उत्तर प्रदेश

यूपी का आश्रम, जिसकी गुफा में तीन दिन छिपे रहे भगत सिंह

शहीदे आजम भगत सिंह का नाम आते ही देशभक्ति, बलिदान और अदम्य साहस की तस्वीर सामने आ जाती है. उनका जीवन क्रांतिकारी घटनाओं से भरा रहा. आज 28 सितंबर को उनकी जयंती है. शहीद भगत सिंह का सहारनपुर से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. यह वह दौर था जब भगत सिंह अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में धूल झोंककर इंकलाब की अगली राह तय कर रहे थे.

भगत सिंह का पूरा जीवन मातृभूमि को समर्पित था. परिवार और अपने जीवन की परवाह किए बिना वे हर पल भारत माता की स्वतंत्रता की योजना में जुटे रहते थे. इसी जुनून में उन्होंने लाहौर में अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या की. इस घटना के बाद पूरा ब्रिटिश प्रशासन भगत सिंह को पकड़ने के लिए पागल हो उठा था . जगह-जगह छापे पड़े, लेकिन वे गिरफ्त से बाहर निकल गए.

सहारनपुर में तीन दिनों तक रहे

यही वह दौर था जब भगत सिंह सहारनपुर पहुंचे. फिर यहां के फुलवारी आश्रम और एक गुप्त बम फैक्ट्री ने उन्हें सुरक्षा और सहारा दिया. सहारनपुर का फुलवारी आश्रम उस समय सामान्य धार्मिक स्थल जैसा दिखता था, लेकिन इसकी दीवारों और गुफा जैसे हिस्सों ने इतिहास में खास भूमिका निभाई. कहा जाता है कि भगत सिंह यहां तीन दिनों तक गुपचुप ढंग से रहे.

इस दौरान स्थानीय लोगों की मदद से भगत सिंह को भोजन और आवश्यक सामग्री पहुंचाई जाती रही. बाहर अंग्रेजी फोर्स भगत सिंह को तलाश रही थी, जबकि वे आश्रम की छत और गुफा में योजनाएं बना रहे थे. इतिहास के पन्नों में ये भी दर्ज है कि सहारनपुर की पुरानी मंडी, मोहल्ला चौक फिरोजशाह में भगत सिंह और उनके साथियों ने गुप्त बम फैक्ट्री च

क्रांति की चिंगारियां फूट रही थीं

बाहर से यह जगह एक चिकित्सक की दुकान जैसी लगती थी, लेकिन भीतर क्रांति की चिंगारियां फूट रही थीं. दवाइयों की बोतलों और उपकरणों की आड़ में बम और हथियार तैयार किए जाते थे. यहीं से कई हथियार अन्य जगहों तक पहुंचाए गए. फुलवारी आश्रम में छुपने और फैक्ट्री में हथियार तैयार करने के दौरान सबसे बड़ा डर था अंग्रेजों का छापा.

कहा जाता है कि कुछ बार खुफिया रिपोर्ट्स अंग्रेज अधिकारियों तक पहुंची भीं, लेकिन जब सर्च ऑपरेशन चला तो भगत सिंह अपनी चतुराई से बच निकले. उनकी रणनीति थी- आम जगहों में छुपना, ताकि कोई शक भी न कर सके. यही कारण था कि सहारनपुर जैसे शांत शहर की गलियों में अंग्रेज सिपाही भटकते रह गए और भगत सिंह उनसे एक कदम आगे निकलते रहे.

सहारनपुर की यह भूमिका इतिहास में अमिट

सहारनपुर के कुछ स्थानीय लोग इस गुप्त नेटवर्क का हिस्सा बने. वे संदेशवाहक, खाद्य सामग्री पहुंचाने वाले और कई बार नकली पहचान बनाने में मददगार बने. सहारनपुर में कुछ दिन बिताने के बाद भगत सिंह और उनके साथी आगे बढ़े. कहा जाता है कि बम फैक्ट्री को भी खुफिया कारणों से दूसरी जगह शिफ्ट करना पड़ा, लेकिन सहारनपुर की यह भूमिका इतिहास के लिए अमिट बन गई.

यहां के फुलवारी आश्रम और कई मोहल्ले भगत सिंह की उस जंग के गवाह बने, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी. आज भगत सिंह की जयंती पर जब सहारनपुर का यह किस्सा याद किया जाता है, तो यह केवल इतिहास नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा भी है. उस दौर में जब ब्रिटिश सत्ता का खौफ हर जगह था, भगत सिंह ने दिखाया कि हिम्मत और रणनीति मिलकर किसी भी ताकत को चुनौती दे सकती है.

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