बीमा कंपनी की अनदेखी भारी पड़ी, कोर्ट ने इलाज का पूरा पैसा और ब्याज समेत देने का आदेश दिया

अक्सर हम और आप हेल्थ इंश्योरेंस यह सोचकर खरीदते हैं कि बीमारी के मुश्किल वक्त में हमें आर्थिक सुरक्षा मिलेगी. लेकिन क्या हो जब अस्पताल के भारी-भरकम बिल के सामने बीमा कंपनी नियमों का हवाला देकर पल्ला झाड़ ले? चंडीगढ़ में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां कंज्यूमर कोर्ट ने बीमा कंपनी की मनमानी पर सख्त रुख अपनाया है.
9 दिसंबर, 2025 को आए एक अहम फैसले में, जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, चंडीगढ़ ने स्पष्ट किया है कि कोई भी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी क्लेम के पैसे यह कहकर नहीं काट सकती कि बीमारी ‘एक्सक्लूजन क्लॉज’ (अपवाद) में आती है, जब तक कि पॉलिसी बेचते समय ग्राहक को इन शर्तों के बारे में साफ-साफ बताया न गया हो. कोर्ट ने स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी को फटकार लगाते हुए पॉलिसीधारक को पूरा क्लेम ब्याज समेत चुकाने का आदेश दिया है.
2.25 लाख का बिल लेकिन कंपनी ने दिए सिर्फ 69 हजार
दरअसल, एक शख्स ने अपने और परिवार की सुरक्षा के लिए स्टार हेल्थ का ‘फैमिली हेल्थ ऑप्टिमा इंश्योरेंस प्लान’ लिया था. जुलाई 2021 में उन्होंने 22,875 रुपये का प्रीमियम भरकर पॉलिसी रिन्यू कराई. पॉलिसी के तहत उन्हें 10 लाख रुपये का बेसिक कवर और बोनस मिलाकर काफी बड़ी रकम का सुरक्षा कवच मिला हुआ था.
मुसीबत तब आई जब पॉलिसीधारक की पत्नी की जुलाई 2022 में कानपुर के एक अस्पताल में बेरिएट्रिक सर्जरी हुई. अस्पताल का कुल खर्चा 2.25 लाख रुपये आया. जब यह बिल बीमा कंपनी को भेजा गया, तो कंपनी ने विभिन्न कटौतियों का हवाला देते हुए 2.25 लाख रुपये के दावे में से केवल 69,958 रुपये ही मंजूर किए. यानी सीधे तौर पर 1.55 लाख रुपये की कटौती कर दी गई. कंपनी के इस रवैये से परेशान होकर पीड़ित ने कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
कंपनी की दलील, ‘पॉलिसी लेते वक्त सब बताया था’
कोर्ट में स्टार हेल्थ ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है. कंपनी का तर्क था कि पॉलिसीधारक ने सभी नियम और शर्तें समझने के बाद ही पॉलिसी खरीदी थी. कंपनी ने दावा किया कि पॉलिसी के नियमों के हिसाब से उनकी देनदारी सिर्फ 69,958 रुपये ही बनती थी, जिसे उन्होंने अस्पताल को चुका दिया है. कंपनी ने यह भी कहा कि ग्राहक द्वारा मांगा गया क्लेम बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है और उनकी सेवा में कोई कमी नहीं थी.
‘छिपी शर्तें थोपना गलत, पूरा पैसा चुकाना होगा’
कंज्यूमर कमीशन ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कंपनी की दलीलों को खारिज कर दिया. कोर्ट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही बीमा अनुबंध ‘अत्यधिक अच्छे विश्वास’ (Utmost Good Faith) के सिद्धांत पर आधारित होते हैं. यह जिम्मेदारी सिर्फ ग्राहक की नहीं, बल्कि कंपनी की भी है.
कोर्ट ने पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि पॉलिसी जारी करते समय ग्राहक को उन ‘एक्सक्लूजन क्लॉज’ के बारे में बताया गया था, जिनके आधार पर क्लेम काटा गया. न ही ग्राहक ने ऐसी किसी शर्त पर हस्ताक्षर किए थे. आयोग ने कहा कि मनमाने ढंग से क्लेम काटना सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार है.
कोर्ट ने स्टार हेल्थ को कड़ा आदेश देते हुए कहा है कि वह बकाया क्लेम राशि यानी 1,55,042 रुपये का भुगतान करे. इतना ही नहीं, शिकायत दर्ज कराने की तारीख (9 अगस्त, 2023) से लेकर भुगतान की तारीख तक इस रकम पर 9% सालाना ब्याज भी देना होगा. इसके अलावा, ग्राहक को हुए मानसिक कष्ट और मुकदमे के खर्च के रूप में 20,000 रुपये का अलग से मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया है. कंपनी को यह आदेश 45 दिनों के भीतर लागू करना होगा.



