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रूस युद्ध पर बड़ा सवाल: क्या US-यूरोप की होगी सीधी एंट्री? जानें कैसी रची जा रही साजिश

यूक्रेन-रूस की जंग के विस्तार पर अब मुहर लग चुकी है और ये कोई अनुमान नहीं है, बल्कि जो स्थिति इस समय रूस-यूरोप के बीच बनी है, उसका विश्लेषण है. यूरोपीय देशों का आरोप है कि रूस के ड्रोन और फाइटर प्लेन्स ने यूरोप की सीमा लांघी है, जिसे उकसावे की कार्रवाई माना जा रहा है. इसी आधार पर अमेरिका और NATO की बढ़ी सक्रियता ने सीधे टकराव की आशंका को गहरा दिया है. अब सवाल उठता है कि आखिर कैसे बनी ये विनाशकारी स्थिति, कौन है इसके पीछे दोषी?

दरअसल, पोलैंड के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में दर्ज रूसी ड्रोन की उड़ान और एस्टोनिया की हवाई सीमा में रूसी फाइटर प्लेन की एंट्री ने रूस-यूक्रेन की जंग के विस्तार पर मुहर लगा दी है. पहले सीमा लांघने का विरोध और अब रूस से टकराव के लिए तैनाती शुरू हो चुकी है. यूरोपीय तैनाती की स्थिति ये है कि किसी भी समय रूस के साथ सीधी जंग छिड़ सकती है. ये भी तय हो चुका है कि इस जंग का मैदान अब सिर्फ यूक्रेन या दक्षिणी समुद्री सीमा नहीं होगी बल्कि ये बारूदी तबाही यूरोप से लेकर बाल्टिक सागर तक दिखेगी.

रूस का दावा, हवाई क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया

क्या यूरोप वाकई इस युद्ध के लिए तैयार है, क्या युद्ध में यूरोप को US से मदद मिलेगी और क्या US-यूरोप सीधे टकराव में शामिल होंगे? सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि अब तक की स्थिति में घुसपैठ से युद्ध भड़काने और यूरोप को उसकाने का दोषी रूस माना जा रहा है, लेकिन रूस के एक दावे ने स्थिति पूरी तरह से बदल दी है. रूस ने स्पष्ट किया है कि उसने किसी के भी हवाई क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है. रूस के विमान की घुसपैठ को मनगढ़ंत आरोप बताया है. दावा किया है कि रूस के विमानों ने तटस्थ क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरी है. इस दावे के बाद ही, यूरोप के अरोपों पर सवाल खड़े हो गए.

सवाल ये कि क्या यूरोपीय देश रूस पर दबाव बनाने के लिए आरोप लगा रहे हैं? क्या यूरोप रूस पर आरोप लगाकर उकसावे की कार्रवाई बताना चाहता है और क्या यूरोप उकसावे की भूमिका बनाकर रूस पर हमले करना चाहता है? दरअसल, ये सवाल सिर्फ रूसी ड्रोन और प्लेन की उड़ान पर नहीं हैं बल्कि सवालों का ताल्लुक है, आरोपों के आधार पर युद्ध की तैयारी से.

चौंकाने वाली खबर ये है कि इस समय यूक्रेन को मदद देने वाले यूरोपीय देशों ने खुद युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है. इस तैयारी में अमेरिका भी बराबर का भागीदार है, जिसका प्रमाण है यूरोप के ईस्टर्न प्लैंक से लेकर काला सागर तक अमेरिका की हलचल और पोलैंड को युद्ध का मुहाना बनाने के लिए तैनाती.

अमेरिका ने बॉम्बर की तैनाती यूरोप में की

अमेरिका के B-52 बॉम्बर्स ने यूरोप में एंट्री कर ली है. इस घातक बॉम्बर की तैनाती भी यूरोप में कर दी गई है. यही नहीं काला सागर में अमेरिका ने निगरानी शुरू कर दी है. यही नहीं इस तैनाती कार्यक्रम में ब्रिटेन भी बराबर का सहयोगी बन गया है, जिसका सीधा मतलब है कि अगर टकराव के आधार छद्म हैं, तो इसे बनाने में अमेरिका-ब्रिटेन और यूरोपीय देश बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, जिसका प्रमाण है, अगस्त के अंत में अमेरिका से जारी बयान. जिसमें कहा गया था कि बाल्टिक देशों की सैन्य सहायता में अमेरिका कटौती करेगा और यूरोप को वॉशिंगटन पर निर्भरता कम कर देनी चाहिए, लेकिन अचानक अमेरिका ने ही, यूरोप को सहयोग देकर युद्ध में उतरने के संकेत दे दिए हैं. ये संकेत कितने पुख्ता है? इसे भी जान लीजिए.

NATO बनाम रूस की जंग छिड़ने का सबसे बड़ा संकेत है. अमेरिका का B-52 बॉम्बर, जिसे अचानक चेक गणराज्य के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन में देखा गया, जिसके बाद पूरे यूरोप में हलचल मच गई. अमेरिकी बॉम्बर बिना रुके चेक की सीमा से पोलैंड की सीमा में दाखिल हुआ. लेकिन यहां भी लैंडिंग नहीं हुई बल्कि वो आगे बढ़ गया. B-52 बॉम्बर लिथुआनिया की सीमा में दाखिल हुआ और कुछ देर गश्त करने के बाद इस सीमा को भी लांघ गया. लिथुआनिया से अमेरिकी बॉम्बर लातविया की सीमा में दाखिल हुआ, जहां बिना गश्त किए आगे बढ़ गया और फिर सीमा लांघकर ये बॉम्बर एस्टोनिया के आमान पर पहुंचा, जहां काफी समय तक गश्त करने के बाद वापसी की और लातविया-लिथुआनिया की सीमा को लांघते हुए पोलैंड पहुंचा. यूक्रेन की सीमा से लगे बेस पर उसे तैनात कर दिया गया.

यही हनीं जंग के आसार बढ़ाने के लिए ब्रिटेन भी सक्रिय हुआ, जिसके यूरोफाइटर टाइफून प्लेन बेस से रवाना हुए और इस फाइटर जेट्स के रवाना होते ही ब्रिटेन का वॉयेजर KC-3 रिफ्यूलिंग टैंकर भी पीछे-पीछे रवाना हो गया. दोनों ने एक के बाद एक डेनमार्क की सीमा लांघकर पोलैंड में एंट्री ली और पोलैंड में दोनों की तैनाती वहीं की गई जहां अमेरिका का B-52 बॉम्बर तैनात किया गया है.

UN महासभा में हिस्सा लेंगे कई देश

रूस पर लगे आरोपों के बाद अमेरिकी बॉम्बर और ब्रिटिश फाइटर प्लेन की सीमा पर तैनाती बता रही है कि आरोपों को आधार बनाकर ही युद्ध की तैयारी हो रही है, जिसमें अमेरिका अब भी बड़ी भूमिका में है. इसका प्रमाण है. अमेरिका का जासूसी विमान पोसाइडन P-8 है जो काला सागर में सक्रिय है.

दावे के तहत इस विमान ने तुर्किए के क्षेत्राधिकार वाले बेस से उड़ान भरी थी और ये विमान काला सागर में क्रीमिया की सीमा तक पहुंच गया यानी इस जासूसी विमान ने रूसी तैयारी का जायजा ले लिया है, जो बताता है कि अमेरिका अब भी इस युद्ध में यूरोप को सुरक्षा की गारंटी दे रहा है. रूस की घुसपैठ वाली थ्योरी बनाने के पीछे भी अमेरिका मुख्य भूमिका में है. हालांकि, ये स्थिति के आधार पर एक अनुमान है, लेकिन इस अनुमान को पुख्ता करती है. एक बैठक. जो तय हो चुकी है.

यूरोपीय देशों के नेता UN महासभा में हिस्सा लेने अमेरिका पहुंच रहे हैं. इस बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की भी शामिल होंगे, लेकिन इस बैठक से इतर जेलेंस्की की मुलाकात ट्रंप से भी होने जा रही है, जिसमें युद्ध के विस्तार और अमेरिका से मदद पर चर्चा हो सकती है. आशंका ये भी है कि जिस स्तर पर तैयारी हुई है, उसमें ट्रंप यूरोपीय देशों को NATO के सहयोग से रूस पर हमले की अनुमति दे सकते हैं. ये आशंका प्रबल इसलिए है क्योंकि ट्रंप अब युद्धविराम के प्रयासों से थक चुके हैं, जबकि वो खुद रूस की निगरानी में दिलचस्पी ले रहे हैं.

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