
वक्फ का नया कानून बन गया है. देश में कानून को लागू किए जाने की मोदी सरकार ने अधिसूचना भी जारी कर दी है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने वक्फ कानून के खिलाफ आंदोलन का भी ऐलान कर दिया है, तो बीजेपी यह बताने में जुटी है कि नया कानून कैसे मुसलमानों के हित में है. ऐसे में वक्फ कानून की पहली सियासी परीक्षा बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में होगी, जहां मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में है. ऐसे में देखना है कि बिहार चुनाव में मुस्लिमों का सियासी स्टैंड क्या रहेगा?
बिहार में छह महीने के बाद विधानसभा चुनाव है. इस तरह से वक्फ कानून आने के बाद पहला चुनाव बिहार में ही होना है. वक्फ कानून पर बिहार की सियासत दो धड़ों में बंटी रही है. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के घटक दल नीतीश कुमार की जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (आर) और जीतनराम मांझी की HAM वक्फ कानून के समर्थन में खड़ी है, तो कांग्रेस, आरजेडी, वामपंथी दल और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी विरोध में खड़ी रही है. इस तरह वक्फ कानून पर बिहार में शह-मात का खेल सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच शुरू हो गया है. इसके चलते ही माना जा रहा है कि वक्फ कानून का सियासी इम्पैक्ट बिहार के चुनाव पर पड़ सकता है.
बिहार में कैसी मुस्लिम सियासत?
जातीय सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो सियासी तौर पर काफी अहम माने जाते हैं. राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटें में से करीब 48 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का रोल काफी महत्वपूर्ण है. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 30 सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. सीमांचल के इलाके में खासकर किशनगंज में मुस्लिम वोटर 70 फीसदी से भी ज्यादा है. इस लिहाज से मुस्लिम समुदाय बिहार चुनाव में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.
वक्फ कानून का पड़ेगा इम्पैक्ट
मुस्लिम वोटों की सियासी अहमियत को देखते हुए माना जा रहा है कि वक्फ कानून का बिहार की राजनीति पर अच्छा-खासा प्रभाव पड़ सकता है. वक्फ बिल संसद से पास कराने में अहम रोल नीतीश कुमार की जेडीयू से लेकर चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, जयंत चौधरी की आरएलडी, चिराग पासवान की एलजेपी और जीतनराम मांझी की हम पार्टी का अहम रोल रहा था. मुस्लिम समुदाय का मानना है कि बीजेपी को अगर नीतीश-चिराग-मांझी का साथ न मिला होता तो मोदी सरकार के लिए बिल को पास कराना आसान नहीं था.
विपक्ष दल और मुस्लिम समाज भी मानता है कि बीजेपी अपने संख्याबल के आधार वक्फ बिल पास नहीं करा पाती. नीतीश-नायडू-चिराग अगर चाहते तो संसद में वक्फ बिल को पास होने से रोक सकते थे. ये बीजेपी का साथ नहीं देते तो मोदी सरकार कभी बिल पास नहीं करा पाती. बीजेपी के सहयोगी दलों को अब मुस्लिम वोटों की नाराजगी का खतरा मंडराने लगा है. विपक्ष और मुस्लिम संगठन बताने में जुटे हैं कि मोदी सरकार का मकसद सिर्फ मुसलमानों से नफरत फैलाना और हिंदुत्व की विचारधारा लागू करना है, जिसमें नीतीश-चिराग-मांझी ने बीजेपी की मदद करने का काम किया है. ऐसे में मुस्लिम वोटों के छिटकने का डर नीतीश से लेकर चिराग पासवान तक को सता रहा है.
नीतीश-चिराग को महंगा न पड़ जाए
मुस्लिम वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए लालू प्रसाद यादव से लेकर नीतीश कुमार और चिराग पासवान ही नहीं असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर तक मुस्लिम वोटों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं. पिछले दिनों मुस्लिम वोटों को साधने के लिए रमजान के महीने में इफ्तार पार्टी का आयोजन सहारा लिया ताकि 2025 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सकें. ऐसे में वक्फ कानून का समर्थन करने के चलते चिराग और नीतीश का मुस्लिम समीकरण गड़बड़ा गया है. इसके चलते ही जेडीयू ने अपने मुस्लिम नेताओं को सक्रिय कर दिया है ताकि डैमेज कंट्रोल कर सकें.
मुस्लिम समुदाय ने साफ संकेत दे दिया कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान की पार्टी को 2025 के चुनाव में वोट भी नहीं करेंगे, जिसके चलते दोनों की सियासी टेंशन बढ़ गई है. मुस्लिम वोटों की नाराजगी नीतीश कुमार और चिराग पासवान के लिए महंगी पड़ सकती है क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोट मिलता रहा है. आरजेडी जिस तरह से मुस्लिमों को यह बताने में जुटी है कि नीतीश कुमार के चलते ही वक्फ कानून बन सका है, उसके सियासी मकसद को समझा जा सकता है. हालांकि, बीजेपी के साथ रहने के चलते नीतीश और चिराग के मुस्लिम वोटों को साधने की पहले से ही चुनौती है और वक्फ कानून के चलते मुस्लिमों की नाराजी और भी ज्यादा बढ़ गई है.
विपक्ष को क्या मिलेगा सियासी लाभ
बिहार में मुस्लिम वोट की चाहत में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव दूसरे नेताओं से काफी आगे नजर आ रहे हैं. आरजेडी खुलकर वक्फ कानून के विरोध में खड़ी हुई है और मुस्लिम समुदाय के साथ लालू यादव कदमताल कर रहे हैं. वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ मुस्लिम समुदाय सड़क पर उतरे, तो लालू यादव और तेजस्वी यादव ने भी शिरकत की थी. तेजस्वी यादव ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि वे मुस्लिम संगठनों के साथ हैं. इतना ही नहीं, तेजस्वी ने मुस्लिम समाज का दिल जीतने की इमोशन चाल चली. लालू यादव के सियासी कदम से मुस्लिम समुदाय खुश नजर आ रहा है.
कांग्रेस भी वक्फ कानून के खिलाफ खड़ी है. कांग्रेस ने अहमदाबाद अधिवेशन में भी वक्फ कानून को बीजेपी के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चाल बताई है. इतना ही नहीं, मुस्लिमों के मुद्दे पर खुलकर खड़े होने की वकालत की है. कांग्रेस संसद से सड़क तक वक्फ कानून के खिलाफ मोर्चा खोल रखी है और मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ी हुई नजर आ रही है. वक्फ बिल को लेकर असदुद्दीन ओवैसी पूरी तरह से आक्रामक हैं, तो प्रशांत किशोर भी वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिमों के साथ खड़े नजर आ रहे.
बिहार में क्या करेंगे मुसलमान?
बिहार में 17.7 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. नीतीश कुमार को 2020 के चुनाव से पहले तक मुस्लिमों का वोट मिलता रहा है, लेकिन 2017 में महागठबंधन का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ जाने के बाद मुस्लिमों का जेडीयू से मोहभंग हो गया. इसी तरह चिराग पासवान की पार्टी को भी मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं, लेकिन बीजेपी के पक्ष में जिस तरह से वो खड़े नजर आ रहे हैं, उसके चलते मुस्लिम समीकरण गड़बड़ा सकता है.
हालांकि, 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के मुस्लिम वोटिंग पैटर्न के लिहाज से देखें तो बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि मुस्लिमों का 5 फीसदी वोट ही जेडीयू को मिला है. मुस्लिमों का ज्यादातर वोट कांग्रेस और आरजेडी वाले गठबंधन को मिला है. ऐसे में देखना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों की पहली पसंद कौन सी पार्टी बनती है?