हरियाणा में कांग्रेस रणनीति के तहत इस बार बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनावी मैदान में उतरी थी. इसके बावजूद भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक सीएम बनने की इच्छा जाहिर करते रहे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा 2005 से 2015 तक दो बार सीएम रह चुके हैं और अब तीसरी बार भी उन्होंने कुर्सी पर बैठने की पूरी फिल्डिंग सजा रखी है. कुमारी सैलजा दलित और महिला कार्ड खेलकर सीएम की कुर्सी पर बैठने का दांव चल रही हैं. इस तरह नतीजे से पहले ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान शुरू हो गया है.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दो दिनों से दिल्ली में डेरा जमा रखा है. सोमवार को उन्होंने हरियाणा के प्रभारी दीपक बाबरिया के साथ अहम मुलाकात की और सीएम पद पर दावा ठोक दिया है. विधायकों के मत और हाईकमान के फैसले से ही मुख्यमंत्री तय होगा. सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा भी दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं तो रणदीप सुरजेवाला भी केदारनाथ धाम से हरियाणा लौट आए हैं. कांग्रेस के तीनों ही नेता गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं और हरियाणा की सियासत में अच्छा-खासा दखल रखते हैं.
कांग्रेस में कैसे होता है सीएम का चयन
हरियाणा कांग्रेस नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर मचे सियासी घमासान को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने डैमेज कंट्रोल के लिए महासचिव केसी वेणुगोपाल और अजय माकन को जिम्मेदारी सौंपी है. चुनाव नतीजा आने के साथ ही कांग्रेस के दोनों ही नेता चंडीगढ़ पहुंचेंगे. कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के चयन के लिए एक सिस्टम है. चुनावी नतीजे के बाद मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए विधायकों से अनुशंसा ली जाती है फिर हाईकमान का फैसला अंतिम होता है.
CM के चयन के लिए कांग्रेस का पैटर्न
राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का एक पैटर्न दिखा है. कांग्रेस ने भले ही सीएम पद का चेहरा किसी को न घोषित किया हो, लेकिन जिस नेता को आगे कर चुनाव लड़ी, उसके सिर ही मुख्यमंत्री का ताज सजा है. कांग्रेस ने राजस्थान के 2018 के चुनाव में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को आगे कर चुनाव लड़ा था. ऐसे में सत्ता में जब लौटी तो गहलोत को सीएम की कुर्सी सौंपी थी और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया था. तेलंगाना में कांग्रेस बिना सीएम चेहरे के उतरी थी और सत्ता में आने के बाद प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को सीएम की कुर्सी सौंपी गई थी, क्योंकि उनकी ही अगुवाई में चुनाव लड़ा था.
हिमाचल में कांग्रेस जब तक वीरभद्र सिंह को आगे कर चुनाव लड़ती रही, उन्हें ही सीएम की कुर्सी भी सौंपती रही. इसके बाद 2022 हिमाचल में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो सुखविंदर सिंह सुक्खू के सिर ताज सजा, क्योंकि चुनाव उन्हीं के अगुवाई में लड़ा गया था. 2018 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की अगुवाई में लड़ी और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी उन्हें सौंपी. मध्य प्रदेश में कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस 2018 का चुनाव लड़ी थी और सीएम भी उन्हें बनाया था. कर्नाटक में कांग्रेस ने 2023 में बिना किसी चेहरे को घोषित किए हुए चुनाव लड़ा था. सत्ता में वापसी के बाद सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया गया.
“न मैं टायर्ड हूं और न रिटायर्ड”
कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चयन का पैटर्न से साफ है कि हरियाणा में पार्टी ने भले ही किसी को सीएम का चेहरा न घोषित किया हो, लेकिन जिस तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चुनावी कमान संभाल रखी थी, उसके चलते सत्ता में वापसी पर उनके नाम को दरकिनार करना मुश्किल है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बूथ मैनेजमेंट से टिकट वितरण और प्रचार में सक्रिय भूमिका भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने निभाई है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि प्रदेश में भारी बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. सीएम के सवाल पर उन्होंने कहा कि न मैं टायर्ड हूं और न रिटायर्ड. सीएम का फैसला कांग्रेस हाईकमान तय करता है. विधायकों की रायशुमारी ली जाती है. विधायकों के मत और हाईकमान के फैसले से मुख्यमंत्री तय होगा.
रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पैरवी शुरू कर दी है. दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि हुड्डा साहब ने बड़ी मेहनत की है, लेकिन चुनाव में सब का योगदान है. इससे कांग्रेस मजबूत हुई है. सीएम चेहरे को लेकर दीपेंद्र ने कहा कि कांग्रेस की एक परंपरा है, उसी हिसाब से सीएम चेहरे का चुनाव किया जाएगा. इसी तरह हिसार से कांग्रेस के सांसद जेपी ने कहा कि मुख्यमंत्री पद के चयन के लिए कांग्रेस में सिस्टम है, सीएम बनाने को लेकर विधायकों से अनुशंसा ली जाती है. इसके बाद हाईकमान तय करते हैं कि कौन मुख्यमंत्री होगा. इस समय प्रदेश में एक ही नेता है, जो जननायक है और जनता का नेता है, उसका नाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा है.
कुमारी सैलजा ने भी जताई दावेदारी
वहीं, कुमारी सैलजा का कहना है कि मुख्यमंत्री पद का फैसला विधायक दल की बैठक में होगा. सभी नेताओं की अपनी-अपनी उम्मीदें होती हैं, चाहे दलित की बात हो या महिला की हो, कांग्रेस हाईकमान को सब पता है. रणदीप सुरजेवाला भी सीएम पद को लेकर दावेदारी जता चुके हैं. सुरजेवाला का कहना है कि अगर चुनाव नहीं लड़ा तो इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार चलाने की आकांक्षा नहीं हैं. सीएम के पास हरियाणा में बदलाव और किसानों के जीवन में खुशहाली लाने का विजन होना चाहिए. मेरे पास हरियाणा के विकास का विजन है.
हुड्डा का सियासी पलड़ा भारी
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के समय से ही अपने लिए सीएम पद के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी थी. हुड्डा अपने 65 से 70 करीबी नेताओं को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं. इसके पीछे रणनीति यह है कि अगर कांग्रेस हाईकमान बदलाव को लेकर कोई फैसला लेते हैं तो हुड्डा विधायकों की अनुशंसा का पासा फेंक सकते हैं. कांग्रेस की सीटें 55 से 60 आती है तो उसमें 40 हुड्डा के समर्थक होंगे तो कुमारी सैलजा के 5 से 6 समर्थक ही विधायक बन सकते हैं. ऐसे ही रणदीप सुरजेवाला के साथ भी है. कैथल से उनके बेटे ने चुनाव लड़ा है और नरवाना सीट पर उनके एक करीबी को कांग्रेस ने उतारा था. इस तरह हुड्डा का सियासी पलड़ा काफी भारी नजर आ रहा है.
हरियाणा में दस साल के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है. एग्जिट पोल में भी अनुमान कांग्रेस के पक्ष में है. ऐसे में मुख्यमंत्री पद के लिए सियासी फील्डिंग सजाई जाने लगी है. विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो सीएम को लेकर सियासी संग्राम छिड़ सकता है. ऐसे में हुड्डा, कुमारी सैलजा और सुरेजवाला के बीच फैसला होना है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा की दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है कि 27 फीसदी जाटों का वोट एकमुश्त कांग्रेस के पक्ष में खड़ा नजर आया है.
हुड्डा के नाम को दरकिनार करना मुश्किल
बीजेपी के खिलाफ सियासी माहौल बनाने में भूपेंद्र हुड्डा का अहम रोल था. हुड्डा किसानों से लेकर पहलवान और नौजवानों तक के मुद्दे पर नैरेटिव सेट करते हुए नजर आए. जाट बनाम गैर-जाट का माहौल नहीं बनने दिया और हुड्डा ने पूरे चुनाव के दौरान 36 बिरादरी के समर्थन की रट लगाए रखी. इतना ही नहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने एक-एक दिन में सात से आठ रैलियां की. इसीलिए कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम को दरकिनार करना मुश्किल होगा.
कौन बनेगा सीएम और डिप्टी सीएम?
वहीं, कुमारी सैलजा कांग्रेस का दलित चेहरा हैं. पांच बार की सांसद हैं और सोनिया गांधी की करीबी मानी जाती हैं. राहुल गांधी इन दिनों जिस तरह से सामाजिक न्याय के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उसके चलते ही सैलजा अपनी दावेदारी कर रही हैं. हरियाणा में कांग्रेस जाट-दलित समीकरण के सहारे बीजेपी को मजबूत चुनौती देती दिखी है, लेकिन सैलजा ने जिस तरह चुनाव प्रचार के दूरी बनाई है और चुनाव के बीच वो नाराज रही हैं. विपक्ष ने उसे मुद्दा बनाया था, यही बात सैलजा के खिलाफ जा सकती है. अब देखना है कि हरियाणा का गहलोत और पायलट कौन बनता है यानि सीएम और डिप्टी सीएम कौन होगा?