10000 साल की उम्र और राम के युग की मृत्यु पद्धति पर सवाल

हिंदू धर्म और पुराणों में वर्णित चार युगों, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग में न केवल मनुष्य के नैतिक आचरण में, बल्कि उनकी जीवन अवधि और मृत्यु के स्वरूप में भी बहुत बड़ा अंतर बताया गया है. वर्तमान कलियुग में जहां 100 साल जीना भी दुर्लभ माना जाता है, वहीं भगवान राम के युग, यानी त्रेतायुग, में लोग 10 हज़ार साल तक जीते थे. सवाल उठता है कि जब मनुष्य 10,000 वर्ष तक जीता था, तब क्या मृत्यु का स्वरूप भी आज के कलियुग जैसा ही था? आइए, हिंदू शास्त्रों के आधार पर इस रहस्य को विस्तार से समझते हैं.
त्रेतायुग में कितनी थी मनुष्य की आयु?
पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में मनुष्यों की औसत आयु लगभग 10,000 वर्ष मानी गई है. उस समय शरीर बलवान, रोगमुक्त और दीर्घायु होता था. उदाहरण के तौर पर कई ग्रंथों में राजा दशरथ की आयु 60,000 वर्ष तक बताई गई है. भगवान श्रीराम ने पृथ्वी पर लगभग 11,000 वर्षों तक राज्य किया था. यह आज के मानव जीवन से बिल्कुल अलग तस्वीर प्रस्तुत करता है, जहां सौ वर्ष की आयु भी अपवाद मानी जाती है.
क्या उस युग में भी होती थी मौत?
मृत्यु तो हर युग में होती है, लेकिन त्रेतायुग में उसका स्वरूप कलियुग जैसा नहीं था. शास्त्रों के अनुसार, उस समय अकाल मृत्यु (कम उम्र में मौत) बहुत दुर्लभ थी. सामान्य बीमारियों, महामारी या मानसिक तनाव से होने वाली मौतें न के बराबर थीं. अधिकतर लोग पूरी आयु जीने के बाद ही देह त्याग करते थे.
इच्छा मृत्यु और रोगमुक्त शरीर
सतयुग और त्रेतायुग के शुरुआती काल में इच्छा मृत्यु की अवधारणा प्रचलित थी. इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी आयु पूरी होने पर स्वयं शरीर त्याग का समय चुन सकता था. शरीर इतना स्वस्थ और संतुलित होता था कि वृद्धावस्था तक गंभीर रोग नहीं होते थे. मृत्यु कष्टदायक न होकर शांत और चेतन अवस्था में होती थी.
मृत्यु के प्रमुख कारण क्या थे?
- त्रेतायुग में मृत्यु मुख्य रूप से तीन कारणों से होती थी
- पूर्ण वृद्धावस्था (जब जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाए)
- धर्म युद्ध (धर्म की रक्षा हेतु)
- श्राप या दैवी विधान
आज की तरह छोटी-छोटी बीमारियों, प्रदूषण या जीवनशैली जनित रोगों से मृत्यु होना उस युग में बहुत ही दुर्लभ माना गया है.
जल समाधि और स्वेच्छा से देह त्याग
भगवान राम और उनके भाइयों की मृत्यु को साधारण मृत्यु नहीं कहा जाता. शास्त्रों के अनुसार, अवतार कार्य पूर्ण होने के बाद भगवान राम ने सरयू नदी में जल समाधि ली. यह देह त्याग स्वेच्छा और पूर्ण चेतना के साथ हुआ. इसे आज की प्राकृतिक या आकस्मिक मृत्यु से बिल्कुल अलग माना जाता है.
युगों के अनुसार घटती मानव आयु
पुराणों में साफ रूप से बताया गया है कि जैसे-जैसे धर्म यानी पुण्य कार्य कम होते हैं और पाप कर्म बढ़ जाते हैं, तो मनुष्य की आयु भी घटती जाती है
- सतयुग: 1,00,000 वर्ष
- त्रेतायुग: 10,000 वर्ष
- द्वापरयुग: 1,000 वर्ष
- कलियुग: औसतन 100 वर्ष
कलियुग से तुलना करें तो क्या फर्क है?
आज के कलियुग में असमय मृत्यु आम है, रोग, तनाव, दुर्घटनाएं और मानसिक असंतुलन बढ़ गया है, जीवन छोटा लेकिन जटिल हो गया है. जबकि भगवान राम के युग में जीवन लंबा, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण था मृत्यु भय नहीं बल्कि एक स्वाभाविक पड़ाव मानी जाती थी लोग गरिमा और शांति के साथ देह त्याग करते थे. इसलिए भगवान राम के युग में मृत्यु कलियुग की तरह अचानक, पीड़ादायक या भयावह नहीं होती थी. लोग अपनी लंबी आयु पूरी कर, धर्म और कर्तव्य निभाकर, शांत भाव से शरीर त्याग करते थे. यही कारण है कि त्रेतायुग को आज भी आदर्श जीवन और आदर्श मृत्यु का प्रतीक माना जाता है.




