लोकसभा चुनाव: माधवी लता और ओवैसी के बीच कड़ा मुकाबला, क्या बदलेगा हैदराबाद का निजाम? यहाँ जानें- समीकरण
हैदराबाद,06मई। तेलंगाना की हैदराबाद सीट पर हाई-वोल्टेज चुनावी लड़ाई की उम्मीद की जा रही है. यहां मुख्य मुकाबला मौजूदा सांसद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी और भारतीय जनता पार्टी की माधवी लता के बीच माना जा रहा है.
कांग्रेस ने इस सीट से मोहम्मद वलीउल्लाह समीर को टिकट दिया है. हैदराबाद में लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को मतदान होगा. दो मुस्लिम उम्मीदवारों और बीजेपी की माधवी लता के साथ, हैदराबाद में मुकाबला एक दिलचस्प लड़ाई का गवाह बनने जा रहा है. बीजेपी ने बार-बार दावा किया है कि वे चार बार के सांसद असदुद्दीन औवेसी को मात देने जा रहे हैं.
कौन हैं माधवी लता?
2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही ओवैसी हैदराबाद सीट जीतते आ रहे हैं. हालांकि, इस बार बीजेपी ने अपने हिंदू चेहरे और तीन तलाक अभियान कार्यकर्ता माधवी लता को मैदान में उतारा है. एक सांस्कृतिक कार्यकर्ता होने के अलावा, माधवी लता हैदराबाद के विरिंची अस्पताल की अध्यक्ष, एक पेशेवर भरतनाट्यम नर्तक और तीन बच्चों की मां हैं.
ओवैसी और माधवी के पास कितनी दौलत?
माधवी लता ने अपने परिवार की चल और अचल संपत्ति 218.28 करोड़ रुपये घोषित की. लता के परिवार पर 27 करोड़ रुपये की देनदारी है. भाजपा उम्मीदवार के परिवार के पास विरिंची लिमिटेड में 94.44 करोड़ रुपये की कीमत के 2.94 करोड़ शेयर हैं. ओवैसी की घोषित पारिवारिक संपत्ति ₹23.87 करोड़ है. माधवी लता हैदराबाद से सबसे अमीर उम्मीदवारों में से एक बनकर उभरी हैं.
आसान नहीं होगा मुकाबला
माधवी लता के लिए यह बिल्कुल भी आसान मुकाबला नहीं होने वाला है क्योंकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी असदुद्दीन औवेसी पिछले चुनावों में हैदराबाद में भारी अंतर से जीतते रहे हैं. 2019 के चुनाव में ओवैसी ने यह सीट करीब तीन लाख वोटों के अंतर से जीती थी जबकि 2014 में 2.5 लाख के करीब जीत का अंतर था.
कांग्रेस लगा सकती है ओवैसी के वोटबैंक में सेंध
हालांकि, कांग्रेस द्वारा एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारने से ओवैसी के वोटों में कटौती हो सकती है और भाजपा को फायदा पहुंच सकता है. 2011 की जनगणना के अनुसार, हैदराबाद में 64.9 प्रतिशत हिंदू, 30.1 प्रतिशत मुस्लिम, 2.8 प्रतिशत ईसाई, 0.3 प्रतिशत जैन, 0.3 प्रतिशत सिख और 0.1 प्रतिशत बौद्ध हैं.
जनसंख्या के 30 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर मुसलमानों का वर्चस्व होने के कारण, यह हमेशा ओवेसी और उनकी पार्टी के लिए फायदेमंद रहा है. अब देखना होगा कि इस बार के चुनाव में कोई उलटफेर होता है या ओवैसी का दबदबा कायम रहता है.