लोकसभा चुनाव में मिली हार से उमर अब्दुल्ला को बनाना पड़ा बैकअप प्लान, फिर भी दोनों सीटों पर सियासी चक्र में फंसे
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की 26 सीटों पर सोमवार शाम को प्रचार का शोर थम जाएगा. इस फेज में सभी की निगाहें नेशनल कॉफ्रेंस के नेता और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला पर लगी हुई है. लोकसभा चुनाव में निर्दलीय इंजीनियर राशिद के हाथों में शिकस्त खाने वाले उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव में बैकअप प्लान के साथ विधानसभा चुनाव में उतरे हैं. उमर अब्दुल्ला अपने परंपरागत गांदरबल के साथ बडगाम विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. भले ही बीजेपी ने उन्हें दोनों सीटों पर वॉकओवर दे रखा हो, लेकिन उसके बाद भी उमर अब्दुल्ला सियासी चक्रव्यूह में फंस गए हैं.
उमर अब्दुल्ला गांदरबल विधानसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं, यहां से उमर के दादा शेख अब्दुल्ला और पिता फारूक अब्दुल्ला विधायक रह चुके हैं. इस बार गांदरबल सीट पर चुनावी मुकाबला काफी अलग है. उमर के खिलाफ पीडीपी से बशीर अहमद मीर, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) कैसर सुल्तान गनी और अपनी पार्टी से काजी मुबिशर फारूक के उतरने से मुकाबला काफी रोचक हो गया है.
बडगाम सीट पर आठ उम्मीदवार
गांदरबल विधानसभा सीट के साथ-साथ उमर अब्दुल्ला बडगाम सीट से भी किस्मत आजमा रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस की परंपरागत सीट माने जाने वाली बडगाम सीट पर इस आठ उम्मीदवार मैदान में है. पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ेंगे. पीडीपी ने उमर अब्दुल्ला को चुनौती देने के लिए प्रमुख शिया नेता और हुर्रियत के पूर्व नेता आगा सैयद हसन के बेटे आगा सैयद मुंतजिर को मैदान में उतारा है. अब्दुल्ला के तीन बार बडगाम से जीत चुके आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी का समर्थन प्राप्त है, जो इस निर्वाचन क्षेत्र में काफी प्रभाव रखने वाले एक सम्मानित शिया नेता हैं. सांसद मेहदी का लंबे समय से बडगाम की राजनीतिक में दखल रही है.
लोकसभा में इंजीनियर राशिद से हारे
लोकसभा चुनाव 2024 में बारामूला सीट पर उमर अब्दुल्ला को जेल में बंद अलगाववादी नेता इंजीनियर राशिद ने मात दी थी. लोकसभा चुनाव में मिली हार ने उमर अब्दुल्ला को बड़ा सियासी झटका दिया था. इसलिए उन्होंने दो सीटों पर चुनावी मैदान में उतरकर बैकअप प्लान बनाया है, लेकिन बडगाम और गांदरबल सीट पर विपक्ष ने मजबूत प्रत्याशी उतारकर उमर अब्दुल्ला के खिलाफ जबरदस्त तरीके से घेराबंदी की है. हालांकि, बीजेपी ने दोनों ही सीटों पर कोई भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है, लेकिन उमर के खिलाफ मजबूत चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को इंटर सपोर्ट कर रही है.
दोनों विधानसभा सीटों पर चुनौती
बडगाम और गांदरबल दोनों ही विधानसभा सीटों पर उमर अब्दुल्ला को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. गांदरबल सीट पर जेल में बंद अलगाववादी नेता सरजन अहमद वागे उर्फ मौलाना सरजन बरकती ने चुनाव लड़कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. बरकती के समर्थक और उनकी बेटी सुगरा ने पिता के लिए कैंपेन की कमान संभाल रखी थी. पीडीपी के बशीर अहमद मीर, डीपीएपी के कैसर सुल्तान गनी और अपनी पार्टी के काजी मुबिशर फारूक के साथ-साथ उमर अब्दुल्ला को बरकाती से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है.
आसान नहीं होगी जीत की राह
अब्दुल्ला के मजबूत समर्थन के बावजूद भी राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार उनकी जीत की राह आसान नहीं होगी. उमर ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पहले गांदरबल को ही चुना, लेकिन विरोधियों की रणनीति ने बडगाम से भी लड़ने को मजबूर कर दिया. उमर अब्दुल्ला 2002 के चुनाव में इस सीट पर हार गए थे, लेकिन 2008 में जीतकर सीएम बने थे. बडगाम में आगा सैयद मुंतजिर को अपने पिता के बडगाम में शिया समुदाय के बीच गहरे प्रभाव के कारण काफी समर्थन प्राप्त है.
बडगाम सीट पर एनसी का कब्जा
1972 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर, 1977 से नेशनल कॉफ्रेंस का बडगाम सीट पर कब्जा रहा. सैयद गुलाम हुसैन गिलानी और आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी जैसे एनसी नेताओं ने सामूहिक रूप से पार्टी के लिए सात जीत हासिल की हैं. चार बार के विजेता गिलानी ने 1977, 1983, 1987 और 1996 के चुनावों में प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों को हराया. आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने उनके पदचिन्हों पर चलते हुए 2002, 2008 और 2014 में लगातार तीन बार यह सीट जीतने में सफल रहे हैं. ऐसे में निगाहें बडगाम पर हैं कि उमर अब्दुल्ला एनसी के दशकों पुराने वर्चस्व को जारी रख पाएंगे या पीडीपी के आगा सैयद मुंतजिर की जीत का सिलसिला तोड़ देंगे.
प्रतिष्ठा की लड़ाई
अब्दुल्ला परिवार का गढ़ माने जाने वाली गांदरबल विधानसभा सीट उमर अब्दुल्ला के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है. गांदरबल सीट को लेकर उमर अब्दुल्ला किस तरह मशक्कत रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने नामांकन भरते वक्त लोगों से एक भावुक अपील की थी. उन्होंने अपनी टोपी उतारकर अपनी हथेलियों में पकड़कर लोगों से उन्हें वोट देने का आग्रह किया और कहा कि उनका सम्मान उनके (लोगों के) हाथों में है. इतना ही नहीं उमर के बेटे ने भी अपने पिता को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है.
बाहरी होने की चुनौती का सामना
पीडीपी के बशीर अहमद मीर पड़ोसी कंगन सीट से दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इस बार गांदरबल से मैदान में है. मीर गांदरबल जिले की स्थानीय आबादी के लिए एक नायक हैं, क्योंकि उन्होंने सिंध नदी से कई लोगों को बचाया है और कई बार ऐसे बचाव कार्यों में पुलिस की मदद की है. ऐसे में उमर अब्दुल्ला को बाहरी होने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे जब्बार ने भी इसे अपने प्रचार अभियान का प्रमुख मुद्दा बनाया है. जेल में बंद मौलवी सरजन वागे, जिन्हें सरजन बरकती के नाम से जाना जाता है और बारामूला के सांसद इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी के प्रत्याशी शेख आशिक के मैदान में उतरने से चुनावी जंग और रोमांचक हो गई है.