ग्रामीण महिला दिवस (15 अक्टूबर) पर विशेष लेख
मिट्टी से मुकुट तक: भारतीय ग्रामीण महिला की बदलाव की अनथक गाथा
भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है और इन गाँवों की आत्मा हैं वहाँ की महिलाएँ — वे महिलाएँ जिनके श्रम, संवेदना और धैर्य पर ग्रामीण भारत की पूरी संरचना टिकी है। खेतों में बीज बोने से लेकर बच्चों के पालन-पोषण तक, परिवार और समाज के हर स्तर पर उनका योगदान अदृश्य किन्तु अनिवार्य रहा है। किंतु लंबे समय तक यह योगदान मान्यता से वंचित रहा। आज वही ग्रामीण महिला भारत के परिवर्तन की धुरी बन चुकी है। सरकारी योजनाओं, सामाजिक चेतना, शिक्षा, डिजिटल समावेशन और आर्थिक अवसरों के मेल से अब वह केवल परिवार की जिम्मेदार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की भागीदार बन रही है।
भारत सरकार के हालिया प्रयासों ने इस परिवर्तन को दिशा दी है। दीनदयाल अंत्योदय
योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत 9.5 करोड़ महिलाएँ स्व-सहायता समूहों से जुड़ी हैं। ये समूह अब बचत और ऋण तक सीमित नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के नए केंद्र बन चुके हैं। “लखपति दीदी” जैसी पहलें इस बात का उदाहरण हैं कि अब महिलाएँ केवल आत्मनिर्भर नहीं, बल्कि रोजगार सृजनकर्ता बन रही हैं। वे सूक्ष्म उद्योग चला रही हैं, उत्पादों को स्थानीय और डिजिटल बाजारों से जोड़ रही हैं, और वित्तीय निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। यह परिवर्तन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सामाजिक सम्मान का भी प्रतीक है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया और जन-धन योजना जैसी पहलों ने ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त किया है। जन-धन योजना के तहत खुले बैंक खातों में 56त्न से अधिक महिलाओं की हिस्सेदारी इस बात का प्रमाण है कि अब ग्रामीण भारत की
महिलाएँ आर्थिक लेन-देन की मुख्यधारा में हैं। वे बैंकिंग सेवाओं का उपयोग कर रही हैं, बचत और निवेश के महत्व को समझ रही हैं, और परिवार की वित्तीय योजना में भाग ले रही हैं।
मुद्रा योजना के तहत प्राप्त ऋणों से उन्होंने डेयरी, हस्तशिल्प, फूड प्रोसेसिंग और अन्य लघु उद्योग शुरू किए हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा आई है।
जीवन स्तर में सुधार की दिशा में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) और उज्ज्वला योजना ने अभूतपूर्व प्रभाव डाला है। पीएमएवाई के अंतर्गत निर्मित 73त्न घर महिलाओं के नाम पर दर्ज हैं — यह कदम केवल एक कागजी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि महिला को संपत्ति अधिकार देने की दिशा में एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। उज्ज्वला योजना ने ग्रामीण रसोई से धुआँ हटाया और महिलाओं के स्वास्थ्य व गरिमा की रक्षा की। स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालयों ने न केवल स्वच्छता को बढ़ावा दिया, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और आत्मसम्मान को भी पुनस्र्थापित किया। जल जीवन मिशन ने उनके जीवन से प्रतिदिन के संघर्ष — पानी लाने के श्रम — को कम किया और उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण तथा अन्य उत्पादक गतिविधियों के लिए समय उपलब्ध कराया।
शिक्षा और कौशल विकास ग्रामीण महिला सशक्तिकरण की रीढ़ हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, समग्र शिक्षा अभियान और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना ने बालिकाओं और महिलाओं में नई चेतना जगाई है। अब ग्रामीण युवतियाँ केवल साक्षर नहीं, बल्कि कुशल कार्यकर्ता बन रही हैं। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना और महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना ने उन्हें कृषि, हस्तशिल्प, उद्यमिता और डिजिटल तकनीक में प्रशिक्षण देकर रोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान किए हैं। यह परिवर्तन ग्रामीण समाज की आर्थिक संरचना को नई दिशा दे रहा है।
राजनीतिक सशक्तिकरण भी इस बदलाव का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। पंचायती राज संस्थाओं में 33 से 50 प्रतिशत आरक्षण ने लाखों महिलाओं को स्थानीय शासन में भागीदारी दी है। वे अब पंचायतों में केवल सदस्य नहीं, बल्कि निर्णयकर्ता हैं। जल संरक्षण, शिक्षा, स्वच्छता और पोषण योजनाओं में उनकी भूमिका निर्णायक बन चुकी है। कई महिला सरपंचों ने अपने नेतृत्व से गाँवों का कायाकल्प किया है। उन्होंने शराबबंदी लागू की, स्कूलों की गुणवत्ता सुधारी, नालियों की सफाई कराई और समुदाय में पारदर्शिता की परंपरा स्थापित की। यह राजनीतिक सहभागिता न केवल लोकतंत्र को मजबूत कर रही है, बल्कि ग्रामीण समाज में महिलाओं की स्थिति को भी सुदृढ़ बना रही है।
डिजिटल भारत की अवधारणा ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन में नई संभावनाएँ खोली हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय और यूनिसेफ की साझेदारी से शुरू हुई “कंप्यूटर दीदी केंद्र” और “दीदी की दुकान” जैसी परियोजनाएँ डिजिटल सशक्तिकरण के नए मॉडल प्रस्तुत कर रही हैं।
इन केंद्रों के माध्यम से महिलाएँ डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन विपणन और डिजिटल सेवाओं का उपयोग करना सीख रही हैं। इससे उनकी आर्थिक और सामाजिक भागीदारी दोनों में वृद्धि हुई है। “बैंक सखी” और “बीमा सखी” जैसी पहलें वित्तीय समावेशन के माध्यम से महिलाओं को तकनीकी दक्षता और आत्मविश्वास दे रही हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और पोषण अभियान ने मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार लाया है। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने गाँव-गाँव तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित की है। वे केवल स्वास्थ्य सेवा प्रदाता नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की वाहक हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता के प्रति उनकी जागरूकता ने ग्रामीण परिवारों में नई जीवनशैली को जन्म दिया है।
इन सभी सकारात्मक प्रयासों के बावजूद कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं। शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण की पहुँच अभी भी असमान है, विशेषकर पिछड़े और दूरदराज़ क्षेत्रों में। सामाजिक रूढिय़ाँ, बाल विवाह, लैंगिक भेदभाव और संपत्ति अधिकारों में असमानता अब भी कई महिलाओं को आगे बढऩे से रोकती हैं। डिजिटल साक्षरता की कमी भी योजनाओं के लाभों तक पहुँच में बाधा है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि सरकारी योजनाओं के साथ-साथ सामाजिक चेतना का भी प्रसार हो। परिवार, पंचायत और समाज – सभी स्तरों पर महिलाओं को समान अवसर, सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए। आज की ग्रामीण महिला अब पहले जैसी नहीं रही। वह शिक्षित है, आत्मविश्वासी है, और अपने अधिकारों के प्रति सजग है। वह योजनाओं की लाभार्थी भर नहीं, बल्कि नीति की भागीदार है। उसकी भागीदारी के बिना न तो आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकता है और न ही समावेशी विकास संभव है। यह नया युग ग्रामीण महिला के नेतृत्व में परिवर्तन का युग है। उसके हाथों में आत्मनिर्भर भारत का भविष्य है। वह अपने श्रम से खेतों को हरियाली दे रही है, अपने ज्ञान से समाज
को दिशा दे रही है, और अपने आत्मविश्वास से राष्ट्र को नई ऊर्जा दे रही है। यह वही नारी
है, जो पहले परंपराओं में बंधी थी, अब प्रगति का प्रतीक है। जब गाँव की महिला आगे बढ़ती है, तो पूरा गाँव आगे बढ़ता है, और जब गाँव आगे बढ़ता है, तब भारत आगे बढ़ता है।
ग्रामीण महिला सशक्तिकरण की यह कहानी केवल योजनाओं की सफलता का नहीं, बल्कि भारत की नई चेतना का प्रतीक है — जहाँ नारी केवल जीवन का पोषण नहीं करती, बल्कि भविष्य का निर्माण भी करती है। यही भारत के विकास का सच्चा आधार है — सशक्त महिला, सशक्त गाँव, और सशक्त भारत।बलकार सिंह पूनियां
सहायक आचार्य
ग्रामीण विकास विभाग
इग्नू, नई दिल्ली
मोबाइल=9416293364


