उत्तर प्रदेश

शिवालिक की गोद में स्थित यह धाम, माता को चढ़ाई जाती हैं हरी सब्जियां

गंगा-यमुना दोआब की उपजाऊ जमीन और शिवालिक की हरियाली हमेशा से आस्था की धुरी रही है. इसी शिवालिक की गोद में स्थित है सिद्धपीठ माता शाकंभरी देवी मंदिर. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. नवरात्रि के पहले दिन इस धाम का महत्व और भी बढ़ जाता है. मान्यता है कि माता के दर्शन से साल भर शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.

कहा जाता है त्रेता युग में धरती पर भयानक अकाल पड़ा. पेड़ सूख गए. नदियां सूख गईं. जीव-जंतु भूख से तड़पने लगे. तब देवताओं ने माता से प्रार्थना की. लोककथाओं के अनुसार माता ने सहारनपुर की पहाड़ियों में अवतार लिया और सब्जी, फल, अन्न और कंद-मूल उगाकर समस्त जीवों को जीवनदान दिया. तभी उन्हें शाकंभरी कहा गया. यानी शाक और अन्न प्रदान करने वाली देवी.

हरी सब्जियों और अन्न से है धाम की पहचान

लोग माता को अन्नपूर्णा और जीवनदायिनी कहकर बुलाते हैं. मंदिर के गर्भगृह में माता शाकंभरी देवी अपने दैवीय स्वरूप में विराजमान हैं. उनके साथ माता शताक्षी, भ्रामरी और भीमा देवी की भी पूजा होती है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां दर्शन से अन्न, धन और संतान की प्राप्ति होती है. अन्य शक्तिपीठों में जहां मिठाई या फल चढ़ाए जाते हैं, वहीं शाकंभरी धाम की पहचान हरी सब्जियों और अन्न से है.

ऐसा इसलिए क्योंकि माता ने अकाल के समय इन्हीं से समस्त जीवों को जीवन दिया था. लोकमान्यता है कि जब असुरों ने तप कर देवताओं को भयभीत किया और अन्नजल छीनकर मानवता को संकट में डाल दिया, तब माता ने अपना भयानक रूप धारण किया. पहाड़ियों की गूंज से धरती कांप उठी और उनकी तेज गर्जना से असुर भयभीत हो गए.

संसार को पुनः समृद्धि प्रदान की

माता ने प्रचंड शक्ति से युद्ध कर असुरों का संहार किया और संसार को पुनः समृद्धि प्रदान की. इसी कारण उन्हें शक्ति स्वरूपिणी और राक्षस संहारिणी कहा जाता है. शाकंभरी धाम में माता को प्रसाद स्वरूप हरी सब्जियां और अन्न अर्पित किए जाते हैं. इसके साथ ही श्रद्धालु नारियल, चुनरी और चांदी का छत्र भी चढ़ाते हैं. मान्यता है कि इन भेंटों से माता प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार पर संकट नहीं आता.

भक्त मानते हैं कि इस प्रसाद से उनकी झोली सुख-समृद्धि से भर जाती है. माता के दर्शन से पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करना अनिवार्य है. वे मंदिर के द्वारपाल और रक्षक माने जाते हैं. सहारनपुर की लोककथाओं और लोकगीतों में भूरा देव को माता के सच्चे प्रहरी के रूप में वर्णित किया गया है. माता शाकंभरी धाम पहुंचने से करीब डेढ़ किलोमीटर पहले उनका मंदिर स्थित है.

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में लगता है विशाल मेला

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है. लाखों श्रद्धालु उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान से पहुंचते हैं. किसी की यात्रा पैदल होती है, तो कोई लेट-लेटकर माता के दरबार तक पहुंचता है. ढोल-नगाड़ों की गूंज, जयकारे और पहाड़ी रास्तों पर उमड़ती भीड़ इस धाम को अद्भुत वातावरण देते हैं.

मेले में पूजा-अर्चना के साथ लोकनृत्य, झूले और ग्रामीण उत्पादों की दुकानें भी सजती हैं, जो इस आयोजन को और रंगीन बनाती हैं. सदियों से सहारनपुर और आसपास के गांवों में माता शाकंभरी देवी को कुलदेवी माना जाता है. किसी परिवार में नया घर बनना हो, विवाह हो या कोई बड़ा उत्सव- सबसे पहले माता की पूजा की जाती है.

नवरात्रि के समय लाखों श्रद्धालुओं की भीड़

लोगों का विश्वास है कि माता का आशीर्वाद मिलने से वंशवृद्धि होती है और परिवार पर संकट नहीं आता. नवरात्रि के समय लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन और मंदिर समिति विशेष इंतजाम करती है. पुलिस बल की तैनाती, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मेडिकल कैंप, भोजन-पानी और अस्थायी रुकने की व्यवस्था, साथ ही साफ-सफाई और रोशनी पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

माता शाकंभरी धाम तक पहुंचने के लिए यूपी और उत्तराखंड की रोडवेज बस सेवाएं उपलब्ध हैं. निकटतम रेलवे स्टेशन सहारनपुर जंक्शन है. बस सेवाएं- सहारनपुर, हरिद्वार, देहरादून और दिल्ली से सीधी. निजी वाहन से-सहारनपुर से शाकंभरी देवी मंदिर तक बेहट होते हुए शाकंभरी देवी जाया जा सकता है.

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