से तब्लीगी जमात को लेकर उनका स्टैंड रहा है, उसे लेकर ही मुस्लिम खास नजर आए हैं. दिल्ली में तब्लीगी जमात से जुड़े हुए मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी है. कोरोना काल में जमातियों पर मुकदमा करना और तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज को सील करने वाले कदम से मुस्लिम समाज के लोग केजरीवाल से काफी नाराज थे, जिसका खामियाजा आम आदमी पार्टी के मुस्लिम कैंडिडेट को उठाना पड़ा है. ऐसे ही दिल्ली दंगे के दौरान केजरीवाल के रुख से भी मुस्लिम नाराज थे. इन दोनों ही सियासी मुद्दे के चलते अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का खेल मुस्लिम बहुल सीटों पर बिगड़ दिया है.

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