राजनीति

अगर हिंदी भाषा को फिर से अनिवार्य किया तो… राज ठाकरे ने सरकार को दी चेतावनी

महाराष्ट्र में पिछले कुछ महीनों से स्कूली शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता को लेकर काफी असमंजस बना हुआ है. इसी बीच बुधवार को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने राज्य शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे से एक लिखित आदेश जारी करने की अपील की. जिसमें उन्होंने कहा कि पहली कक्षा से केवल दो भाषाएं मराठी और अंग्रेजी भाषा अनिर्वाय हो जबकि हिंदी भाषा को वैकल्पिक भाषा के रूप में रखा जाए.

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल महीने में सभी मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में कक्षा 1 से 5वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ना अनिवार्य किया था. इस निर्णय का MNS समेत कई पर्टियों ने विरोध किया था. विरोध करने के बाद सरकार ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी.

‘अगर ऐसा नहीं हुआ तो पार्टी करेगी आंदोलन’

MNS प्रमुख ने कहा कि मुझे सूचना मिली है कि हिंदी समेत तीनों भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों की छपाई शुरू हो गई है. उन्होंने कहा कि अगर हिंदी भाषा में पुस्तकों की छपाई शुरू हो चुकी है, तो मुझे नहीं लगता कि सरकार अपने फैसले पर विचार कर रही है. उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ और हिंदी की अनिवार्यता को लेकर फिर से पुनर्विचार किया, तो पार्टी राज्यव्यापी आंदोलन करेगी और इसकी जिम्मेदार सरकार होगी.

हिंदी भाषा थोपने से किया इंकार

ठाकरे ने कहा कि कई राज्यों ने हिंदी भाषा को अपनाने से इंकार कर दिया. क्योकि उनकी स्थानीय भाषा ही उनकी पहचान है. उन्होंने राज्य शिक्षा मंत्री भूसे से कहा कि आप तो जन्म से मराठी हैं. आप अन्य नेताओं की तरह कब काम करेंगे?, जो हिंदी भाषा का विरोध करते हैं और अपनी स्थानीय भाषा की रक्षा करते हैं. इसके आगे उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकार अन्य राज्यों की तरह ही अपनी स्थानीय भाषा के लिए एक मजबूत भावना दिखाए.

हिंदी की अनिवार्यता का किया विरोध

दरअसल, शुरुआत में यह घोषणा की गई थी कि कक्षा 1 से 5वीं तक के बच्चों को तीन भाषाएं पढ़ाई जाएगी, जिसमें हिंदी तीसरी अनिवार्य भाषा होगी. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी और कई लोगों ने उनका समर्थन किया था. जिसके बाद सरकार ने अपने आदेश को वापस ले लिया. इसको लेकर राज ठाकरे ने कहा कि सरकार को मजबूरन अपना फैसला वापस लेना पड़ा क्योंकि यह जनभावना इतनी तीव्र थी कि सरकार के आगे कोई विकल्प नहीं था.

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