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डबल स्टैंडर्ड की इंतेहा पार कर गए ट्रंप! रूस की गोद में बैठा है यूरोप, मगर टारगेट पर भारत

अमेरिका ने एक बार फिर भारत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए जोरदार झटका दिया है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से अमेरिका जाने वाले सामान पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का आदेश दे दिया है. इससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच जाएगा. यह फैसला 7 अगस्त से लागू हो चुका है, और अतिरिक्त शुल्क 21 दिन बाद शुरू होगा. इस कदम से भारत के कपड़ा, चमड़ा और समुद्री उत्पादों जैसे बड़े निर्यात क्षेत्रों को भारी नुकसान होने की आशंका है. अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे. लेकिन भारत सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह फैसला “बड़ा अफसोसजनक” है.

यूरोप है रूस का सबसे बड़ा खरीदार

अमेरिका और यूरोप एक तरफ तो रूस पर प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ खुद ही वहां से ढेर सारी ऊर्जा खरीद रहे हैं. सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के आंकड़ों के मुताबिक, 2025 में यूरोपीय संघ (EU) रूस से पाइपलाइन गैस खरीदने में 37% हिस्सेदारी के साथ टॉप पर है. इतना ही नहीं, रूस से लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) की खरीद में भी यूरोप का हिस्सा 50% है. ये साफ दिखाता है कि यूक्रेन युद्ध के बावजूद यूरोप रूसी ऊर्जा पर निर्भर है. अब जब उसने कच्चे तेल की खरीद थोड़ी कम की है, जिसमें उसकी हिस्सेदारी सिर्फ 6% है, तो वो भारत जैसे देशों पर उंगली उठाने लगा है. ये रवैया साफ तौर पर दोहरे मापदंडों को दिखाता है.

भारत ने महंगाई को रोका, क्या ये गुनाह है?

भारत ने यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल खरीदने की रफ्तार बढ़ा दी. 2022 तक भारत रूस से बहुत कम तेल लेता था, लेकिन 2025 आते-आते रूस की हिस्सेदारी भारत के कुल तेल आयात में 38% तक पहुंच गई. ये कदम भारत ने सोच-समझकर उठाया, जिसे ‘ऑयल डिफेंस’ रणनीति का नाम दिया गया. ईरान-इजराइल जंग के बाद इस नीति का मकसद था कि वैश्विक बाजार में तेल के दाम चढ़ने पर भारत को महंगाई से बचाया जाए. रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को काबू में रखा और आम लोगों को बड़ी राहत दी. ये सब पूरी तरह कानूनी भी है, क्योंकि रूस पर वेनेजुएला या ईरान जैसे सख्त अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध नहीं हैं. फिर भी, अमेरिका का रवैया दिखाता है कि जब भारत अपने देश के हितों की रक्षा करता है, तो उसे निशाना बनाया जाता है.

चीन को कोई कुछ नहीं कहता

अगर रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा खरीदार कोई है, तो वो है चीन. 2025 में चीन ने रूस से 47% कच्चा तेल और 29% पाइपलाइन गैस खरीदी. इससे साफ है कि चीन रूस के लिए एक बड़ा आर्थिक दोस्त बन चुका है. फिर भी, अमेरिका या पश्चिमी देश चीन पर वैसे टैरिफ नहीं थोपते, जैसे भारत पर लादे गए हैं. इस दोहरे रवैये का एक बड़ा कारण ये है कि भारत अपने हितों की बात खुलकर करता है, और पश्चिमी देशों को ये रवैया पसंद नहीं. जब तक भारत चुपचाप उनकी बात मानता रहे, सब ठीक है. लेकिन जैसे ही भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता है, उसे निशाना बनाया जाता है.

असल चेहरा हुआ बेनकाब

अमेरिका का ये फैसला सिर्फ भारत के खिलाफ आर्थिक हमला नहीं, बल्कि पश्चिमी देशों की कथनी और करनी के फर्क को भी उजागर करता है. एक तरफ यूरोप खुद रूस से ढेर सारी ऊर्जा खरीदता है, दूसरी तरफ भारत को ऐसा न करने की नसीहत देता है. ये तो बेशर्मी की हद है! भारत का ये कदम अपने देश के हितों की रक्षा के लिए है और वैश्विक नियमों के हिसाब से पूरी तरह जायज है. जानकारों का कहना है कि, पश्चिमी देशों को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए, फिर भारत जैसे जिम्मेदार देश पर उंगली उठानी चाहिए.

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