पंजाब

Haryana की एक विधानसभा ऐसी, जहां पिछले 28 साल से नहीं जीता किसी भी पार्टी का उम्मीदवार…

चंडीगढ़: हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनाव में कई रोचक किस्से सामने आ रहे हैं। अब तक हुए चुनावों के आंकड़ें देखें तो कईं प्रकार की हैरान करने वाली जानकारियां भी सामने आती है। इनमें से एक है पुंडरी विधानसभा का चुनावी इतिहास। पुंडरी विधानसभा एक रिजर्व सीट है। यहां के चुनावी परिणाम के आंकड़ें देखें तो पता चलता है कि 1996 से लेकर 2019 तक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस किसी भी दल का प्रत्याशी यहां से जीत हासिल नहीं कर पाया है।

इन लोगों ने की जीत हासिल
1967 में कंवर रामपाल ने काग्रेस के चौधरी ईश्वर सिंह को हराया। 1968 में ईश्वर सिंह ने आजाद चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस प्रत्याशी तारा सिंह को हराकर पुंडरी में निर्दलीय का खाता खोला। 1972 में काग्रेस टिकट पर ईश्वर सिंह ने हरचरण को हराया। 1977 जनता पार्टी के स्वामी अग्निवेश ने कांग्रेस के अनंतराम को हराया।

1982 में कांग्रेस के ईश्वर सिंह ने लोकदल के भाग सिंह को हराया। 1987 में लोकदल के मक्खन सिंह ने कांग्रेस के ईश्वर सिंह की हराया। 1991 में कांग्रेस के ईश्वर सिंह ने मक्खन सिंह को हराया। 1996 में पूर्व मंत्री नरेंद्र शर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार ईश्वर सिंह को हराया 2000 में चौ. तेजबीर सिंह आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते। 2005 में दिनेश कौशिक ने आजाद उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। 2009 में सुल्तान सिंह जडौला आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते, 2014 में दिनेश कौशिक ने आजाद उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। 2019 में रणधीर गोलन आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की।

इस बार यहां से भाजपा ने सतपाल जांबा और कांग्रेस ने सुल्तान जड़ौला को टिकट दिया है, हालांकि इन दोनों का ही क्षेत्र में अच्छा होल्ड है लेकिन इसके बावजूद इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी सतबीर भाना का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। जानकारों की माने तो पुंडरी विधानसभा में रोड समाज का दबदबा है। यहां पर 60 प्रतिशत वोटर रोड बिरादरी से हैं और उसके बाद करीब 17 प्रतिशत वोटर ब्राह्मण समाज से आते हैं। जाट भी यहां पर करीब 7 प्रतिशत हैं और अन्य में ओबीसी एवं एससी वर्ग आता है।

इस सीट पर इस बार कुल 6 प्रत्याशी अकेले रोड समाज से हैं। जिनमें पूर्व विधायक रणधीर सिंह गोलन, पूर्व विधायक सुल्तान जड़ौला, सुनीता बतान, नरेश कुमार फरल, प्रमोद चुहड और सतपाल जांबा शामिल हैं। वहीं जाट समाज से सज्जन सिंह ढुल निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। ब्राह्मण समाज से चुनावी मैदान में नरेश शर्मा, नरेंद्र शर्मा और दिनेश कौशिक हैं।
रोड समाज के ज्यादा उम्मीदवार होने के कारण रोड बिरादरी के वोट बंट सकते हैं जिसका सीधा फायदा जांगडा समाज के निर्दलीय उम्मीदवार सतबीर भाना को पहुंचेगा। बीजेपी और कांग्रेस को इस चुनाव में सतबीर भाना ही टक्कर देते नजर आ रहे हैं।

दूसरी जाति के वोटरों की बात करें तो जाट समाज के वोट ढुल को और पंजाबी समाज के वोट गुरींद्र सिंह हाबड़ी को मिल सकते हैं, लेकिन आबादी कम होने के कारण ये ज्यादा बड़ा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे। उधर ब्राह्मण समाज से भी तीन उम्मीदवार खड़े हैं जिसकी वजह से उनके वोट भी आपस में बंट सकते हैं।

गोलन को करना पड़ रहा एंटी इनकंबेंसी का सामना 2019 में इस सीट से रणधीर सिंह गोलन की जीत हुई थी। यहां पर उनका सामना कांग्रेस के सतबीर भाना से था हालांकि गोलन ने कुल 41008 वोट प्राप्ट कर भाना को 12824 वोटों से हरा दिया था। जीतने पर गोलन ने भाजपा सरकार को समर्थन दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले गोलन ने भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। गोलन इस सीट से विधायक रह चुके हैं लेकिन इस चुनाव में उन्हें एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण इस बार उनकी वापसी मुश्किल लग रही है।

भाजपा नहीं खोल पाई खाता
पुंडरी एक ऐसी सीट है जहां पर आज तक भाजपा जीत हासिल नहीं कर पाई है। हालांकि कांग्रेस ने इस सीट पर चार बार जीत दर्ज की है। इसके साथ ही 1987 में लोकदल के माखन सिंह ने भी इस सीट पर जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने ही गोलन को टक्कर दी थी। हालांकि इस बार गोलन ने भाजपा से सर्मथन इसी उम्मीद में वापस लिया था कि उन्हें कांग्रेस टिकट देगी। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया जिसकी वजह से वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ही मैदान में हैं।

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