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पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है? PDP विधायक ने क्यों कहा जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ, जानें वजह

आम आदमी पार्टी के जम्मू-कश्मीर के एकमात्र विधायक मेहराज मलिक को 8 सितंबर को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत गिरफ्तार किया गया. उन्हें डोडा जिले में एक स्वास्थ्य केंद्र के स्थानांतरण को लेकर डोडा के डिप्टी कमिश्नर से हुई बहस के बाद गिरफ्तार किया गया था. इस बहस के दौरान उन्होंने कथित रूप से आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया. मेहराज मलिक की गिरफ्तारी के बाद से ही पब्लिक सेफ्टी एक्ट सुर्खियों में बना हुआ है.

विधायक पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाया गया है, इसको लेकर इस एक्ट पर अब अलग-अलग रिएक्शन सामने आ रहे हैं. पीडीपी विधायक ने इसे लोगों के खिलाफ बताया है. इसी बीच चलिए समझते हैं कि पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है जिसके तहत यह एक्शन लिया गया है.

क्या है पब्लिक सेफ्टी एक्ट?

यह कानून 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने लागू किया था. मानवाधिकार समूहों ने इस कानून को फासीवादी कानून करार दिया है. यह कानून सरकार को 18 साल से ज्यादा उम्र के किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए दो सालों तक प्रशासनिक आधार पर हिरासत में रखने की इजाजत देता है. पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत आदेश जारी करने की पावर संबंधित जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास होती है, जो जिले का डिप्टी कमिश्नर भी होता है.

पुलिस पहले आरोपी के खिलाफ एक केस फ़ाइल तैयार करती है, जिसे डॉसियर (dossier) कहा जाता है. यह एक तरह की चार्जशीट होती है. इसमें बताया जाता है कि आरोपी को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत क्यों हिरासत में लिया जाना चाहिए. इसके बाद यह फाइल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है. फाइल में दी गई जानकारी के आधार पर अधिकारी तय करता है कि हिरासत का आदेश जारी करना है या नहीं.

पहले भी किया गया इस्तेमाल

इससे पहले भी कई बार पीएसए के तहत कई लोगों पर एक्शन लिया गया है. मसरत आलम भट जो अलगाववादी संगठन जम्मू-कश्मीर मुस्लिम लीग के अध्यक्ष हैं उन पर इसके तहत एक्शन लिया गया. आलम पर पीएसए के तहत 37 बार मामला दर्ज किया गया. वो 2010 से 2015 तक जेल में रहे, इसके अलावा भी कई बार उन्हें हिरासत में लिया गया. फिलहाल वो मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की गिरफ्त में जेल में हैं.

2008 में अमरनाथ यात्रा भूमि विवाद को लेकर घाटी में हुए सड़क प्रदर्शन के बाद, तब की नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और बाद में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की सरकारों ने इस कानून का इस्तेमाल पत्थरबाज़ों और प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेने के लिए किया. इसके अलावा, अनुच्छेद 370 के निरस्त किए जाने के दौरान सुरक्षा अभियान के तहत 3 पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री — फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती — को भी पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया.

कानून में किया गया था संशोधन

कानून की व्यापक आलोचना के बाद, उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने 2011 में इस कानून में संशोधन किया. संशोधन के तहत, हिरासत में लिए जाने की न्यूनतम उम्र को 16 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया. सार्वजनिक अव्यवस्था से जुड़े मामलों में हिरासत के पीरियड को एक वर्ष से घटाकर तीन महीने कर दिया गया. राज्य की सुरक्षा से जुड़े मामलों में हिरासत की अवधि को दो वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दिया गया. हालांकि, कानून में यह प्रावधान भी है कि जरूरी होने पर हिरासत की अवधि को संशोधित कर सार्वजनिक अव्यवस्था के मामलों में एक वर्ष और सुरक्षा से जुड़े मामलों में दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है.

आरोपी के पास क्या होता है रास्ता?

पीएसए के तहत जिस व्यक्ति पर एक्शन लिया जाता है वो गृह विभाग के सामने पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है. अगर यह याचिका खारिज हो जाती है तो आरोपी हाई कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर कर सकता है. पिछले तीन दशकों में, PSA के तहत दर्ज अधिकांश मामलों को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

PDP विधायक ने बताया जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ

मेहराज मलिक की गिरफ्तारी के बाद अब पीडीपी विधायक वहीद परा का इस कानून पर रिएक्शन सामने आया है. उन्होंने कहा, पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) का हमेशा से जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ “दुरुपयोग” किया गया है और अब समय आ गया है कि इसे गंभीरता से दोबारा देखा जाए. उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, विधायक मेहराज मलिक के खिलाफ पीएसए के इस्तेमाल की हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं. ऐसे कठोर और दमनकारी कानून राजनीतिक आवाजों को दबाने और असहमति को कुचलने का हथियार बनते हैं.

वहीद परा ने इसको लेकर कहा, पीएसए का हमेशा से जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ गलत इस्तेमाल होता रहा है. लोगों में इसके खिलाफ असंतोष है और इसका इस्तेमाल बंद करने की जरूरत है. इसलिए सभी संस्थाओं को इस पर बातचीत करनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि कानून और इसके लागू करने के तरीके पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. परा ने मेहराज मलिक की पीएसए के तहत गिरफ्तारी को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव इसलिए लड़ा था ताकि सभी मिलकर इस “काले कानून” को खत्म करें, लेकिन यह दुख की बात है कि इस पर चर्चा तक नहीं हो रही.

मेहराज मलिक की गिरफ्तारी पर सीएम उमर अब्दुल्ला का भी रिएक्शन सामने आया था. सीएम उमर अब्दुल्ला ने विधायक मलिक की गिरफ्तारी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ अनिर्वाचित सरकार की ओर से सत्ता का गलत इस्तेमाल करार दिया था.

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