परमसंत ताराचंद साक्षात परमात्मा के रूप थे: संत कंवर हुजूर

भिवानी, (ब्यूरो): संत परमात्मा का हुकनामा लेकर इस धरा पर देह धारते हैं।संतो का मुख्य ध्येय जीवो को काल जाल से मुक्त करा के उनको निजधाम में ले जाना होता है।अगर सरल शब्दों में कहूं तो परमसंत ताराचंद साक्षात परमात्मा के रूप थे।निश्चित रूप से वो कलयुग के मर्यादा पुरूषोतम थे। वो किताबी शिक्षा की दृष्टि से बेशक अनपढ़ हो लेकिन परा विद्या के धनी थे।यह सत्संग वचन परम संत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने अपने गुरु कुल मालिक ताराचंद महाराज के 101वें अवतरण दिवस के अवसर पर दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में लाखों की संख्या में उमड़ी संगत को फरमाए।हुजूर कंवर साहेब ने अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि सभी संत एक ही घर से आते हैं।सबकी एक ही शिक्षा है कि कमा कर खाओ। पर धन पर त्रिया से नेह ना लगाओ।हुजूर ताराचंद का ज्ञान उनके व्यवहार में झलकता था।जिन हालातों में उन्होंने देह धारी उन हालातों में सामान्य जीव जहां जीवन की मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे थे उन परिस्थितियों में उन्होंने ना सिर्फ भक्ति का पौधा लगाया बल्कि उस पौधे को विशालकाय उपवन में तब्दील भी कर दिया।यह केवल परमात्मा के स्वरूप के ही बस की बात थी। परमसंत ताराचंद जी के 101वें अवतरण दिवस पर रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया गया जिसमें एम्स बाढ़सा झज्जर और सिविल हस्पताल भिवानी की अलग अलग टीमों के लिए अलग अलग 101 – 101 यूनिट रक्त का दान किया गया।इस अवसर पर हुजूर महाराज जी ने कहा कि रक्त दान महादान है।आपका रक्त किसी की जान बचाने का कार्य करता है।रक्तदान में परोपकार और परमार्थ दोनों होते हैं।