धर्म/अध्यात्म

जानिए वो पौराणिक कथा, जब गणेश जी ने माता तुलसी को दिया था श्राप

इस साल दो नवंबर को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाने वाला है. मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं. इन चार महीनों को चातुर्मास के रूप में जाना जाता है. भगवान विष्णु के जागने के बाद इस चातुर्मास का समापन होता है. फिर हिंदू धर्म में तमाम मांगलिक काम शुरू हो जाते हैं. इस दिन तुलसी विवाह कराया जाता है. हिंदू धर्म में तुलसी बहुत पूज्यनीय मानी जाती है.

पूजा पाठ में तुलसी का उपयोग होता है. एक हैरान कर देने वाला तथ्य ये है कि गणेश जी की पूजा में तुलसी उपयोग नहीं की जाती. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. आइए जानते हैं इस कथा के बारे में.

गणेश जी से विवाह करना चाहती थीं तुलसी माता

माना जाता है कि तुलसी माता को भगवान गणेश से प्रेम था. वो उनसे विवाह करना चाहती थीं. कथा के अनुसार, एक दिन तुलसी माता ने फैसला किया कि वो अपने दिल की इच्छा गणेश जी के सामने प्रकट करेंगी. इसके बाद माता सीधे बप्पा के पास पहुंची. उन्होंने बहुत विनम्रता से अपने मन की बात गणेश जी को बताई और कहा कि वो उनसे विवाह करना चाहती हैं, गणेश जी ने माता के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. इससे माता तुलसी को बहुत दुख हुआ. उन्होंने स्वंय को बहुत अपमानित महसूस किया. इसके फलस्वरूप माता क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया. उन्होंने गणेश जी से कहा कि आपकी दो शादियां होंगी.

गणेश जी को आया था क्रोध

तुलसी माता के श्राप के प्रभाव से ही भगवान गणेश का विवाह रिद्धि और सिद्धि नामक दो दिव्य बहनों से हुआ. माता के श्राप देने की वजह से गणेश जी भी क्रोधित हो गए. फिर उन्होंने भी माता तुलसी को श्राप दे दिया. गणेश जी ने माता तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि आपका विवाह एक राक्षस से होगा. इसी श्राप के चलते माता तुलसी का विवाह राक्षस कुल में असुर जालंधर से हुआ.

माता तुलसी ने मांगी क्षमा

कथा के अनुसार, अपनी भूल का अहसास होने पर तुलसी माता से भगवान गणेश के क्षमा याचना की. गणेश जी ने उनकी प्रार्थना सुनी और कहा कि कालांतर में आप एक पौधे का रूप धारण करेंगी, जिसकी पूजा की जाएगी. इसी पौधे का नाम तुलसी रखा गया. गणेश जी ने माता तुलसी को ये भी कहा कि मेरी पूजा में आपका उपयोग नहीं होगा. यही कारण है कि गणेश जी के पूजन में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती.

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