धर्म/अध्यात्म

विश्वकर्मा के दिव्य शिल्प: लंका से द्वारका तक, जानें किन नगरों और महलों का हुआ निर्माण

भगवान विश्वकर्मा को शिल्प और वास्तुकला का देवता माना गया है. वेद और पुराणों में उन्हें देवताओं का इंजीनियर कहा गया है. कहा जाता है कि देवताओं के जो भव्य महल, दिव्य नगरी और अद्भुत भवन आज तक चर्चित हैं, वे सभी विश्वकर्मा की कल्पना और शिल्पकला का परिणाम हैं.भगवान विश्वकर्मा को केवल देवताओं का शिल्पकार नहीं, बल्कि लोकों का निर्माता भी कहा गया है. उनकी कारीगरी से ही स्वर्ग, लंका और द्वारका जैसी नगरी आज भी अमर उदाहरण बनी हुई हैं.

स्वर्ग का महल इंद्रपुरी

इंद्रदेव का जो भव्य स्वर्गलोक है, उसका निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया. सोने और रत्नों से सजे इंद्रपुरी को शाश्वत सुंदरता का प्रतीक बताया जाता है. यहां का दरबार, पुष्पवन और रत्नमंडित महल उनके दिव्य शिल्प का सबसे बड़ा प्रमाण है.

स्वर्ण लंका

त्रेतायुग की सबसे भव्य नगरी स्वर्ण लंका भी विश्वकर्मा की कृति है. कथा है कि उन्होंने यह नगरी प्रारंभ में कुबेर को दी थी, लेकिन बाद में रावण ने इसे हड़प लिया. आज भी सोने की लंका कहावत उनकी कारीगरी का उदाहरण मानी जाती है.

द्वारका नगरी

महाभारत और भागवत पुराण में वर्णन है कि जब श्रीकृष्ण ने समुद्र के बीच एक दिव्य नगरी बसाई, तो उसके शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा ही थे. द्वारका की गलियां, रत्नजटित महल और भव्य द्वार उनकी अद्भुत वास्तुकला का नमूना थे.

हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ

कुरुक्षेत्र की पृष्ठभूमि से जुड़े दो सबसे प्रसिद्ध नगर हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ का निर्माण भी विश्वकर्मा ने किया. खासकर पांडवों के लिए निर्मित मयसभा इतनी अलौकिक थी कि दुर्योधन तक उसकी मायावी कारीगरी देखकर भ्रमित हो गया था.

कुबेर का भवन और यक्षपुरी

धन के देवता कुबेर के भव्य महलों और यक्षपुरी का शिल्प भी विश्वकर्मा ने ही तैयार किया था. इन्हें दिव्य धातुओं और रत्नों से अलंकृत किया गया था.

Related Articles

Back to top button