मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का बयान: वंदे मातरम पढ़ना इस्लाम के खिलाफ नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के राष्ट्रीय संयोजक एसके मुद्दीन ने गुरुवार को कहा कि वंदे मातरम का पाठ करना इस्लाम के खिलाफ नहीं है और जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे मुस्लिम समुदाय को गुमराह कर रहे हैं.
भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो रहे हैं. इस मौके पर केंद्र सरकार ने देश भर के 150 स्थानों पर कार्यक्रम आयोजन का फैसला किया है. इसके तहत सामूहिक रूप से वंदे मातरम गाया जाएगा.
साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दिल्ली में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन करेंगे और एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी करेंगे. मुद्दीन ने एक बयान में कहा, वंदे मातरम का अर्थ है हे मातृभूमि, मैं आपको सलाम करता हूं. इसे शरीयत के अनुसार गैर-इस्लामी कैसे कहा जा सकता है? जबकि यह उपजाऊ भूमि, पेड़ों, फूलों, पानी, पहाड़ों और देश की खूबसूरत सुबह और शाम की प्रशंसा करता है.
मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश
मुद्दीन ने कहा कि यह गीत राष्ट्र के लिए प्यार को व्यक्त करता है, जिसे इस्लाम में हुब्ब-उल-वतानी और हिंदी में राष्ट्रवाद के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कहा कि कुछ कट्टरपंथी मुसलमान इसे पूजा से जोड़कर गुमराह करने की कोशिश करते हैं. मुसलमानों को वंदे मातरम कहते हुए गर्व महसूस करना चाहिए और इसे गर्व के साथ पढ़ना चाहिए.
वंदे मातरम गीत का अनुवाद
मुद्दीन ने दावा किया कि आजादी से पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद और अन्य प्रमुख मुस्लिम इसे गर्व के साथ पढ़ते थे, लेकिन आजादी के बाद कुछ अलगाववादी तत्वों ने समुदाय को गुमराह करने और इसे राष्ट्रीय मुख्यधारा से दूर रखने की कोशिश की. मुद्दीन ने कहा कि 2006 में, मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने इस गीत का अनुवाद किया और राज्य भर में बोर्ड के साथ पंजीकृत सभी मदरसों और मुसलमानों के बीच प्रसारित किया.




