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भारत-ईरान की चाबहार बंदरगाह डील से अमेरिका को भी लगी मिर्ची, दे दी धमकी

वाशिंगटनः भारत की चाबहार बंदरगाह डील  से भड़के अमेरिका ने चेतावनी  दी है कि ईरान के साथ व्यापारिक समझौता किसी भी देश को भारी पड़ेगा।  अमेरिका ने कहा है कि ईरान के साथ व्यापारिक सौदे करने वाले किसी भी देश पर “प्रतिबंध लगाए जाने का संभावित खतरा” है। उसने यह भी कहा कि वह जानता है कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत ने सोमवार को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए है, जिससे नयी दिल्ली को मध्य एशिया के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

भारत की चाबहार बंदरगाह डील से भड़के अमेरिका ने चेतावनी  दी है कि ईरान के साथ व्यापारिक समझौता किसी भी देश को भारी पड़ेगा।  अमेरिका ने…

 

भारत ने 2003 में ऊर्जा संपन्न ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का प्रस्ताव रखा था। इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) का इस्तेमाल कर भारत से सामान अफगानिस्तान और मध्य एशिया भेजा जा सकेगा। अमेरिका ने संदिग्ध परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे, जिसके चलते बंदरगाह के विकास का काम धीमा पड़ गया था। विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हम इन खबरों से अवगत हैं कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह से संबंधित एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मैं चाहूंगा कि भारत सरकार चाबहार बंदरगाह और ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों पर बात करे।”

सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह को लेकर ईरान के साथ भारत के समझौते के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि चूंकि यह अमेरिका से संबंधित है, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं और हम उन्हें बरकरार रखेंगे।” पटेल ने कहा, “आपने हमें कई मामलों में यह कहते हुए सुना है कि कोई भी इकाई, कोई भी व्यक्ति जो ईरान के साथ व्यापारिक समझौते पर विचार कर रहा है, उन्हें संभावित जोखिम और प्रतिबंधों के बारे में पता होना चाहिए।” भारत और ईरान ने इस बंदरगाह को 7,200 किलोमीटर लंबे आईएनएसटीसी के एक प्रमुख केंद्र के रूप में पेश किया है। आईएएसटीसी के जरिए भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई की जाएगी।

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