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चंडीगढ़ क्राफ्ट्स मेला 2025: गिरराज के टेराकोटा गमलों ने सबका ध्यान खींचा, जानें खासियत

चंडीगढ़: चंडीगढ़ में चल रहे क्राफ्ट्स मेले में राष्ट्रीय पुरस्कार और दिल्ली राज्य पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने कारीगर गिरराज प्रसाद अपनी विशेष टेराकोटा कला की प्रदर्शनी लेकर पहुंचे. उनके स्टॉल पर मिट्टी से बने आकर्षक गमले, पारंपरिक बर्तन और नवीन डिजाइन वाले उत्पाद ने लोगों का विशेष ध्यान खींचा. 500 रुपये से लेकर 15,000 रुपये तक की विभिन्न रेंज के ये उत्पाद मेले का मुख्य आकर्षण बने हुए हैं.

चार पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक कला: गिरराज प्रसाद का जन्म 1965 में राजस्थान के करौली जिले में एक परंपरागत टेराकोटा कलाकार परिवार में हुआ. वे 36 वर्षों से इस कला में महारथ हासिल किए हुए हैं. उन्होंने बताया कि, “उनका परिवार चार पीढ़ियों से इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है. यह कला मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन सभ्यता से संबंधित मानी जाती है और भारत में सदियों से चली आ रही है. मिट्टी से बने बर्तन, चूल्हे, दीपक और कुकिंगवेयर आज भी पुराने तरीकों से तैयार किए जाते हैं और लोगों द्वारा पसंद भी किए जाते हैं.”

समय के अनुरूप टेराकोटा उत्पादों में लाई गई आधुनिकता: गिरराज प्रसाद ने बताया कि, “बदलते समय के साथ उन्होंने अपने टेराकोटा उत्पादों में नवीन डिजाइन और आधुनिकता जोड़ी है. नए रंगों और अभिनव आकृतियों वाले गमले लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं.पारंपरिक और आधुनिक कला का यह अनोखा मेल उनकी पहचान बन चुका है. लोगों के आग्रह पर ही उन्होंने चंडीगढ़ क्राफ्ट्स मेले में अपनी प्रदर्शनी लगाई है, ताकि अधिक से अधिक लोग भारतीय हस्तकला और सांस्कृतिक विरासत से परिचित हो सकें.”

मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल से मिला कारीगरों को बढ़ावा: गिरराज प्रसाद ने आगे बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल जैसी पहल से हस्तशिल्प क्षेत्र के कारीगरों को बड़ा प्रोत्साहन मिला है. इससे न केवल इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ा है बल्कि कारीगरों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. ऐसी योजनाएं भारतीय कला को नए बाजार और पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभा रही हैं.”

पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक: गिरराज प्रसाद का मानना है कि, “टेराकोटा के बर्तन न केवल पारंपरिक हैं, बल्कि पर्यावरण और सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी हैं. मिट्टी से बने इन उत्पादों को हाथों से आकार दिया जाता है और फिर पारंपरिक भट्टियों में लकड़ी या कोयले से पकाया जाता है. क्राफ्ट्स मेला उत्तर भारत में उनकी कला के प्रसार का बेहतरीन अवसर है और इससे टेराकोटा कला की महत्ता और भी बढ़ेगी.”

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