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H-1B विवाद के बाद झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ का खतरा, भारत की मुश्किलें बढ़ने की संभावना

अमेरिका अब H-1B वीजा के बाद भारत को एक और बड़ा झटका देने की तैयारी में है. अमेरिकी सीनेटरों ने भारत के झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है. रिपब्लिकन सीनेटर बिल कैसिडी और सिंडी हाइड-स्मिथ ने “इंडिया श्रिम्प टैरिफ एक्ट” को अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया है. उनका आरोप है कि भारत गलत व्यापार तरीकों से अमेरिकी बाजार में झींगा बेच रहा है, जिससे लुइसियाना की झींगा और कैटफिश इंडस्ट्री को भारी नुकसान हो रहा है.

अमेरिकी सीनेटर ने कहा कि ये बिल हमारी सीफूड इंडस्ट्री और उससे जुड़ी हजारों नौकरियों को बचाएगा. भारतीय झींगा कंपनियां सस्ते दामों पर डंपिंग कर रही हैं, जबकि हमारे स्थानीय उत्पादक सख्त नियमों का पालन करते हैं. हाइड-स्मिथ ने भी कहा कि भारतीय झींगा एक्सपोर्ट से अमेरिकी इंडस्ट्री और कस्टमर्स को नुकसान हो रहा है. उनका दावा है कि ये कानून अमेरिकी इंडस्ट्री को बराबरी का मौका देगा. कैसिडी ने पहले भी सीनेट की वित्त समिति में इस मुद्दे को उठाया था और ट्रेजरी उम्मीदवार से स्थानीय झींगा उत्पादकों के लिए समर्थन का वादा लिया था. इससे पहले साल 2025 की शुरुआत में कैसिडी और अन्य सांसदों ने भारत-चीन से चावल आयात पर रोक का बिल भी पेश किया था.

H-1B वीजा की बढ़ाई फीस

वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के नियमों में बड़ा बदलाव किया है. नए आदेश 21 सितंबर 2025 से लागू हो गए हैं. नए नियम के तहत H-1B वीजा के लिए 1,00,000 डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये की भारी फीस देनी होगी. ट्रंप सरकार का कहना है कि ये कदम दुरुपयोग रोकने के लिए है। इससे टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी भारतीय आईटी कंपनियों पर वित्तीय और नियमों का बोझ बढ़ेगा. आंकड़ों के मुताबिक, 71-72% H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं, इसलिए इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये भारत के लिए दोहरा नुकसान है. झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ से विदेशी व्यापार प्रभावित होगा और H-1B वीजा की नई शर्तें भारत के 125 अरब डॉलर के रेमिटेंस को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

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