गुरु दरबार की सेवा सर्वोत्तम सेवा है: हुजुर कंवर साहेब

भिवानी(ब्यूरो): गुरु की सीख को जीवन में उतार लो नाम भक्ति सरल हो जाएगी। गुरु दरबार की सेवा सर्वोत्तम सेवा है और यदि यह सेवा स्वेच्छा से की गई हो तो उसमें प्रेम श्रद्धा और विश्वास के गुण शामिल हो जाते हैं और इन गुणों से लबरेज कार्य सद्कार्य कहलाते हैं और सेवादारों की उपस्थिति सत्संग कहलाती है। यह सत्संग वचन संत सतगुरु कँवर साहेब महाराज ने यहां रोहतक रोड़ स्थित राधास्वामी आश्रम में सत्संग में सेवाकार्य हेतु जुड़े सेवादारो को फरमाये। हुजूर महाराज ने स्वयं के 78वें जन्मदिवस के अवसर पर 2 मार्च को होने वाले सत्संग व भंडारे की तैयारियों हेतु जुटे सेवादारों को दर्शन और सत्संग दे रहे थे।हुजूर कँवर साहेब ने कहा कि आज के युग में कदम कदम पर धोखे हैं। मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं। विषय विकारों में उलझे हैं।जिस धरा पर रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ रचे गए जो हमें हर कदम पर शिक्षाप्रद प्रेरणा देते हैं वहां इतनी गिरावट और ज्यादा मन को कचोटती हैं। समझ नहीं आता इतने पाप और जुल्म हम किसलिए कर रहे हैं?क्यों अपने रूप बल पर अभिमान करते हैं।क्यों इतनी लूट मचा रखी है।जब सब कुछ यही रह जाना है तो ये अँधिदौड क्यों।ये इसलिए क्योंकि सब दुसरों को तो उपदेश खूब देते हैं परंतु स्वयं के ऊपर कुछ अमल नहीं करते।माँ बाप खुद अपनी संतान को निंदा चुगली छल बल में फंसाते हैं। सन्तान माँ बाप का दर्पण है। अगर रामायण काल की तरह सन्तान को आज भी अच्छी शिक्षा दी जाए तो आज भी सतयुग और त्रेता युग है। बोते हो बबूल के बीज तो आम पाने की चाहत क्यों।
गुरु महाराज ने कहा नाम के ऋणी रहो क्योंकि नाम आपके बुझे दिए को रोशन करने वाला है।नाम रसिया होकर भी यदि आप नाम को भुलाते हो तो आप परमात्मा के चोर हो।जो झुकता नहीं वह कुछ नहीं ले पाता।उन्होंने कहा कि कोड़ा होने यानी झुकने से कोढ़ जाता है मुधा यानी घुटने टेककर बन्दगी करने वाले के विकार चले जाते हैं।इससे बढक़र जो दण्डवत बन्दगी करता है उसके तो वारे न्यारे हैं। उन्होंने कहा कि गुरु के सन्मुख जाने से उनके गुण हमारे अंदर सम्माहित होते हैं।जैसे अग्नि के पास जाने से तपिश जल के पास जाने से शीतलता मिलती है।