नकारात्मकता को जलाने का प्रतीक है होली का त्यौहार: बीके सुमित्रा

भिवानी, (ब्यूरो): भारतीय त्यौहारों में कुछ भी बिना कारण नहीं होता। होली शिवरात्रि के बाद आती है, और यह क्रम एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संबंध प्रकट करता है। यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज शाखा सिद्धि धाम प्रमुख राजयोगिनी बीके सुमित्रा बहन ने होली पर्व के आध्यात्मिक रूप के बारे में उपस्थित ब्रह्मावत्सों को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि, परमात्मा शिव के अवतरण का महोत्सव है—यह वह समय है जब अज्ञानता के घने अंधकार में भटकती आत्माओं को दिव्य बोध प्राप्त होता है, जब काम, क्रोध, लोभ, अहंकार जैसे विकारों के बंधन से मुक्त होने का द्वार खुलता है। इससे पहले, दुनिया अज्ञान के अंधकार में डूबी होती है, और क्रोध, लोभ, अहंकार जैसी बुराइयाँ इसे नियंत्रित करती हैं। परमात्मा शिव के आगमन से आत्मा का आंतरिक रूपांतरण आरंभ होता है, और आत्माएँ परमात्मा की याद के दिव्य रंग से रंग जाती हैं। बीके सुमित्रा बहन ने बताया कि होली का त्यौहार जो केवल रंगों से खेलने का त्यौहार नहीं है, बल्कि अपने अंदर की नकारात्मकता को जलाने और पवित्रता एवं आनंद को जागृत करने का प्रतीक है। प्राचीन समय में, होली की शोभायात्राओं में चैतन्य देवताओं की झांकियाँ निकाली जाती थीं, जो सभी को एक ऐसे विश्व की याद दिलाती थीं, जो शांति और सद्गुणों से परिपूर्ण था। बीके आरती बहन ने बताया कि होली केवल बाहरी रंग लगाने का पर्व नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक रंगों में रंगने का भी अवसर है। परमात्मा हमें सिखाते हैं कि सच्चे रंग वे हैं, जो आत्मा को शांति, प्रेम, आनंद और पवित्रता से भर दें। इस अवसर पर बीके भीम सिंह चौहान, बीके सुनील, बीेके मनोज, बीके महेश, बीके शारदा, बीके अन्नु, बीके संतोष, बीके कविता तथा मीडिया कॉर्डिनेटर बीके धर्मवीर सहित अनेक ब्रह्मावत्स उपस्थित रहे।