उत्तर प्रदेशएक्सक्लूसिव खबरें

पूरे परिवार का किया पिंडदान, फिर बनीं महामंडलेश्वर… कहानी ममता वशिष्ठ की

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया गया है. ये कार्यक्रम 13 जनवरी से शुरू हुआ है और 26 फरवरी तक चलेगा. हालांकि महाकुंभ में कई लोगों ने दुनिया को मोह-माया छोड़ संन्यास लेने का निर्णय लेते हैं और अध्यात्म की राह अपनाते हैं. ऐसे ही दिल्ली की रहने वाली ममता हैं. ममता ने महाकुंभ के दौरान संन्यास लेने का सोचा.

महाकुंभ से दो महीने पहले ममता वशिष्ठ ने दिल्ली के संदीप वशिष्ठ से शादी की थी. हालांकि अब उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन छोड़ दिया और अब संन्यास लेने का निर्णय लिया. ममता ने इसके लिए अपना और अपने परिवार का पिंडदान किया और संन्यास के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया.

क्यों लिया संन्यास?

ममता का कहना है कि वह लोगों के बीच सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहती थीं, इस वजह से उन्होंने संन्यास लिया है. ऐसे में अब वो मानव कल्याण के लिए काम करेंगी. ममता का कहना है कि उनकी हमेशा से ही सनातन धर्म में गहरी आस्था और विश्वास रहा है. उन्होंने बताया कि उनके पति और सास ने उनके इस फैसले का पूरा साथ दिया है.

ममता ने महाकुंभ में किन्नर अखाड़े के शिविर में पिंडदान की पूरी विधि का पालन किया. वहीं इसके बाद किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उन्हें महामंडलेश्वर घोषित किया.

महामंडलेश्वर का सौंपा गया पद

जानकारी के मुताबिक इस महाकुंभ में किन्नर और महिला संतों के लिए पिंडदान के बाद मुंडन अनिवार्य नहीं किया गया. ऐसे में ममता को संन्यास अपनाने में दिक्कत नहीं हुई. महामंडलेश्वर ने डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि ममता की संन्यास की दिशा में रुचि को देखते हुए उन्हें दीक्षा दी गई और महामंडलेश्वर का पद सौंपा गया.

Related Articles

Back to top button