बाप का… दादा का… और अपना… सबका इतिहास दोहराएंगे उमर अब्दुल्ला, इसीलिए पहुंच गए गांदरबल
जम्मू-कश्मीर में 3 दशक से भी लंबे समय बाद कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ चुनाव से पहले समझौता किया है. समझौते के बाद दोनों दल सीटों के बंटवारे पर काम कर रहे हैं. इस बीच नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला गांदरबल विधानसभा सीट से एक बार फिर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. यह सीट अब्दुल्ला परिवार के लिए बेहद खास है क्योंकि इसी सीट पर उनके दादा ने चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री बने फिर उनके पिता फारूक अब्दुल्ला भी यहीं से चुनाव जीत कर सीएम की दहलीज तक पहुंचे थे. उमर भी जब मुख्यमंत्री बने तो वह गांदरबल सीट से ही विधायक चुने गए थे.
हालांकि खास बात यह है कि प्रतिष्ठित अब्दुल्ला परिवार के वारिस उमर अब्दुल्ला ने एक बार ऐलान किया था कि केंद्र शासित प्रदेश के तहत वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद उन्होंने अपने पुराने वादे से यू-टर्न ले लिया. अब वह गांदरबल विधानसभा सीट से एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं.
गांदरबल में 5 बार अब्दुल्ला परिवार जीता
गांदरबल विधानसभा सीट साल 1962 में अस्तित्व में आई. अब तक इस सीट पर 10 बार हुए चुनाव में 5 बार अब्दुल्ला परिवार का कब्जा रहा और 7 बार सीएम पद की शपथ ली. जब-जब इस सीट से अब्दुल्ला परिवार के किसी भी सदस्य को जीत मिली तो वह वहां का मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहा. इस परंपरा की शुरुआत साल 1977 में विधानसभा चुनाव के दौरान हुई. जुलाई 1977 में विधानसभा चुनाव के बाद उमर के दादा शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में शेख ने गांदरबल सीट से ही जीत हासिल की थी और वह सत्ता तक पहुंचने में कामयाब रहे थे. वह पहली विधायक चुने गए थे.
इससे पहले शेख अब्दुल्ला विधान परिषद के सदस्य बने थे. 1975 में वह पहली बार जब मुख्यमंत्री बने तो बतौर एमएलसी उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी. यहां पर 1947 से 1965 तक प्रदेश के मुखिया को प्रधानमंत्री कहा जाता था, लेकिन 1965 में यहां पर बदलाव किया गया और अब मुखिया को मुख्यमंत्री कहा जाने लगा था.
शेख अब्दुल्ला के बाद बेटा बना CM
8 सितंबर 1977 को शेख अब्दुल्ला का निधन हो गया और उनके बाद मुख्यमंत्री पद पर उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला काबिज हुए. वह भी इसी सीट से विधायक बने और फिर मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे. साल 1983 के विधानसभा चुनाव में फारूक अब्दुल्ला ने अपने पिता की सीट को ही चुना और जीत हासिल की. कांग्रेस तब चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ उतरना चाहती थी, लेकिन समझौता नहीं हुआ और अकेले ही चुनाव लड़ना पड़ा. फारूक अब्दुल्ला की अगुवाई में पार्टी विजयी हुई. वह गांदरबल सीट से विजयी हुए और दूसरी बार यहां पर मुख्यमंत्री बने.
हालांकि करीब 7 महीने तक पद पर बने रहने के बाद वहां पर बड़ा सियासी उलटफेर हो गया. केंद्र में राजीव गांधी की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नेशनल कॉन्फ्रेंस में जारी अंदरुनी विवाद का फायदा उठाया और कई विधायकों को तोड़ दिया. इस वजह से फारूक अब्दुल्ला सरकार अल्पमत में आ गई और उसे इस्तीफा देना पड़ गया. फिर फारूक अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह मुख्यमंत्री बने और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार अस्तित्व में आ गई. हालांकि यह सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी. पहले राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति शासन लगने के बाद फारूक अब्दुल्ला की वापसी हुई.
5वें प्रयास में फारूक ने पूरा किया कार्यकाल
गांदरबल से विधायक फारूक अब्दुल्ला एक ही यानी सातवीं विधानसभा में दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. 1987 के विवादित चुनाव में फारूक अब्दुल्ला की पार्टी कांग्रेस के साथ विजयी हुई और वह फिर से मुख्यमंत्री बने. इस बार भी वह गांदरबल से विधायक चुने गए थे. हालांकि इस दौर में राज्य में आकंतवाद पनपने लगा और जनवरी 1990 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को हटा दिया गया. राज्यपाल शासन के बाद 6 साल से अधिक समय तक राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद 1996 में फिर से चुनाव कराया गया.
अक्टूबर 1996 के चुनाव में फारूक अब्दुल्ला ने गांदरबल से चुनाव लड़ा और उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन वह सरकार बनाने में कामयाब रही. फारूक अब्दुल्ला ने पांचवीं बार और अंतिम बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस बार उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.
गांदरबल से हारे फिर यहीं से CM बने
इस बीच अब्दुल्ला परिवार की एक और पीढ़ी की राजनीति में एंट्री हो गई. फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला ने 28 साल की उम्र में 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और विजयी भी रहे. साल 1999 में वह फिर से सांसद चुने गए और जुलाई 2021 में वह केंद्रीय मंत्री भी बने. हालांकि वह ज्यादा समय तक केंद्र की राजनीति में नहीं रहे. दिसंबर 2002 को इस्तीफा देकर राज्य की राजनीति में लौटे और पार्टी का काम देखने लगे. 23 जून 2002 को वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष बन गए.
हालांकि इसी साल अक्टूबर-नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला ने दादा और पिता की राह पर चलते हुए गांदरबल सीट से ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया, लेकिन यह फैसला गलत साबित हुआ और वह चुनाव हार गए. पार्टी भी सत्ता से दूर हो गई. फिर साल 2008 के अंतर में राज्य में विधानसभा चुनाव कराए गए. नेशनल कॉन्फ्रेंस फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस के दम पर सरकार बनाने का फैसला लिया.
तीसरी बार चुनाव मैदान में उमर अब्दुल्ला
उमर अब्दुल्ला ने 5 जनवरी 2009 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. खास बात यह है कि 2008 के अंत में नबंवर-दिसंबर में हुए इस चुनाव में उन्होंने गांदरबल से ही चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे. अपने पिता की तरह उन्होंने अपने पहले मुख्यमंत्रीत्व कार्यकाल भी पूरा किया.
गांदरबल सीट से उमर अब्दुल्ला अब तीसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. उनके पिता 5 बार मुख्यमंत्री बने और हर बार गांदरबल सीट से ही प्रतिनिधित्व किया था. दादा भी इसी सीट से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे. उमर एक बार मुख्यमंत्री बने और वह गांदरबल से चुने गए. एक बार फिर उमर ने गांदरबल सीट को चुना है तो देखना होगा कि कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाते हैं या नहीं.