लालू यादव या नीतीश कुमार गठबंधन के लिए कौन किसके पास गया था? RJD-JDU के दावों की सच्चाई जानिए
बिहार की सियासत में नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी में गठबंधन के दावे को लेकर विवाद शुरू हो गया है. जेडीयू का कहना है कि गठबंधन के लिए हर बार उससे आरजेडी ने संपर्क साधा है, जबकि आरजेडी का दावा इसके ठीक उलट है. बिहार में 2015 और 2022 में आरजेडी और जेडीयू के बीच गठबंधन हुआ था. जेडीयू नीतीश कुमार तो आरजेडी लालू यादव की पार्टी है.
जेडीयू और आरजेडी में विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
हाल के दिनों में नीतीश कुमार के फिर से पलटी मारने की चर्चा बिहार में चल रही थी. कहा जा रहा था कि नीतीश कई मुद्दों पर एक साथ बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. नीतीश की नाराजगी और ज्यादा न बढ़े, इसे रोकने के लिए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार आए.
दोनों नेताओं की बातचीत के बाद नीतीश कुमार ने मंच से कहीं नहीं जाने का ऐलान कर दिया. इसी घोषणा में नीतीश कुमार ने कहा कि 2 बार मैंने आरजेडी का कल्याण कर दिया है. अब उसका कल्याण नहीं करुंगा.
नीतीश कुमार के इस बयान के बाद आरजेडी भी फ्रंट पर आ गई. आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने नीतीश के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि आप ही गठबंधन के लिए आए थे. अब आइएगा तो साथ नहीं लूंगा.
गठबंधन के लिए कौन किसके पास गया था, 2 कहानी
1. पहले कहानी 2015 के गठबंधन की- 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. इसके विरोध में नीतीश राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से बाहर हो गए. नीतीश का कहना था कि चेहरा घोषित करने से पहले बीजेपी ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया.
बिहार सरकार में जेडीयू के पास बहुमत के आंकड़े थे, इसलिए बीजेपी के बाहर निकलने से भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा. 2014 के चुनाव में बीजेपी लोजपा और रालोसपा के साथ मैदान में उतरी. आरजेडी कांग्रेस और एनसीपी के साथ थी तो जेडीयू अकेले.
त्रिकोणीय मुकाबला होने की वजह से एनडीए को बिहार की 40 में से 31 सीटों पर जीत मिल गई. पूरे देश में बीजेपी नीत एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ जीती और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए.
एक इंटरव्यू में लालू यादव कहते हैं- बिहार में नीतीश और मेरे वोटों में बंटवारे की वजह से बीजेपी को इतनी बड़ी जीत मिली. इसके बाद हमने तय किया कि साथ लड़ेंगे. मैंने नीतीश कुमार को फोन किया और गठबंधन के लिए कहा.
कहा जाता है कि इसी फोन कॉल के बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू की तरफ से तब मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी को पद से हटने के लिए कहा. 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था. हालांकि, सत्ता से उनकी रूखसती बिहार में सियासी बवाल मचा दिया.
2015 के जून महीने में दिल्ली में सपा मुखिया मुलायम सिंह के निवास पर नीतीश कुमार और लालू यादव ने औपचारिक मुलाकात की. इसी मुलाकात में गठबंधन की घोषणा की गई, जिसका नाम महागठबंधन रखा गया. नीतीश और लालू ने बाद में इसमें कांग्रेस को भी शामिल किया.
2. अब 2022 में गठबंधन बनने की कहानी- नीतीश और लालू का 2015 वाला रिश्ता 2017 में टूट गया. नीतीश फिर से एनडीए में चले गए, लेकिन 5 साल बाद ही उनका मन एनडीए से उचट गया. नीतीश 2022 में लालू के साथ आ गए. हालांकि, गठबंधन की पहल इस बार लालू के बदले नीतीश कुमार ने की.
बीजेपी से नाता तोड़ने के लिए नीतीश ने सबसे पहले पार्टी के कद्दावर नेता और केंद्र में मंत्री आरसीपी सिंह का पर कतर दिया. जेडीयू ने आरसीपी सिंह की जगह झारखंड के खीरू महतो को राज्यसभा भेज दिया. जेडीयू के इस फैसले से आरसीपी नाराज हो गए और पार्टी छोड़ने का फैसला कर लिया.
अगस्त 2022 में जनता दल यूनाइटेड छोड़ने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए आरसीपी ने कहा था- वे फिर से पुरानी जगह पर जाना चाहते थे. मैं इसका समर्थक नहीं हूं, इसलिए मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया है. जेडीयू डूबता हुआ जहाज है.
आरसीपी के इस बयान के कुछ ही दिन बाद जेडीयू बीजेपी से अलग हो गई. राजभवन में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद नीतीश सीधे पटना में राबड़ी आवास गए, जहां तेजस्वी और राबड़ी ने उनका स्वागत किया. लालू और गठबंधन के अन्य नेताओं से मुलाकात के बाद नीतीश ने सरकार बनाने का दावा किया.
सरकार बनाने के बाद जेडीयू की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई और गठबंधन टूटने के लिए 2020 के परिणाम को जिम्मेदार ठहराया गया. जेडीयू का कहना था कि बीजेपी चिराग पासवान और आरसीपी सिंह के साथ मिलकर जेडीयू को खत्म करना चाहती थी, इसलिए नीतीश कुमार ने बीजेपी छोड़ने का फैसला किया.