दिल जीत लेगी बहू की ये तस्वीर! कांवड़ में गंगाजल की जगह बैठाई सास… कंधे पर उठाकर शुरू की यात्रा

आपने श्रवण कुमार के बारे में तो सुना ही होगा. माता-पिता का कांधे पर बैठाकर उन्होंने तीर्थ यात्रा करवाई थी. कलयुग में भी कई बेटे ऐसे हैं तो माता-पिता को इसी तरह तीर्थ पर ले जाते हैं. मगर क्या आपने किसी ऐसी बहू के बारे में सुना है जो सास के लिए ‘श्रवण कुमार’ बन जाए? जी हां, इस बार कांवड़ यात्रा में ऐसी ही एक बहू अपनी सास को तीर्थ दर्शन के लिए लेकर निकली है. इस बहू को देख हर कोई बस यही कह रहा है- बहू हो तो ऐसी. पोती भी इस यात्रा में मां का साथ दे रही है.
इस बहू का नाम आरती है, जो कि यूपी के हापुड़ की रहने वाली हैं. उन्होंने सास-बहू के रिश्ते को एक नई मिसाल दी है. आरती ने अपनी बूढ़ी सास को कांवड़ में बिठाकर यह यात्रा शुरू की, जबकि आमतौर पर लोग इस यात्रा में गंगाजल लाते हैं. आरती की इस सेवा भावना की हर जगह तारीफ हो रही है और सोशल मीडिया पर भी यह चर्चा का विषय बन गया है. हर कोई बहू की खूब तारीफ कर रहा है. इसका वीडियो भी वायरल हुआ है.
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
आरती ने पहले अपनी सास को गंगा स्नान कराया और अब उन्हें साथ लेकर हापुड़ लौट रही हैं. इस अनोखे काम की वजह से लोग उन्हें श्रवण कुमार कहकर सम्मान दे रहे हैं. आरती का कहना है कि यह विचार उन्हें भगवान शिव की कृपा से आया. उन्हें लगा कि जैसे वे खुद गंगा स्नान करना चाहती हैं, वैसे ही उनकी सास को भी यह पुण्य मिलना चाहिए. उनकी सास ने शुरुआत में आरती की ताकत पर थोड़ा संदेह किया था, लेकिन अब वे अपनी बहू पर गर्व महसूस कर रही हैं.
जल्द शुरू होने वाला है ये पावन महीना
11 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरू हो रहा है. इस समय पूरे देश में शिव भक्ति का माहौल रहता है. हरिद्वार में हजारों श्रद्धालु गंगा के किनारे पूजा कर गंगाजल इकट्ठा करते हैं. कांवड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि यह आस्था, सेवा और अनुशासन का प्रतीक है. कांवड़ यात्रा के कुछ नियम होते हैं. बिना स्नान किए कोई कांवड़ नहीं उठा सकता. इस दौरान नशा, मांसाहार, सजावटी चीजें, तेल और साबुन का उपयोग नहीं किया जाता. श्रद्धालु पूरे रास्ते शिव मंत्रों का जाप करते हैं और सादगी से यात्रा करते हैं.
कितने प्रकार के कांवड़ होते हैं?
इस यात्रा के कई प्रकार होते हैं, जैसे सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़, दांडी कांवड़ और झूला कांवड़. लोग अपनी श्रद्धा और ताकत के अनुसार इनमें से किसी एक को चुनते हैं. सावन आते ही शिव भक्तों में भक्ति और उत्साह की लहर दौड़ जाती है. आरती और उनकी सास की यह यात्रा सिर्फ धार्मिक आस्था का उदाहरण नहीं, बल्कि रिश्तों की मिठास, सेवा और प्यार की खूबसूरत मिसाल है.