हरियाणवी संस्कृति के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता व फूहड़ता पर लगाम कसने के लिए सेंसर बोर्ड गठित करे सरकार: पंडित विष्णु दत्त कौशिक
कहा, पंडित लख्मीचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए

सोमवीर शर्मा
भिवानी, (ब्यूरो): हरियाणवी संस्कृति के नाम पर परोसी जा रही फूहड़ता व अश्लीलता पर काबू पाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा सेंसर बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। इसके बाद ही गीत व हरियाणवी नाटकों की लांचिंग हो। यह बात हरियाणा के महान दार्शनिक, सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद की तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे उनके पौत्र पंडित विष्णु दत्त कौशिक जाट्टी कलां ने जगत क्रान्ति के ब्यूरो चीफ सोमवीर शर्मा के साथ विशेष बातचीत करते हुए कही। पंडित विष्णु दत्त कौशिक अपनी टीम के साथ यहां गांव उमरावत में म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन द्वारा पंडित लख्मीचंद जयंती पर आयोजित चार दिवसीय सांग में प्रस्तुति देने आए हुए थे। पंडित विष्णुदत्त ने कहा कि पहले की अपेक्षा अब सांग की लोकप्रियता बढ़ी है। 1990 तक गड़वे व बेंजों पर रागनी गाई जाती थी। पंडित लख्मीचंद की इस विरासत को सहेजने व आगे बढ़ाने के लिए उनके पुत्र पंडित तुले राम ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इसके बाद तीसरी पीढ़ी में उनके पौत्र पंडित विष्णु दत्त कौशिक भी अपने दादा की विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन में अति प्रशंसनीय भूमिका अदा कर रहे हैं। वे पिछले 15 वर्षों के दौरान, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उत्तर प्रदेश तथा बिहार में 3500 से अधिक सांग कर चुके हैं। वे अपने दादा द्वारा बनाए गए ‘ताराचन्द’ के तीन भाग, ‘शाही लकड़हारा’ के दो भाग, ‘पूर्णमल’, ‘सरदार चापसिंह’, ‘नौटंकी’, ‘मीराबाई’, ‘राजा नल’, ‘सत्यवान-सावित्री’, महाभारत का किस्सा ‘कीचक द्रोपदी’, ‘पद्मावत’ आदि दर्जन भर साँगों का हजारों बार मंचन कर चुके हैं और आज भी लोगों की भारी भीड़ उन्हें सुनने के लिए दौड़ी चली आती है।
उन्होंने कहा कि सांग एक प्राचीन विधा है,जिसके द्वारा किस्सों को दर्शकों के बीच बताया जाता है। वर्तमान में कुछ सांगी सांग के मंचन के दौरान डी.जे.भी चलाते हैं। इस दौरान दर्शकों का तो मनोरंजन होता है लेकिन सांग की विधा कायम नहीं रहती। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने हरियाणवी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जो प्रयास किए हैं , वे सराहनीय है लेकिन पर्याप्त नहीं है। हरियाणा कला परिषद के माध्यम से विभिन्न संस्थाओं द्वारा सांग, रागनी व नाटकों का मंचन किया जा रहा है। लेकिन इसको और भी आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सांग की टोली में नई पौध नहीं जुड़ रही है। इसका कारण इस क्षेत्र में आर्थिक तंगी है। अगर सरकार प्रोत्साहन दे तो नए युवा भी सांग से जुड़ेंगे और हरियाणवी संस्कृति भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि आज हरियाणवी संस्कृति के नाम पर फूहड़ता व अश£ीलता परोसी जा रही है। गीतों में जो शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, उसने रिश्तों के मायने बदल दिए हैं। उदाहरण के तौर पर हरियाणा में देवर-भाभी का रिश्ता बहुत ही पवित्र माना गया है। भाभी को मां का दर्जा दिया गया है लेकिन सस्ती लोकप्रियता हासिल करने व रातों रात स्टार बनने के चक्कर में गीतकार व गायकों ने गीतों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है कि परिवार एक साथ बैठकर गीत नहीं चुन सकता। उन्होंने कहा कि गीतों के शब्दों में संस्कार नाम की चीज नहीं है। उन्होंने कहा कि कई गीतकार व गायकों की बदौलत आज हरियाणवी संस्कृति को बढ़ावा तो मिला है। उसका उदाहरण यह है कि आज शादी विवाह में पंजाबी गीतों की बजाये हरियाणवी गीत बजाए जाते हैं लेकिन उन गीतों में शब्दों का चयन सही नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के पुलिस विभाग ने गीतों में हथियार व शराब के प्रयोग को लेकर जो एफआईआर व चैनल बैन करने का फैसला लिया है वह सही है। इससे काफी हद तक लगाम लगेगी। गीतों में शराब की बोतल व बंदूक दिखाकर युवाओं को गलत संदेश दिया जा रहा है जोकि सही नहीं है। लेकिन उनका मानना है कि हरियाणा सरकार को सेंसर बोर्ड लागू करना चाहिए। कोई भी गीत व नाटक या एल्बम उसकी निगरानी से गुजरनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो अश£ीलता व फूहड़ता अपने आप ही बंद हो जायेगी। उन्होंने कहा कि आज युवाओं को सही दिशा देने की जरूरत है। नशाखोरी के खिलाफ सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान का हमें समर्थन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हरियाणा एक समृद्ध प्रदेश है, यहां पर नशे का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हरियाणा के महान दार्शनिक रहे व सैकड़ों साल पहले भविष्य के हालात को अपने शब्दों में पिरोने वाले पंडित लख्मीचंद को भारत रत्न दिया जाना चाहिए। पंडित लखमीचन्द ने अपने जीवन में लगभग दो दर्जन ‘साँगों’ की रचना की, जिसमें ‘नल-दमयन्ती’, ‘हरीशचन्द्र’, ‘ताराचन्द’, ‘चापसिंह’, ‘नौटंकी’, ‘सत्यवान-सावित्री’, ‘चीरपर्व’, ‘पूर्ण भगत’, ‘मेनका-शकुन्तला’, ‘मीरा बाई’, ‘शाही लकड़हारा’, ‘कीचक पर्व’, ‘पदमावत’, ‘गोपीचन्द’, ‘हीरामल जमाल’, ‘चन्द्र किरण’ ‘बीजा सौरठ’, ‘हीर-रांझा’, ‘ज्यानी चोर’, ‘सुलतान-निहालदे’, ‘राजाभोज-शरणदे’, ‘भूप पुरंजन’ आदि शामिल हैं। इनके अलावा उन्होंने दर्जनों भजनों की भी रचना की। पंडित लख्मीचंद द्वारा रचित रागणियों व गीतों को देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक उनके प्रशंसकों द्वारा सुना जाता है। उनका यह भी प्रयास है कि सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक युवाओं तक पंडित लख्मीचंद का ब्रह्म ज्ञान पहुंचाया जाये।