बिहार

कटाव पीड़ित परिवार का दर्द! सास बहु और 5 बच्चे, महीने में 10 दिन ही जलता है चूल्हा, झोपड़ी में रहने को मजबूर

बिहार के भागलपुर में कटाव पीड़ित परिवार दाने दाने के मोहताज हो गए हैं. इन परिवारों के घरों में महीने में 10 दिन ही चूल्हा जल पता है. किसी तरह परिवार का भरण पोषण हो रहा है. ये लोग रूखी-सूखी खाते हैं. इन्हें सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली है. सबौर प्रखंड के मसाढू गांव में लगभग चार दर्जन से ज्यादा पक्के मकान गंगा नदी में समा गए थे, जिसके बाद पीड़ितों को मुआवजा मिलने का आश्वासन दिया गया था.

एक साल से ज्यादा का समय बीत गया है. लेकिन अभी तक वादा पूरा नहीं हुआ. अब पीड़ित परिवार किसी तरह दूसरे की जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं. किसी ने रेलवे पटरी के किनारे अपना बसेरा बनाया है. परिवार ने अपना दुख बयान किया और सच्चाई बताई. पीड़ित परिवारों की बेबसी का आलम यह है कि छोटे से फूस के घर में सास-बहू अपने पांच बच्चों के साथ रह रहे हैं.

दूसरे घरों से खाना मांग कर लाते

इन परिवारों के घरों में खाने के लिए राशन तक नहीं है. ये लोग सूखी रोटी का टुकड़ा खाकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं. गंगा नदी से पानी लाकर उसे ही पीकर प्यास बुझाते हैं. जब अपने घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता तो ये ये लोग दूसरे घरों से खाना मांग कर लाते हैं और तब जाकर अपना पेट भर पाते हैं. अपना दुख बयां करते हुए एक सास और बहू दोनों के आंखों में आंसू आ गए, जो 5 बच्चों के साथ झोपड़ी में रह रही हैं.

सरकारी स्कूल से भी भगा दिया गया

एक बार फिर गंगा नदी उफान पर है और जलस्तर बढ़ रहा है. ऐसे में फिर से बाढ़ का खतरा सता रहा है. पीड़ित परिवार डर के साए में हैं. उनका कहना है कि पहले पक्का मकान नदी में चला गया. फिर सरकारी स्कूल में शरण ली तो वहां से भगा दिया गया. अब वह लोग झोपड़ी में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम बाढ़ आने पर कहां भाग कर जाएं, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा.

पीड़ित परिवार के मन में गुस्सा

पीड़ित परिवारों ने सरकार से कुछ जमीन और मुआवजे की मांग की. लेकिन बताया गया कि अब तक इन्हें किसी तरह की कोई मदद नही मिली है. उन्होंने कहा कि हम लोग किस हाल में हैं कोई देखने नहीं आता. चुनाव के वक्त अगर हाथ जोड़ने नेता आएंगे तो हम उनका झाडू से स्वागत करेंगे. इन लोगों का आशियाना उनके सामने उजड़ गया. अब वह बेबस हो गए हैं और खाने तक के लिए वह परेशान हैं.

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