धर्म/अध्यात्महरियाणा

सतगुरु प्रभु भक्ति के रूप में मूल्यवान वस्तु प्रदान करता है: संत कंवर हुजूर

भिवानी, (ब्यूरो): सत्संग भी तभी सुहाता है जब तन और मन में शांति हो।भक्ति के लिए वातावरण भी सुखद होना चाहिए। वातावरण में बाहरी चीजें ही नहीं बल्कि आंतरिक शांति भी शामिल है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत के समक्ष फरमाए। हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि संतो की बानी को सुनकर उसका चिंतन और मनन किया जाना चाहिए क्योंकि ये अनुभव की बानी है। संतो के दरबार में बारम्बार जाना चाहिए क्योंकि इससे आपका अभ्यास बनेगा और जगत जाल की भूल नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि माया भक्ति से मोह भंग करती है। काल हमेशा घात लगाए बैठा है। जो जीव इस संसारी जेल से निकल कर सतगुरु सतनाम और सत्संग की तरफ चलता है तो काल उसे अनेकों प्रलोभन देता है।ये प्रलोभन आपको भक्ति से विमुख करेंगे। इस विमुखता को हम संत के बार बार दर्शन से और उनके संग को बार बार करने से टाल सकते हैं। गुरु महाराज ने कहा कि सतगुरु का मार्ग कल्याण का मार्ग है।सतगुरु परहित और परमार्थ का मार्ग सुझाता है। सतगुरु प्रभु भक्ति के रूप में आपको मूल्यवान वस्तु प्रदान करता है।उन्होंने कहा कि कलयुग में नाम बिना उद्धार नहीं है।बिना नाम के मन की मलिन वासना नहीं हटेगी।दुनियादारी में रहते हुए भक्ति रस केवल नाम भक्ति से ही संभव है।नाम अमीरस है।इसके पान के बाद दुनिया के और रस फीके लगने लगते हैं।

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