‘फ्री की रेवड़ी’ बांटने से चरमरा रही राज्यों की इकोनॉमी, वित्त विभाग ने जताई चिंता
चुनाव जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं का ऐलान राजनीतिक दलों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है. इन योजनाओं के जरिए गरीब और मध्यम वर्गीय वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश की जाती है. हालांकि, इस रणनीति से चुनावी सफलता मिलती है, लेकिन राज्य की आर्थिक स्थिति पर इसका गहरा असर पड़ता है. स्थिति ये आ गई है कि वित्त विभाग ने चिंता जताते हुए कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है.
उदाहरण से समझिए
महाराष्ट्र का चुनाव इसका ताजा उदाहरण है. विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 2.5 करोड़ महिलाओं को 1,500 रुपए मासिक सहायता देने की योजना शुरू की. इस पहल का मकसद ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का समर्थन हासिल करना था. नतीजतन, बीजेपी गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की, जो लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान के बाद एक बड़ी वापसी थी.
इसी तर्ज पर दिल्ली सरकार ने ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ (MMMSY) के तहत महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपए देने की योजना बनाई है. इस योजना से 18 साल से ऊपर की महिलाएं लाभान्वित होंगी. हालांकि, दिल्ली के वित्त विभाग ने इस पर गंभीर चिंताएं जताई हैं. योजना पर अनुमानित 4,560 करोड़ रुपए वार्षिक खर्च होंगे, जिससे पहले से ही सब्सिडी पर 11,000 करोड़ रुपए खर्च कर रही सरकार के बजट पर भारी दबाव पड़ेगा.
इन योजनाओं के क्या हैं प्रभाव
वित्त विभाग का मानना है कि यदि इस योजना को लागू किया गया, तो वित्त वर्ष 2025-26 में दिल्ली सरकार का बजट घाटा बढ़ सकता है. केंद्र सरकार को भी हस्तक्षेप करना पड़ सकता है, जिससे दिल्ली की वित्तीय स्वायत्तता पर असर पड़ेगा. दिल्ली को अन्य राज्यों की तरह बाजार से कर्ज लेने की अनुमति नहीं है, और उसे महंगा नेशनल स्मॉल सेविंग फंड का सहारा लेना पड़ता है.
इसके अलावा, दिल्ली जल बोर्ड के लिए 2,500 करोड़ रुपए के अनुदान की आवश्यकता और MMMSY से जुड़ी लागत राज्य पर 7,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार डालेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की योजनाएं, भले ही अल्पकालिक राजनीतिक लाभ दें, लेकिन राज्य की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता को खतरे में डाल सकती हैं.