45 साल से एक्टिव-200 गतिविधियों में शामिल… टॉप नक्सली बसवराजू को मारने पर पुलिस ने क्या-क्या बताया?

सुरक्षाबलों को कल बुधवार को तब बहुत बड़ी कामयाबी हासिल हुई जब छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के सीमावर्ती इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई कर माओवादियों के शीर्ष नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत 27 नक्सलियों को ढेर कर दिया. सीपीएम ने इन मौतों की न्यायिक जांच कराने की मांग की है. वहीं यह पहली बार है जब सुरक्षाबलों ने महासचिव स्तर के किसी माओवादी नेता को मार गिराया है.
छत्तीसगढ़ में शीर्ष नेता समेत 27 नक्सलियों के मारे जाने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और सीपीआई (ML) लिबरेशन ने मांग करते हुए कहा कि नक्सली नेता नंबाला केशव राव समेत 27 माओवादियों के मारे जाने की स्वतंत्र न्यायिक जांच की जाए. सीपीआई महासचिव डी राजा ने कहा कि माओवादी नेता को कानूनी रूप से गिरफ्तार करने के बजाय उनकी हत्या करना लोकतांत्रिक मानदंडों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर गंभीर चिंता पैदा करता है. उन्होंने कहा कि सीपीआई छत्तीसगढ़ में कई आदिवासियों के साथ माओवादी नेता की हत्या की कड़ी निंदा करती है.
इन मौतों की न्यायिक जांच होः CPI-CPML
इसी तरह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने भी यही मांग की है. सीपीआई (ML) लिबरेशन ने अपने एक बयान में कहा, “सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कॉमरेड केशव राव और नारायणपुर-बीजापुर में अन्य माओवादी कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की निर्मम हत्या की सीपीआई (ML) कड़ी निंदा करती है. इसकी न्यायिक जांच की जाए.”
पिछले करीब 3 दशक से छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ जारी अभियान में यह पहली बार है जब सुरक्षाबलों ने महासचिव स्तर के किसी नेता को मार गिराया है. बताया जा रहा है कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू 1970 के दशक से ही नक्सल आंदोलन से जुड़ा हुआ था.
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि बसवराजू की लंबे समय से तलाश की जा रही थी. उसे कई नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड भी माना जाता है. इस कामयाबी को लेकर अधिकारियों का कहना था कि एनकाउंटर में बसवराजू के खात्मे से नक्सल आंदोलन की कमर टूटनी तय है. हालांकि इस एनकाउंटर में डीआरजी टीम का एक जवान शहीद हो गया, जबकि कुछ अन्य जवान घायल हो गए.
कब संगठन का महासचिव बना राजू
नारायणपुर एनकाउंटर पर बस्तर के आईजी पी सुंदरराज ने कहा, “नारायणपुर के अबूझमाड़ के जंगल क्षेत्र में हुए एनकाउंटर में नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत कुल 27 नक्सलियों के शव बरामद कर लिए गए हैं. मुठभेड़ स्थल से गोला-बारूद और हथियार भी बरामद किए गए हैं.” उन्होंने बताया कि मुठभेड़ में मारा गया सीपीआई (माओवादी) महासचिव बसवराजू पिछले 40-45 सालों से नक्सली गतिविधियों में एक्टिव था. वह 200 से अधिक नक्सली गतिविधियों में शामिल था.”
नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू साल 2018 के अंतिम महीनों में प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का महासचिव बना था. राजू ने मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति की जगह ली थी, जो उस समय 71 साल का था. गणपति लगातार बीमार रहने और बढ़ती उम्र की वजह से पद से हट गया था.
बीटेक डिग्रीधारक कई हमलों का मास्टरमाइंड
साल 2004 में जब सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (पीपुल्स वार) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के विलय से सीपीआई (माओवादी) का गठन हुआ तब से गणपति ही महासचिव था.
बसवराजू के 2018 में महासचिव बनने के बाद माओवादियों ने बस्तर में अपने हमले तेज कर दिए थे. 2021 में बीजापुर के टेकलगुडेम हमले में सुरक्षाबलों के 22 जवान मारे गए थे. जबकि 2020 में सुकमा के मिनपा में हुए 17 सुरक्षाकर्मी मारे गए. इसी तरह अप्रैल 2019 में दंतेवाड़ा के श्यामगिरि में हुए नक्सली हमले में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी और 4 सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे.
एक करोड़ इनामी बसवराजू के कई उपनाम
अधिकारियों का कहना है, बसवराजू आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव का रहने वाला था. उसने वारंगल के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री हासिल की थी. उसे रहस्यमयी नेता के रूप में गिना जाता था. उसके प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू जैसे कई नाम बताए जाते हैं.
कई नक्सली हमलों के आरोपी बसवराजू कई राज्यों में वांछित था. छत्तीसगढ़ में उस पर एक करोड़ रुपये का इनाम था. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना सहित अन्य राज्यों की सरकारों ने भी उस पर इनाम घोषित कर रखा था.
3 लेयर सुरक्षा में रहता था बसवराजू
वह 1970 के दशक में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता के रूप में नक्सल आंदोलन से जुड़ गया. 1992 में उसे तत्कालीन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वार की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया. तब गणपति इस समिति का महासचिव बनाया गया था. सीपीआई (माओवादी) के महासचिव के बनने के बाद वह लंबे समय तक माओवादियों के केंद्रीय सैन्य आयोग का नेतृत्व भी करता रहा था.
वह खुद कड़ी सुरक्षा घेरे में रहता था. उसके बारे में कहा जाता है कि वह मिलिट्री ट्रेनिंग देने के अलावा विस्फोटकों और बारूदी सुरंगों में विशेषज्ञ था. साथ ही उसकी टीम के कैडर अत्याधुनिक हथियारों से लैस हुआ करते थे. यही नहीं जंगल में उसके चारों ओर सशस्त्र नक्सली कैडरों की 3-स्तरीय लेयर में सुरक्षा रहती थी.