60 से अधिक केस, घर में घुसकर हत्या, ये हैं मुख्तार अंसारी की जिंदगी से जुड़ी 15 कहानियां
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की आधे से ज्यादा जिंदगी अपराध की दुनिया में बीती. 6 फीट से ज्यादा ऊंचे कद वाले इस डॉन खौफ इतना था कि जब वह चलता था तो लोग रास्ता छोड़ देते थे. मुख्तार अंसारी 2005 में मऊ दंगों का आरोपी बना, और तभी से जेल में था.
रौबदार मूंछों वाला मुख्तार अंसारी अब अतीत हो चुका है. 28 मार्च की रात 8 बजकर 25 मिनट पर उसकी मौत हो गई. वह यूपी के बांदा जेल में कैद था. जिंदगी के आखिरी दिन भले ही सलाखों के पीछे रहा हो, लेकिन यूपी में कभी इसकी तूती बोलती थी. पूरा सूबा मुख्तार के नाम से कांपता था. मुख्तार के माफिया डॉन बनने की कहानी अस्सी के दशक में शुरू हुई. जब छोटे-मोटे अपराधी पूर्वांचल में माफिया बनकर उभरे.
उन्हें ठेके हासिल करने के लिए गैंग की जरूरत थी और गैंगस्टर की भी. इसी दौर में मुख्तार भी अपराध की पिच पर तेज गेंद फेंकने के लिए तैयार हो गया. मुख्तार एक रसूख जमींदार परिवार से था. एक बार मुख्तार के पिता और दबंग किस्म के ठेकेदार सच्चिदानंद राय आपस में भिड़ गए. मामला गाली गलौज तक पहुंचा. बस, यही गाली-गलौज मुख्तार की जिंदगानी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.
मुख्तार के परिवार का आरोप है कि बांदा जेल में उनको धीमा जहर दिया जा रहा था. दो दिन पहले ही मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी ने यह आरोप लगाया था कि उनके भाई को जेल में मारने की साजिश रची जा रही है. अफजाल ने कहा था कि मुख्तार अंसारी के खाने में जहरीला पदार्थ मिला कर दिया जा रहा है. मुख्तार अंसारी अपने पीछे ऐसी कई कहानियों को छोड़ गया है जिसकी अब चर्चा हो रही है. उनमें से 15 चर्चित कहानियों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.
कहानी नंबर- 1: कॉलेज के जमाने में साधु सिंह गैंग में हुआ शामिल
मुख्तार अंसारी की कहानी तमाम विरोधाभासों से भरी पड़ी है. बताते हैं कि बचपन में क्रिकेट खेलने और तेज गेंदबाज बनने का शौक रखने वाले मुख्तार अंसारी को शूटिंग का भी शौक था. कॉलेज के जमाने में वह साधु सिंह के गैंग में शामिल हो गया. इसके बाद जुर्म की दुनिया में उसने ऐसे कदम बढ़ाए कि फिर लौटना मुश्किल हो गया. उसने 1985 में 23 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रखा. मुख्तार ने एक दीवार की सुराख से निशाना लगाकर दुश्मन को ढेर किया और फिर आहिस्ता-आहिस्ता जुर्म का मुख्तार बनने लगा.
कहानी नंबर- 2: पूर्वांचल में अपराध का नया अध्याय
1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर स्थानीय ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में नाम आया. फिर कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या का आरोप भी उस पर लगा. ये वो दौर था जब बृजेश सिंह का नाम भी पूर्वांचल में तमाम सरकारी ठेकों पर भी कब्जेदारी को लेकर आने लगा. इसी ठेकेदारी पर कब्ज़ा करने को लेकर बृजेश सिंह और मुख्तार में सरेआम टकराव हुआ और पूर्वांचल में अपराध का नया अध्याय शुरू हुआ.
कहानी नंबर- 3: गांव में घुसकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या
मुख्तार के पिता उस समय नगर पंचायत अध्यक्ष और भाई अफजाल अंसारी मोहम्मदाबाद के विधायक थे. सियासत के पारिवारिक रसूख ने मुख्तार अंसारी को बेखौफ बना दिया. उसने 1998 में गांव में घुसकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी. इस हत्याकांड में साधु सिंह और मखनू सिंह ने मुख्तार की मदद की. ये दोनों मुख्तार के आपराधिक गुरु थे. आरोप है कि साधु सिंह और मखनू के दुश्मन रंजीत सिंह की हत्या भी मुख्तार अंसारी ने कर दी. इस वारदात से पूर्वांचल में खलबली मच गई. रंजीत सिंह का रिश्ता त्रिभुवन सिंह गैंग से था जिसका शार्गिद ब्रजेश सिंह था. आरोप है कि बृजेश सिंह ने आपराधिक गुरू त्रिभुवन सिंह के कहने पर मुख्तार के गुरु साधु सिंह की हत्या कर दी. पूर्वांचल में गैंगवार के कारण बंदूकें गरजने लगीं. सरकारी योजनाओं की ठेकेदारी, शराब के ठेकों के लिए लाशें बिछने लगीं.
कहानी नंबर-4: 65 से अधिक केस दर्ज
यूपी सरकार की लिस्ट में मुख्तार का नाम नंबर वन माफिया के तौर पर दर्ज था. उत्तर प्रदेश पुलिस के अलग-अलग थानों की क्राइम फ़ाइल में मुख्तार पर 65 से अधिक केस हैं. चंद अपराधों को छोड़ दें तो ऐसा कोई संगीन जुर्म नहीं है. जिसके आरोप मुख्तार अंसारी के सिर नहीं है. मुख्तार का दबदबा बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, मऊ जैसे जिलों में था. ये वही इलाका है जहां बृजेश सिंह की भी तूती बोलती थी. योगी सरकार अब तक मुख्तार अंसारी और उसके गैंग की 192 करोड़ रुपए से ज्यादा संपत्तियों को या तो ध्वस्त कर चुकी है या फिर जब्त कर चुकी है. मुख्तार गैंग के अब तक करीब 100 अभियुक्त गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इनमें से मुख्तार के 75 गुर्गों पर गैंगस्टर एक्ट में कार्रवाई की जा चुकी है.
कहानी नंबर-5: गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे पिता
मुख्तार अंसारी भले ही संगठित अपराध का चेहरा बन गया था पर उसकी छवि रॉबिन हुड की रही है, लेकिन वह गरीबों की मदद भी करता था. गाजीपुर में उसके परिवार की पहचान प्रथम राजनीतिक परिवार की है. उसके परिवार का गौरवशाली इतिहास है. मुख्तार अंसारी के दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे. वे 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और वे गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे. उनकी याद में दिल्ली की एक रोड का नाम भी उनके नाम पर है. मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र दिया गया था. मुख्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी गाजीपुर में अपनी साफ सुथरी छवि के साथ राजनीति में सक्रिय रहे. देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा हैं.
कहानी नंबर-6: उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में शामिल रहा
माफिया मुख्तार अंसारी बीजेपी को छोड़कर उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में शामिल रहा. यही वजह रही कि वह 24 साल से लगातार यूपी की विधानसभा पहुंचता रहा. साल 1996 में BSP के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख्तार अंसारी ने साल 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आखिरी 3 चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े और जीते. BSP के टिकट पर 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट से भी किस्मत आजमाई. बीजेपी के डॉ मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया.
कहानी नंबर-7: 2010 में कौमी एकता दल बना
इसके बाद अंसारी बंधुओं ने छोटे दलों को मिलाकर साल 2010 में कौमी एकता दल का गठन किया. साल 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले गाजीपुर के लंका मैदान में शक्ति प्रदर्शन हुआ, जिसमें खूब भीड़ उमड़ी. इसी पार्टी के नाम पर अंसारी बंधुओं ने 2012 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, दूसरों को लड़ाया भी लेकिन सफल नहीं हुए.
कहानी नंबर-8: सियासी अदावत ने बनाया क्रूर
सियासी अदावत ने जुर्म की दुनिया में मुख्तार अंसारी को और क्रूर बना दिया. साल 2002 ने मुख्तार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दी. इसी साल बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास साल 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली थी. यह बात मुख्तार अंसारी को नागवार गुजरी और कृष्णानंद राय उसके टारगेट पर आग गए. नतीजा ये रहा कि कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. 3 साल बाद यानी साल 2005 में उनकी हत्या कर दी गई. कृष्णानंद राय एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे. तभी उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की गई. हमले के लिए ऐसी जगह को चुना गया था, जहां से गाड़ी को दाएं-बाएं मोड़ने का कोई रास्ता नहीं था. हमलावरों ने AK-47 से करीब 500 राउंड गोलियां बरसाई थीं. जिसमें कृष्णानंद राय समेत गाड़ी में मौजूद सभी 7 लोग मारे गए थे.
कहानी नंबर-9: सीबीआई कोर्ट ने किया बरी
विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड को सटीक मुखबिरी के दम पर अंजाम दिया गया था. इस हत्याकांड ने पूरे देश में सनसनी मचा दी. इसकी जांच यूपी पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपी गई थी. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 2013 में गाजीपुर से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया. मगर, गवाहों के मुकर जाने और हत्या के पर्याप्त सबूत न मिलने से सीबीआई कोर्ट ने मुख्तार समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. दिल्ली की स्पेशल कोर्ट ने कृष्णानंद राय मर्डर केस में साल 2019 में फैसला सुनाते कहा था कि अगर गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम-2018 का लाभ मिलता, तो नतीजा कुछ और हो सकता था.
कहानी नंबर-10: चश्मदीद तक गवाही देने से डरते रहे
मुख्तार का खौफ इतना था कि कई केसों के चश्मदीद तक उसके अपराध की गवाही देने सामने नहीं आए. जो कोर्ट तक पहुंचने की कोशिश करते उन्हें डरा-धमकाकर चुप करा दिया जाता था और जो नहीं मानता था, उसे खत्म कर दिया जाता था, लेकिन समय का चक्र घूमा और 21 सितंबर 2022 को हाई कोर्ट ने उसे पहली बार सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई. इसके बाद 23 सितंबर, 2022 को लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में पांच वर्ष की सजा सुनाई गई. 29 अप्रैल, 2023 को गाजीपुर में ही दर्ज गैंगस्टर एक्ट के एक अन्य मामले में दस वर्ष की सजा हुई. 5 जून 2023 को अदालत ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. इसके बाद 13 मार्च 2024 को फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में दूसरी बार उम्रकैद की सजा हुई. 9 महीने में मुख्तार को दो बार उम्रकैद की सजा मिली.
कहानी नंबर-11: LMG की डील
मुख्तार के नाम एक ऐसा भी केस दर्ज है, जिसने सरकार तक को हिला डाली थी. मुख्तार पर LMG का सौदा करने पर पोटा लगाने वाले पुलिस अधिकारी को महकमा छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था. बात साल 2004 की है. पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह वाराणसी में एसटीएफ चीफ थे. उनको वहां माफिया मुख्तार अंसारी और बीजेपी नेता कृष्णानंद राय के बीच होने वाले गैंगवार पर नजर रखने के लिए भेजा गया था. इस बारे में शैलेंद्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे मुख्तार अंसारी पर नजर रखने के लिए उसका फोन टेप करने लगे. एक दिन मुख्तार अंसारी किसी से एलएमजी यानी लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा था. वो उससे कह रहा था कि किसी भी कीमत पर उसे एलएमजी चाहिए. वो इससे कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था. उसने 2004 में आर्मी के एक भगोड़े से चुराई गई लाइट मशीन गन खरीदने की डील की थी. जो करीब एक करोड़ रुपए में हुआ था.
कहानी नंबर-12: पत्नी अफसा अंसारी के खिलाफ 11 मुकदमे
अपराध की दुनिया में अपने परिवार से मुख्तार अंसारी इकलौता शख्स नहीं था. मुख्तार की पत्नी अफसा अंसारी के खिलाफ 11 मुकदमे दर्ज हैं. इनमें धोखाधड़ी व गैंगेस्टर एक्ट समेत अन्य धाराओं में मुकदमे शामिल हैं. मुख्तार के बड़े भाई पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी के खिलाफ भी कई मुकदमे दर्ज हैं. सांसद रह चुके अफजाल अंसारी के खिलाफ सात मुकदमे दर्ज हैं. हत्या के एक मुकदमे की सीबीआई जांच चल रही है. मुख्तार के विधायक बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ आठ मुकदमे दर्ज हैं. अब्बास की पत्नी निखत के खिलाफ भी आपराधिक षड्यंत्र समेत कई अन्य धाराओं में केस दर्ज है. मुख्तार के दूसरे बेटे उमर अंसारी के खिलाफ धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं छह केस दर्ज हैं.
कहानी नंबर-13: जेल में ही खुदवा दिया तालाब
मुख्तार जेल से ही गैंग चलाता रहा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मार्च 2023 में एक शूटर की जमानत पर सुनवाई करते हुए मुख्तार गैंग को देश का सबसे खतरनाक गिरोह कहा था. कहा जाता है कि रुतबा इतना था कि मछलियां खाने के लिए गाजीपुर जेल में ही तालाब खुदवा दिया. ये बात 2005 की है, जब मऊ में हिंसा भड़कने के बाद मुख्तार अंसारी ने सरेंडर किया था। उसे गाजीपुर जेल में रखा गया. मुख्तार तब विधायक था. उसने ताजी मछलियां खाने के लिए जेल में ही तालाब खुदवा दिया था. राज्यसभा सांसद और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने भी इस बात को माना था. मुख्तार तब गाजीपुर जेल में डीएम समेत बड़े अधिकारियों के साथ बैडमिंटन खेला करता था.
कहानी नंबर-14: पंजाब से यूपी की बांदा जेल लाया गया
मुख्तार के रुतबे की एक कहानी बांदा जेल की भी है. मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से अप्रैल 2021 में. यूपी की बांदा जेल शिफ्ट किया गया. इसका असर ये हुआ कि कोई भी जेलर इस जेल का चार्ज लेने के लिए ही तैयार नहीं हुआ. बाद में दो जेल अधिकारियों विजय विक्रम सिंह और एके सिंह को भेजा गया. जून 2021 में बांदा जिला प्रशासन ने जेल पर छापा मारा. उस दौरान कई जेल कर्मचारी मुख्तार की सेवा में लगे मिले. तत्कालीन डीएम अनुराग पटेल और एसपी अभिनंदन की जॉइंट रिपोर्ट पर डिप्टी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह और 4 बंदी रक्षक सस्पेंड कर दिए गए थे.
कहानी नंबर-15: डेढ़ साल में 8 बार सजा
पंजाब के रोपड़ जेल से यूपी आने के बाद मुख्तार पर कानून का शिकंजा कसता ही गया. बीते डेढ़ साल में उसे आठ बार सजा हुई. जिसमें दो बार आजीवन कारावास की सजा भी थी. मुख्तार के पंजाब की जेल में रहने को लेकर लेकर जमकर सियासत हुई थी. पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर रोपड़ जेल में मुख्तार को वीआईपी ट्रीटमेंट देने के आरोप लगे थे. मुख्तार को वापस लाने के लिए यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा. जहां पंजाब पुलिस की तमाम दलीलों के बावजूद मुख्तार को यूपी वापस भेजने का आदेश दिया गया. इसके बाद 6 अप्रैल 2021 को उसे रोपड़ जेल से एंबुलेंस के जरिए कड़ी सुरक्षा में बांदा जेल लाया गया था. जेल में उसे तन्हाई बैरक में CCTV की निगरानी में रखा गया था.