धर्म/अध्यात्म

वट सावित्री व्रत कल, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि से लेकर पारण तक सबकुछ

हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. इसे सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जोड़ा जाता है, जिसमें सावित्री ने अपनी पतिव्रता धर्म और निष्ठा से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह व्रत पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है. कुछ क्षेत्रों में संतान प्राप्ति और परिवार की वृद्धि के लिए भी इस व्रत का पालन किया जाता है. यह व्रत परिवार में सुख, शांति और समृद्धि लाता है. वट वृक्ष (बरगद का पेड़) को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का निवास स्थान माना जाता है, इसलिए इसकी पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है.

वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं स्नान करके सोलह श्रृंगार करती हैं. फिर वे बरगद के पेड़ के नीचे जाकर सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करती हैं. वे पेड़ के तने पर कच्चा सूत या लाल धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं, फल, फूल, मिठाई और भीगे चने आदि अर्पित करती हैं. वट सावित्री व्रत कथा का श्रवण किया जाता है और पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की जाती है.

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी. वहीं, इसका समापन 27 मई को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर होगा. उदयातिथि को देखते हुए वट सावित्री व्रत 26 मई दिन सोमवार को रखा जाएगा. इसी दिन सोमवती अमावस्या का संयोग भी रहेगा.

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

  1. वट सावित्री व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. महिलाएं सोलह श्रृंगार कर सकती हैं.
  2. ‘मम वैधव्य दोष परिहारार्थं, पुत्र-पौत्रादि सकल संतान समृद्धर्थम्, सौभाग्य स्थैर्यसिद्धयर्थं वट सावित्री व्रत करिष्ये’ मंत्र का जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें.
  3. पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात प्रकार के अनाज, फल, फूल, भीगे हुए चने, मिठाई, पूरी, खीर, धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत, सिंदूर, कच्चा सूत या लाल धागा, जल का कलश, वट वृक्ष की जड़ में अर्पित करने के लिए जल और बरगद के पेड़ के नीचे बैठने के लिए एक आसन तैयार करें.
  4. वट वृक्ष (बरगद का पेड़) के नीचे जाएं. सबसे पहले सावित्री-सत्यवान और यमराज की प्रतिमा स्थापित करें (यदि प्रतिमा न हो तो मानसिक रूप से उनका ध्यान करें). वृक्ष पर जल अर्पित करें और कुमकुम, हल्दी, अक्षत आदि चढ़ाएं और धूप-दीप जलाएं. भीगे हुए चने, फल, मिठाई और अन्य नैवेद्य भी अर्पित करें.
  5. वट वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या लाल धागा सात बार लपेटते हुए परिक्रमा करें. हर परिक्रमा के साथ ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ वटवृक्षाय नमः’ मंत्र का जाप करें. यह पति की लंबी आयु और सौभाग्य का प्रतीक है.
  6. वट सावित्री व्रत कथा सुनें या पढ़ें. यह कथा सावित्री और सत्यवान के अटूट प्रेम और भक्ति को दर्शाती है. पति की लंबी आयु, परिवार की सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए प्रार्थना करें.

पारण (व्रत खोलने की विधि)

वट सावित्री व्रत का पारण अगले दिन, ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है. पारण के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा करें. पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें. पारण के लिए व्रत के दौरान सेवन की गई चीजों के अलावा सामान्य सात्विक भोजन किया जा सकता है. पारण से पहले ब्राह्मणों या गरीबों को दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है.

क्या है मान्यता?

वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ को पानी देने से संतान की प्राप्ति होती है. वट सावित्री व्रत की पूजा में बरगद के पेड़ की पत्तियों को बालों में लगाना शुभ माना जाता है. यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते की पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है. इसे पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ मनाना चाहिए.

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