तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा स्वीकार चुके हैं कन्हैया, फिर भी लालू परिवार के दिल में क्यों नहीं बन रही उनकी जगह?

बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. सत्ता पर काबिज NDA को शिकस्त देने के लिए महागठबंधन ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है, लेकिन आपसी मनमुटाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है. बुधवार को मार्च के दौरान ये साफतौर पर देखने को मिला. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव खुली ट्रक पर थे, इसी दौरान कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार भी सवार हुए, लेकिन उन्हें तुरंत गाड़ी से नीचे उतार दिया गया. ये बर्ताव दिखाता है कि कन्हैया लालू प्रसाद यादव के परिवार के दिल में जगह नहीं बना पाए हैं. वो भी तब कन्हैया तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा स्वीकार कर चुके हैं.
बिहार चुनाव में आरजेडी तेजस्वी को आगे रखकर प्रचार कर रही है. हालांकि महागठबंधन का सीएम फेस कौन होगा, कांग्रेस की ओर से इसकी घोषणा नहीं हुई है. लेकिन कन्हैया कुमार ने हाल ही में इंडिया के सीएम फेस के बारे में अपने विचार बता दिए थे. उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए मुख्य चेहरे के रूप में लेकर कोई भ्रम या विवाद नहीं है. गठबंधन की जो सबसे बड़ी पार्टी है, सीएम उम्मीदवार भी उसी का होगा.
कन्हैया कुमार ने कहा, आरजेडी के पास अधिक विधायक हैं. वह महागठबंधन को नेतृत्व प्रदान करती है. उनके पास विपक्ष के नेता का पद है. उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के लोग जानबूझकर सीएम फेस के नाम पर जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं. इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के मामले को उठाकर ध्यान भटकाने की साजिश रच रहे हैं.
लालू परिवार के दिल में जगह क्यों नहीं बना पा रहे कन्हैया?
सीएम फेस पर कन्हैया अपना रुख तो साफ कर चुके हैं. वह तेजस्वी को सीएम का चेहरा स्वीकार कर चुके हैं, इसके बावजूद लालू परिवार के दिल में वह जगह नहीं बना पाए हैं. बिहार के राजनीतिक हलकों में सभी को पता है कि लालू यादव सूबे की राजनीति में कन्हैया कुमार की एंट्री के पक्ष में नहीं थे.
कन्हैया और तेजस्वी हमउम्र हैं. सियासत की बात करें तो तेजस्वी को ये विरासत में मिली है. वहीं कन्हैया ने अपनी जमीन खुद तैयार की है. बिहार में उनका ग्राफ बढ़ रहा है. वह बिहार में कांग्रेस के एक बड़े चेहरे के रूप में उभर रहे हैं. विरोधी भी उनके कायल हैं.
जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर ने कन्हैया की तारीफ की. उन्होंने कहा, मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं है कांग्रेस में जितने नेता बिहार में हैं, उनमें अगर किसी में प्रतिभा है तो कन्हैया कुमार है. वो उन चंद नेताओं में हैं जो कुछ कर सकते हैं. उन्होंने आगे कहा, अगर कांग्रेस उनका इस्तेमाल बिहार में नहीं कर रही तो ये दिखाता है कि कांग्रेस बिहार में आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी है. कन्हैया का बढ़ता ग्राफ लालू परिवार को रास नहीं आ रहा होगा.
क्या कन्हैया ने हाईजैक किया तेजस्वी का एजेंडा?
4 महीने पहले ही युवाओं को साधने के लिए कन्हैया ने ‘पलायन रोको नौकरी दो’ पदयात्रा निकाली थी. कांग्रेस का ये मुद्दा तेजस्वी के बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा के चुनावी एजेंडे से मेल खाता है. 2020 के विधासभा चुनाव के बाद से वह इसे जोर शोर से उठा रहे हैं. कन्हैया ने जब यात्रा निकाली थी तब सवाल उठने लगे थे कि क्या उन्होंने तेजस्वी के एजेंडे को हाईजैक कर लिया.
कन्हैया को गंभीरता से क्यों लें?
आरजेडी के एक नेता ने कहा कि तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार के बीच कोई तुलना नहीं है. तेजस्वी यादव एक ऐसे नेता हैं जो कन्हैया कुमार की तरह अपने राष्ट्र-विरोधी बयानों के लिए कभी विवादों में नहीं रहे. जब हमारे पास तेजस्वी यादव जैसा नेता है जो राज्य और उसके लोगों के लिए आकांक्षाएं रखता है, तो हम उन्हें (कन्हैया) गंभीरता से क्यों लें.
जानकार कहते हैं कि नेतृत्व की बात करें तो तेजस्वी यादव इसमें भी ज्यादा अनुभवी हैं. विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इसे देखा जा सकता है. इसके विपरीत कन्हैया ने कभी भी स्वतंत्र रूप से किसी राजनीतिक दल का नेतृत्व नहीं किया है. कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ही भीड़ खींचने में माहिर हैं. तेजस्वी यादव जहां मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाने के लिए जाने जाते हैं, वहीं जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष ने न सिर्फ बिहार में, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी लोगों का भरोसा हासिल किया है. वे पढ़े लिखे हैं. अच्छे वक्ता हैं. अपने राजनीतिक विरोधियों पर हमला बोलते हैं. दूसरी ओर तेजस्वी भी अच्छा बोलते हैं और हर बार जब भी कोई जनसभा संबोधित करते हैं भारी भीड़ जुटा लेते हैं.
लोकसभा चुनाव हारे थे कन्हैया
कन्हैया ने अपने सियासी करियर का आगाज राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ लड़ते हुए ही शुरू किया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बेगुसराय से चुनाव लड़े थे. सीपीआई के टिकट पर वह किस्मत आजमाए थे. उस चुनाव में आरजेडी के तनवीर हुसैन भी लड़ रहे थे. हालांकि इस चुनाव में कन्हैया को बीजेपी के गिरिराज सिंह के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था.