सन्त बानी का सार है परमात्मा की भक्ति: कँवर साहेब
संत कँवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव स्थित राधास्वामी आश्रम में श्रद्धालुओं को प्रवचन दिए
भिवानी, (ब्यूरो): बेशक दुनियादारी की बानी के दो या दो से ज्यादा अर्थ हो सकते हैं परंतु सन्त बानी का सार एक ही है और वो है परमात्मा की भक्ति। जिसको भक्ति की लाग लग जाती है उसकी बाकी और लाग समाप्त हो जाती है। दुनियादारी में रहते हुए इनमें लिप्त मत होना। दुनिया में ऐसे रहो जैसे जल की मुर्गी जल में रहती है।पानी मे रहकर भी उसके पंख नहीं भीगते। यह सत्संग वचन संत कँवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाये। गुरु महाराज ने कहा कि कर्म ऐसे करो कि परमात्मा आपका हाथ पकड़े क्योंकि यदि आप परमात्मा को पकड़ोगे तो हो सकता है आप से छूट जाए लेकिन यदि परमात्मा आपका हाथ थामेगा तो वो हाथ कभी नहीं छूट सकता।उन्होंने कहा कि परमात्मा को सूरदास जी की भांति हृदय में बसाओ क्योंकि हाथ फिर भी छुड़ाया जा सकता है परंतु हृदय से नहीं निकाला जा सकता।हुजूर ने कहा कि संगति अच्छी करो।साधक को साधक की ही संगति भाती है।जैसे ब्याही स्त्री की बात कोई ब्याही ही समझ सकती है वैसे ही प्रभु के मर्मी के मर्म को कोई दूसरा ही मर्मी समझ सकता है। हुजूर कँवर साहेब ने फरमाया कि परमात्मा को गाना बोलना अलग चीज है और भक्ति का अनुभव अलग।सन्तो के पास अनुभव की बानी है।सन्त ब्रह्म दर्शी हैं। वे परमात्मा के गुणों के ग्राही है इसीलिए सन्त और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है। परमात्मा की रजा में रहना सीखो क्योंकि परमात्मा की रजा से कम ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता।