सैलरी-सिस्टम या साजिश? मध्य प्रदेश में 50 हजार ‘भूत कर्मचारियों’ का खुलासा, कांग्रेस बोली- 12,000 करोड़ का घोटाला

मध्य प्रदेश में सरकारी वेतन प्रणाली को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. सरकार के डेटा में दर्ज 50,000 से अधिक ऐसे कर्मचारी सामने आए हैं, जिनके पास सक्रिय एम्प्लॉयी कोड तो हैं लेकिन उनकी जमीनी उपस्थिति, पहचान या पदस्थापन का कोई रिकॉर्ड नहीं. इसी को लेकर कांग्रेस ने 12,000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप लगाते हुए इसे प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है.
क्या है सैलरी घोटाला?
- सरकार के HRMS सिस्टम में 40,000 रेगुलर कर्मचारी
- 10,000 टेम्परेरी स्टाफ
- इन 50,000 कर्मचारियों की सैलरी दिसंबर 2024 के बाद से जारी नहीं हुई, लेकिन इनके एम्प्लॉयी कोड आज भी एक्टिव हैं.
- यानी ये कोड किसी भी दिन फिर से सैलरी निकालने में इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
- ₹230 करोड़ की सैलरी फ्रीज़ है लेकिन शक कहीं ज्यादा बड़े नेटवर्क पर है.
- 6,000 से अधिक DDOs (Drawing and Disbursing Officers) की भूमिका जांच के दायरे में है.
यह सिर्फ आंकड़ों में नहीं, खजाने की लूट है
यह सवाल अब जोर पकड़ रहा है कि क्या ये सिस्टम में तकनीकी चूक है या सुनियोजित घोटाले का हिस्सा? इसे लेकर कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने घोटालों की फैक्ट्री खोल ली है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने TV9 भारतवर्ष से बातचीत में कहा, यह ₹230 करोड़ नहीं, बल्कि 12 हजार करोड़ का सुनियोजित सैलरी घोटाला है. यह सिर्फ आंकड़ों में नहीं, खजाने की लूट है.
जीतू पटवारी ने कहा कि हम इस मामले में CBI जांच की मांग करते हैं लेकिन हमें CBI पर भी भरोसा नहीं है, क्योंकि नर्सिंग घोटाले में CBI अफसर ही रिश्वत लेते पकड़ा गया था. अब हम कोर्ट का रुख करेंगे.
- सरकार की सफाई: राज्य सरकार का कहना है कि मामला गंभीर है और जांच चल रही है. मंत्री विश्वास सारंग ने TV9 भारतवर्ष से बातचीत में कहा, यह मामला अब हमारे संज्ञान में है. तुरंत जांच के निर्देश दिए गए हैं. किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा.
नाम हैं, पर पहचान नहीं, सैलरी कोड एक्टिव पर कर्मचारी नदारद
- कई कर्मचारियों के नाम, पद और आईडी नंबर मौजूद हैं.
- ये कर्मचारी किस विभाग में कार्यरत हैं, कब रिपोर्ट करते हैं, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है.
- इनका डाटा भी अधूरी जानकारी के साथ पोर्टल में अटका हुआ है.
- यह साफ है कि अगर कोड एक्टिव हैं तो कोई भी कागज़ों पर वेतन निकाल सकता है, चाहे कर्मचारी जिंदा हो, सेवानिवृत्त हो या कभी अस्तित्व में ही न रहा हो.
5 अहम सवाल
- क्या सरकार इतने समय तक इस तकनीकी चूक से अनजान थी?
- अगर ये घोटाला नहीं है तो 50,000 फर्जी कोड क्यों एक्टिव हैं?
- क्या कर्मचारियों के नाम पर किसी और को सैलरी दी जा रही थी?
- क्या यह नेटवर्क विभागीय स्तर तक सीमित है या बड़े स्तर पर फैला है?
- क्या सरकार इस जांच को पारदर्शिता से पूरी करेगी या रफादफा किया जाएगा?