जनता ने कांग्रेस को नही हराया, कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस को हराने के लिए दिन-रात एक किए है
चारों राज्यों को मिलाकर भाजपा के पास 4 करोड़ 80 लाख वोट आए हैं और कांग्रेस को 4 करोड़ 90 लाख वोट प्राप्त हुए यानी भाजपा से 10 लाख वोट VOTE ज्यादा लेकिन, कांग्रेसी इन्हें सीटों में तब्दील नही कर पाए
गुस्ताखी माफ़ हरियाणा
पवन कुमार बंसल
_अपने बेटो की राजनीति चमकाने के लिए, ई डी ED और सी बी आई CBI के चंगुल में फंसे कांग्रेसी पार्टी का भट्ठा बैठा रहे है l इनसे छुटकारा पाए बिना पार्टी का कल्याण संभव नहीं।_
हमारे जागरूक पाठक राजीव वत्स के सौजन्य से
जिन लोगों को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मप्र में कांग्रेस की हार हज़म नही हो रही, उन्हें थोड़ा हाजमोला hajmola खा लेना चाहिए और उसके बाद कांग्रेस तथा भाजपा की संस्कृति का अंतर समझ लेना चाहिए।
कांग्रेस एक सांगठनिक इकाई के तौर पर धराशायी हो चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि अपने युवराजों को सेट करने के लिए कांग्रेस पर कब्ज़ा जमाए बैठी बुजुर्गों की फौज। ये बुजुर्ग कांग्रेसी खूब राज भोग चुके हैं, खूब माया जोड़ चुके हैं और इनमे से अधिकांश की गर्दन ईडी-सीबीआई के पंजों में फंसी है। ये छके और थके हुए कांग्रेसी CONGRESS भाजपा BJP का मुकाबला तो कर सकते हैं लेकिन आरएसएस का नही। ये बूढ़े कांग्रेसी हमारे एडिड कॉलेज के बूढ़ों की तरह हैं जो आजकल सिर्फ सीनियरिटी के नाम पर खा रहे हैं, लेकिन ना आरएसएस की रणनीति समझ पा रहे और ना ही आरएसएस rss का सामना कर पा रहे। इन लोगों को ना अब कांग्रेस की जीत-हार की चिंता है और ना ही जनता की। ये लोग राजनीति में अब केवल अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं और सिर्फ अपने युवराजों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। कांग्रेस के ये बुजुर्ग अब राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की चिंता करने की बजाय केवल अपने-अपने राज्यों में अपनी हुकूमत जमाए रखने के लिए चिंतित रहते हैं और इस हुकूमत को बचाए रखने के लिए ये लोग ना तो नए युवा चेहरों को पार्टी में उभरने देना चाहते और ना ही नए लोगों को पार्टी में उभरने देना चाहते।
राज्यों में इन बुजुर्ग क्षत्रपों ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने निजी कार्यकर्ताओं में तब्दील कर लिया है। राज्यों में अब कांग्रेस के कार्यकर्ता बचे ही नहीं हैं। कोई गहलोत का कार्यकर्ता है तो कोई कमलनाथ का, कोई पायलट का कार्यकर्ता है तो कोई बघेल का। राज्यों में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता तो बचा ही नही है। यदि कोई नया आदमी कांग्रेस जॉइन करता भी है तो उसे स्थानीय स्तर पर किसी ना किसी बुजुर्ग कांग्रेसी OLD CONGRESI के धड़े का हिस्सा बनना ही पड़ेगा और यदि नही बनता है तो उसे ब्लॉक स्तर तक भी नही जाने दिया जाएगा।
आरएसएस के लोग चाहे जैसे भी हों वो लोग आपसे मिलने में, चर्चा करने में संकोच नहीं करेंगे। दो-तीन बार मिलने के बाद, आपसे असहमत होने के बावजूद आपके नाम के साथ ‘जी’ लगाकर आपसे बातें करेंगे, बेशक भीतर से आपके लिए भरे बैठे हों। दूसरी तरफ लगातार चुनाव हारते कांग्रेसियों के नखरे फिर भी कम नही होते। वो कांग्रेसी ही क्या जो घण्टों दरवाजे पर बैठाए रखे बिना आपसे 2 मिनट मिल ले।
कांग्रेस के बुजै को हर चुनाव में टिकट बांटने में एकाधिकार चाहिए, पार्टी संगठन में एकाधिकार चाहिए, प्रचार में एकाधिकार चाहिए, सत्ता में एकाधिकार चाहिए, मलाई में एकाधिकार चाहिए। ये लोग अपने राज्य में भाजपाइयों को मुख्यमंत्री बनता तो देख सकते हैं, लेकिन अपने अलावा किसी दूसरे कांग्रेसी को नही। भाजपा इन्हें नही हराती, ये लोग खुद एक दूसरे को निबटाते हैं। भाजपा तो केवल इनकी लड़ाई का फायदा उठाती है। गहलोत-सचिन पायलट Sachin pilot की कलह, भूपेश बघेल-के पी सिंहदेव का शीतयुद्ध और कमलनाथ का अहंकार तथा ईडी के समक्ष घुटने टेक देना तीन राज्यों में कांग्रेस के धराशाई हो जाने का कारण है।
जनता ने कांग्रेस को नही हराया, कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस को हराने के लिए दिन-रात एक किए है।
चारों राज्यों को मिलाकर भाजपा के पास 4 करोड़ 80 लाख वोट VOTE आए हैं और कांग्रेस को 4 करोड़ 90 लाख वोट प्राप्त हुए यानी भाजपा से 10 लाख वोट ज्यादा लेकिन, कांग्रेसी इन्हें सीटों में तब्दील नही कर पाए।
मध्यप्रदेश में डाक से प्राप्त मतपत्रों में कांग्रेस 230 में से 199 सीटों पर भाजपा से निर्णायक ढंग से आगे रही है। राजस्थान में भाजपा के पास कांग्रेस से मात्र 1.13% वोट ज्यादा हैं, लेकिन सीटों का अंतर बहुत बड़ा है।
राजस्थान में 12 गुज़्ज़र बाहुल्य सीटों में से 7 कांग्रेस हार गई। क्या सचिन पायलट इस पर कोई ज़िम्मेदारी स्वीकार करेंगे?
दरअसल, गलती कांग्रेस नेतृत्व की है। जब सचिन पायलट 20 विधायकों को लेकर पार्टी का राज्य प्रधान तथा उपमुख्यमंत्री होते हुए मानेसर आ बैठा था तभी कांग्रेस को सचिन पायलट के विकल्प पर काम करना शुरू कर देना चाहिए था। गहलोत के पर उसी समय कुतर दिए जाने चाहिएं थे जब उसने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की फजीहत करवाई।
इस सबके उलट आरएसएस है
आप सोच रहे होंगे चुनावों के मामले में भी मैं भाजपा की बजाय कथित रूप से गैर-राजनैतिक non political संगठन आरएसएस की बात क्यों कर रहा हूँ?
दरअसल, इस देश मे आजकल गैर-राजनैतिक होने का ढोंग धरकर एकमात्र राजनैतिक संगठन आरएसएस ही बचा है बाकी दल तो चाहे कांग्रेस हो, भाजपा हो या कोई और राजनैतिक पार्टी, सब के सब पतन की राह पर हैं। पार्टी के तौर पर भाजपा में हर वो खामी है जो कांग्रेस में है। भाजपा में भी राजस्थान और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर वही सिर फुटौव्वल है जो कल तक कांग्रेस में थी। मध्यप्रदेश और राजस्थान में कुल मिलाकर एक दर्जन भाजपाई मुख्यमंत्री बनने के लिए गोटियां फिट कर रहे हैं और गुज़्ज़ुओं के दरवाजे पर एड़ियां रगड़ रहे हैं लेकिन, आरएसएस की स्थिति इसके उलट है।
संघियों को इस बात से फर्क नही पड़ता कि कहां कौन मुख्यमंत्री CM बनेगा?
उनका लक्ष्य है कि हर राज्य में एक ‘संघी’ बैठा हो जिसको चारों तरफ से संघियों ने घेरा हुआ हो। कॉलेज-यूनिवर्सिटीज, भर्ती एजेंसीज, सभी संवैधानिक संस्थाओं, न्यायपालिका, शासन-प्रशासन में हर जगह संघी प्रचारक बैठे हों जो संघ का वह भगवा एजेंडा आगे बढ़ा रहे हों जो गांधी, नेहरू, पटेल, अंबेडकर जैसे लोगों की समझ-बूझ के कारण 98 वर्षों से फलीभूत नही हो पाया।
पूरे देश के संघी एक मिशन पर हैं और इस मिशन के लिए ये लोग शाखा से संसद तक एक जुट होकर लगे हैं। हम इनसे सहमत हों, चाहे असहमत हों इन्हें कोई फर्क नही पड़ता।
इस सभी के मद्देनजर मैं कांग्रेस के बुजुर्गों से ये दरख्वास्त करता हूं कि ये लोग शांति से बैठकर अपने ईडी-सीबीआई के मुकद्दमे सुलट लें और पार्टी में साफ-सुथरी छवि के पढ़े-लिखे, संघर्षशील युवाओं को आगे बढ़ने दें। यदि 2024 का चुनाव संघी जीतकर ‘हेट ट्रिक’ चला गए तो मैं लिखकर दे सकता हूँ कि ये इस देश पे प्रथम लोकतांत्रिक इतिहास का अंतिम चुनाव होगा। इसके बाद लोग मतदान तो करेंगे लेकिन, चुनाव नही।