सऊदी अरब में घट रहा बर्थ रेट, क्यों परेशान हैं देश के लोग?

सऊदी अरब की जनसंख्या एक अहम बदलाव के दौर से गुजर रही है. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, सऊदी अरब में साल 1980 में प्रति 1,000 लोगों पर जो जन्म दर 44 थी. वो 2023 में घटकर 16 रह गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका असर सिर्फ जनसंख्या तक सीमित नहीं रहेगा. बल्कि रोजगार, पेंशन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रियल एस्टेट के पैटर्न पर भी पड़ना तय है.
5 साल में 50 हजार बच्चे कम हुए
फिलहाल सऊदी अरब की आबादी करीब 3 करोड़ 46 लाख है, जो 2050 तक बढ़कर 4 करोड़ 77 लाख हो जाएगी. पर यहां ये जानना दिलचस्प है कि आने वाले बरसों में सऊदी अरब की आबादी तो बढ़ेगी, लेकिन उस जनसंख्या में बदलाव भी गम्भीर तरीके के होंगे. यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक, 2050 तक सऊदी अरब की जनसंख्या वृद्धि दर घटकर 0.72 प्रतिशत रह जाएगी और कुल प्रजनन दर 2.12 से गिरकर लगभग 1.8 बच्चे प्रति महिला हो सकती है.
घटती जन्मदर सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौती भी है. कम जन्मदर और बढ़ती जीवन प्रत्याशा से आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है. इससे पेंशन और हेल्थकेयर पर खर्च बढ़ेगा. 2017 में सऊदी अरब में 4 लाख 65 हजार जन्म हुए थे. जो 2022 में घटकर 4 लाख 17 हजार रह गए.
घटते जन्मदर की सबसे बड़ी चुनौती
सबसे बड़ी गिरावट 20 से 24 साल की महिलाओं में देखी गई, जबकि 35 से 44 साल की महिलाओं में देर से मां बनने का चलन इन दिनों बढ़ा है. कई सऊदी महिलाएं करियर, उच्च शिक्षा और आर्थिक स्थिरता के कारण मातृत्व को टाल रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं की शिक्षा और रोजगार में भागीदारी बढ़ने से समाज में बड़ा बदलाव आया है.
जहां तक इस से पड़ने वाले असर की बात है, घटती परिवार साइज से रियल एस्टेट और ऑटो सेक्टर प्रभावित होगा. बड़े घरों, फैमिली कारों और फर्नीचर की मांग कम हो सकती है. सऊदी अरब गैर-तेल क्षेत्रों को बढ़ावा दे रहा है, जिससे विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता बनी रह सकती है. 2022 में विदेशी आबादी की कुल जनसंख्या का करीब 41.6 प्रतिशत थी.




