दिल्ली

जेएनयू के हॉस्टल से कहां खो गया नजीब? दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई तक फेल, केस बंद लेकिन मां को अब भी इंतजार

नजीब अहमद, जेएनयू का एक ऐसा छात्र जिसकी तलाश दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई तक ने अब बंद कर दी है. लेकिन उसकी मां की आंखें अब भी अपने बेटे की राह देख रही है. नजीब अहमद अचानक जेएनयू हॉस्टल से कहां गायब हो गया इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए सालों से जांच की जा रही. कई कड़ियां जोड़ कर गुत्थी सुलझाने की कोशिश की गई. लेकिन नजीब कहां गायब हो गया इसकी गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी.

दरअसल, दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को सीबीआई को जेएनयू के छात्र नजीब अहमद के लापता मामले को बंद करने की अनुमति दे दी है. अदालत ने सोमवार को सीबीआई को अहमद का मामला बंद करने की अनुमति देते हुए कहा कि एजेंसी के पास “सभी विकल्प समाप्त हो गए हैं”.

कोर्ट ने CBI को दी जांच बंद करने की इजाजत

जेएनयू का छात्र नजीब अहमद साल 2016 में लापता हुआ था. नजीब के लापता होने के बाद उसके लिए समय-समय पर छात्रों ने कई बार आंदोलन भी किया. पहले नजीब को ढूंढने का मामला दिल्ली पुलिस के हाथ में था, लेकिन फिर यह सीबीआई को सौंप दिया गया, लेकिन इतने साल लगातार इस केस पर मेहनत करने के बाद भी सीबीआई अब इस नतीजे पर पहुंची है कि उसने अपनी आखिरी रिपोर्ट जमा करने के बाद कोर्ट से इस केस को बंद करने की इजाजत मांगी है. सोमवार को सीबीआई को यह इजाजत मिल भी गई है.

क्या बंद हो जाएगा नजीब का केस?

कोर्ट ने जहां एक तरफ सीबीआई को नजीब की गुमशुदगी मामले को बंद करने की इजाजत दे दी है. वहीं, दूसरी तरफ कोर्ट ने एक ऐसी बात भी कही है, जिससे इस सवाल का जवाब मिलता है कि पूरी तरह से इस मामले पर जांच बंद नहीं होगी.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, यह अदालत खेद व्यक्त करती है कि वर्तमान मामले की कार्यवाही इस क्लोजर रिपोर्ट के साथ समाप्त हो गई है. हालांकि, एजेंसी की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया है. इसी के साथ अदालत ने सीबीआई को नजीब अहमद की गुमशुदगी के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी हासिल होने पर जांच फिर से शुरू करने और अदालत को सूचित करने की आजादी दी है.

इसका मतलब है कि अगर एक बार फिर से सीबीआई के हाथ ऐसे कोई सबूत लगते हैं, जिससे नजीब का सुराग मिल सकता है तो सीबीआई दोबारा जांच शुरू कर सकती है. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्योति माहेश्वरी ने भी पूरी उम्मीद जताई कि नजीब का जल्द ही पता लगा लिया जाएगा.

कब हुआ था लापता?

नजीब अहमद जेएनयू का M.Sc Biotechnology का फर्स्ट ईयर का छात्र था. कथित तौर पर नजीब अहमद की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े कुछ छात्रों के साथ झड़प हो गई थी. इसी के बाद जेएनयू के माही-मांडवी हॉस्टल से वो लापता हो गया था. उसके 15 अक्टूबर साल 2016 में अचानक गायब हो जाने के बाद से ही पूरे दिल्ली में यह केस सुर्खियों में रहा. समय-समय पर छात्रों ने नजीब को ढूंढने के लिए आंदोलन किए. सीबीआई को मामला सौंपा गया, लेकिन नजीब की तलाश नहीं की जा सकी.

उसकी मां के मुताबिक, वो 13 अक्टूबर 2016 को छुट्टियों के बाद जेएनयू लौटा था. 15-16 अक्टूबर की दरमियानी रात को नजीब ने अपनी मां को फोन कर बताया था कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है. मां फातिमा नफीस ने अपनी एफआईआर में यह भी कहा कि अहमद के रूममेट कासिम ने उन्हें बताया था कि नजीब का झगड़ा हुआ था और वो घायल हो गया था.

सारी बातें जानने के बाद अगले दिन, अपने बेटे से मिलने के लिए फातिमा नफीस उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से दिल्ली पहुंची. उन्होंने नजीब से बात की और उससे अपने हॉस्टल में मिलने के लिए कहा. लेकिन जब वो माही-मांडवी हॉस्टल के कमरा नंबर 106 में पहुंची तो नजीब अहमद का कोई पता नहीं था. उसी दिन से लेकर आज तक मां को अपने बेटे से मिलने का इंतजार है.

जज ने मामले में क्या-क्या कहा?

जज ने सीबीआई को गुमशुदगी की तलाश बंद करने की इजाजत देते हुए कहा, नजीब के लापता होने के दिन हॉस्टल लौटने पर किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी हाथापाई या झड़प का कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चलता हो कि उसकी गुमशुदगी किसी संदिग्ध या जेएनयू के किसी दूसरे व्यक्ति की वजह से हुई थी.

अदालत ने आगे कहा, चर्चा से पता चलता है कि सीबीआई ने पूरी तरह से जांच की है और सभी विकल्पों का इस्तेमाल किया है. उन्होंने यह भी नोट किया कि जब नजीब हॉस्टल के कमरे से बाहर निकला तो उसका सेल फोन और लैपटॉप कमरे में ही पड़ा हुआ था.

इसी के चलते कोर्ट ने कहा, यह साफ है कि जिन संभावित पहलुओं पर जांच की जा सकती थी, उन्हें सीबीआई ने पूरी तरह से कवर किया है, लेकिन नजीब अहमद कहां है इसके बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल सकी है. चर्चा से पता चलता है कि सीबीआई ने पूरी तरह से जांच की है और सभी विकल्पों का इस्तेमाल किया है.

नजीब की मां को लेकर कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने आगे नजीब की मां को लेकर कहा, यह अदालत एक चिंतित मां की हालत को समझती है, जो 2016 से अपने लापता बेटे के बारे में पता लगाने की तलाश में है, लेकिन वर्तमान मामले में जांच एजेंसी, यानी, सीबीआई को जांच के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. सत्य की खोज हर आपराधिक जांच की नींव है, फिर भी ऐसे मामले हैं जहां जांच मशीनरी की लगातार कोशिशों के बावजूद जांच अपने निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाती है.

CBI ने 2018 में बंद कर दी थी जांच

अक्टूबर 2018 में सीबीआई ने इस मामले में अपनी जांच बंद कर दी थी क्योंकि एजेंसी द्वारा जेएनयू में मास्टर प्रथम वर्ष के छात्र अहमद का पता लगाने के प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला. हालांकि, अब सीबीआई को कोर्ट ने भी जांच बंद करने की मंजूरी दे दी है. दिल्ली हाईकोर्ट से अनुमति मिलने के बाद एजेंसी ने मामले में अदालत के सामने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दायर की.

मां को अब भी इंतजार

जहां दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई तक इस केस को बंद कर चुके हैं. उसके बाद भी अभी भी एक इंसान ऐसा भी है जिसको नजीब के मिल जाने की उम्मीद है. वो है उनकी मां. नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस आज भी अपने बेटे के मिल जाने की राह देख रही है. कोर्ट ने सीबीआई को जांच बंद करने की इजाजत दे दी है, यह जानने के बाद नजीब की मां ने कहा, मैं आखिरी सांस तक नजीब का इंतजार करूंगी.

नजीब अहमद की मां नफीस ने कहा, मैं अपने वकीलों से बात करूंगी. लेकिन नजीब के लिए मेरा इंतजार मेरी आखिरी सांस तक जारी रहेगा. मैं हर दिन उसके लिए दुआ करती हूं और मुझे उम्मीद है कि एक दिन मुझे इंसाफ मिलेगा.

इससे पहले भी मां नफीस लगातार अपने बेटे के लिए आवाज उठाती रही हैं. वो अब तक अपने बेटे की निष्पक्ष जांच के लिए कई प्रदर्शनों में शामिल रही हैं.

नफीस के वकील ने पहले कहा था कि यह एक “राजनीतिक मामला” है जिसमें “सीबीआई अपने आकाओं के दबाव के आगे झुक गई है”. मामले की जांच शुरू में दिल्ली पुलिस ने की थी लेकिन बाद में इसे सीबीआई को दे दिया गया था.

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