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आत्मा को शुद्धि और मोक्ष देता है महाकुंभ स्नान : बालयोगी भीमपुरी महाराज

चंडीगढ़: सनातन धर्म में एक विशेष स्थान रखने वाला या यूं कहें धर्म की रीड महाकुंभ का आयोजन इस बार धर्मनगरी प्रयागराज में होगा। नए साल के पहले व  दूसरे माह में लाखों श्रद्धालु- साधु संत इस महाकुंभ के अवसर पर अपनी आस्था और आध्यात्मिक यात्रा को ओर ताकत देने के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे।

इस महत्वपूर्ण विषय पर बातचीत करते हुए पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के महंत बालयोगी भीम पूरी जी महाराज ने विशेष बातचीत के दौरान बताया कि पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के नागा साधु इस महाकुंभ में प्रथम स्नान करेंगे। उसके बाद अन्य अखाडों का मौका होगा। सबसे पहले अखाड़े का देवता आचार्य मंडलेश्वर धर्माचार्य तथा फिर हमारे अन्य साधु स्नान करेंगे।

महंत भीमपुरी महाराज ने बताया कि सनातन धर्म के मुख्य स्तम्भ 13 अखाड़ों में सन्यासी, उदासी व वैष्णव प्रमुख स्थान रखते हैं। साधु संतों तथा मानवता में विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं को 12 वर्ष बाद लगने वाले कुम्भ मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है। उन्होंने बताया कि  सनातन धर्म के अनुसार जब सूर्य मकर में, बृहस्पति वृष राशि में व शनि कुम्भ में हो तो ही प्रयाग में कुंभ मेला लगता है। महाकुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख नदियों के तट पर गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा के तट पर ही लगता है। जोकि चार पवित्र नगरियों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन में मौजूद है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार समुंद्र मंथन के दौरान से अमृत और विष के साथ कई रत्न भी समुंद्र से निकले थे। इन सभी अमूल्य वस्तुओं को बांटने के लिए देवताओं व असुरों के बीच 12 दिन तक लड़ाई चली। असुरों से अमृत कलश को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह कलश अपने वाहक गरुड़ को दे दिया था। भगवान और असुरों की लड़ाई के दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन चार जगह गिरी थी। इन पवित्र नगरियों में कुम्भ लगने का मुख्य कारण यही है। उन्होंने बताया कि प्रथम स्नान 14 जनवरी मकर सक्रांति के अवसर पर, द्वितीय 20 जनवरी को अमावस्या पर तथा तृतीय 2 फरवरी को बसन्त पंचमी के दिन किया जाएगा।

विशेष महत्व रखता है त्रिवेणी संगम महाकुंभ

दरअसल इस साल महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है। इस महापर्व में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होंगे। सबसे खास बात यह है कि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। ऐसे में यहां होने वाले महाकुंभ का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि यहां स्नान करने से सारे पाप खत्म हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वहीं, महाकुंभ में होने वाले शाही स्नान का बहुत महत्व है, साथ ही शाही स्नान सबसे खास परंपरा भी मानी जाती है। इसमें सबसे पहले साधु-संत स्नान करते हैं, उसके बाद ही आमजन। इसे शाही स्नान इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें साधु-संतों का सम्मानपूर्वक स्नान कराया जाता है। यह न सिर्फ शरीर को साफ करने के लिए, बल्कि आत्मा की शुद्धि के लिए भी किया जाता है।

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