हरियाणा
प्राधिकरण की कार्यप्रणाली, कानूनों की जानकारी और मध्यस्थता अभियान पर दी गई विशेष जानकारी

भिवानी, 7 अगस्त / जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भिवानी के नवनियुक्त पैनल अधिवक्ताओं के लिए एडीआर (वैकल्पिक विवाद निपटान) सेंटर के सभागार में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला की अध्यक्षता सीजेएम एवं प्राधिकरण के सचिव पवन कुमार ने की। कार्यक्रम में डीएलएसए के चेयरमैन एवं जिला एवं सत्र न्यायाधीश डी.आर. चालिया मुख्य मार्गदर्शक रहे, जबकि अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनीष कुमार ने बतौर विशिष्ट अतिथि शिरकत की।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश डी.आर. चालिया ने अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अधिवक्ता समाज में न्याय की पहली कड़ी होते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूली और कॉलेज के विद्यार्थियों को उनके मौलिक अधिकारों, विधिक प्रक्रियाओं और कानूनी सुरक्षा उपायों की जानकारी देने हेतु विशेष कानूनी साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाएं। उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को प्रारंभिक अवस्था से विधिक जानकारी मिलेगी, तो वे अपने और दूसरों के अधिकारों को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनीष कुमार ने नालसा, हालसा और डीएलएसए द्वारा संचालित विभिन्न सहायता योजनाओं और कानूनी सेवाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि समाज के वंचित, गरीब और जरूरतमंद तबकों को न्याय दिलाने में ये संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अधिवक्ताओं को चाहिए कि वे इस मिशन को आगे बढ़ाने में पूरी सक्रियता से योगदान दें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सीजेएम पवन कुमार ने बताया कि नालसा द्वारा संचालित हेल्पलाइन नंबर 15100 के माध्यम से आमजन को त्वरित और निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान की जा रही है। उन्होंने जानकारी दी कि “राष्ट्र के लिए मध्यस्थता” नामक 90 दिवसीय अखिल भारतीय अभियान की शुरुआत 1 जुलाई 2025 से की गई है, जो 30 सितंबर 2025 तक चलेगा। इसका उद्देश्य न्यायालयों में लंबित मामलों को मध्यस्थता के माध्यम से शीघ्र समाधान देना है। यह अभियान देश के तालुका न्यायालयों से लेकर उच्च न्यायालयों तक सभी स्तरों पर लागू होगा।
सीजेएम पवन कुमार ने नव नियुक्त पैनल अधिवक्ताओं को प्राधिकरण की कार्यप्रणाली, विधिक सेवाओं के विभिन्न आयामों और उनके कर्तव्यों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता न केवल केस लड़ने तक सीमित रहें, बल्कि समाज में न्यायिक जागरूकता फैलाने के वाहक भी बनें।
प्रशिक्षण कार्यशाला में सहायक कानूनी सहायता अधिवक्ता विनोद कुमार ने बच्चों के शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण की पहचान करने के तरीकों, पोक्सो अधिनियम व किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अधिवक्ताओं को चाहिए कि वे बाल अपराध मामलों में बच्चों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करें।
डिप्टी चीफ (कानूनी सहायता बचाव पक्ष) नरेंद्र कांटिवाल ने अनुसूचित जाति व जनजातियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों और पीसीआर अधिनियम, 1955 व एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रभावी क्रियान्वयन की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों का उद्देश्य समाज में समानता और न्याय की भावना को सशक्त करना है। अधिवक्ताओं को चाहिए कि वे पीड़ितों को कानूनी सुरक्षा और सहायता दिलाने में सक्रिय भूमिका निभाएं।
पैनल अधिवक्ता अनुराधा खनगवाल और सोनाली तंवर ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013 पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने अधिवक्ताओं को इस अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति की कार्यप्रणाली, शिकायत प्रक्रिया और पीड़िता के अधिकारों से अवगत कराया। साथ ही उन्होंने एलएसएमएस पोर्टल के उपयोग की जानकारी भी दी, जो विधिक सेवा के मामलों में पारदर्शिता और त्वरित समाधान सुनिश्चित करता है।
कार्यशाला में नवनियुक्त पैनल अधिवक्ताओं एवं मध्यस्थ अधिवक्ताओं ने भाग लिया। सभी ने प्रशिक्षण में साझा की गई जानकारी को अत्यंत उपयोगी और मार्गदर्शक बताया।
इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य पैनल अधिवक्ताओं को न केवल विधिक सहायता तंत्र से जोड़ना था, बल्कि उन्हें विभिन्न सामाजिक व संवेदनशील कानूनी विषयों में दक्ष बनाना भी था, जिससे वे प्रभावी ढंग से समाज की सेवा कर सकें।