पहले डिमोशन, अब कानपुर के करोड़पति लेखपाल आलोक दूबे की बढ़ीं मुश्किलें, लिया गया नया एक्शन

कानपुर में करोड़पति कानूनगो मामले में पुलिस ने बड़ी कार्यवाही करते हुए कानूनगो समेत 7 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है. इसमें एक महिला लेखपाल भी शामिल है. आरोपी कानूनगो आलोक दुबे को डीएम ने पहले ही डिमोशन करके लेखपाल बना दिया है. अब सभी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने के बाद राजस्व विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. जिले में जमीन विवाद से जुड़ा एक बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ था, जिसमें कानूनगो से डिमोट करके लेखपाल बने आलोक दुबे समेत सात लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में चार्जशीट दाखिल की गई है.
मामला करोड़ों रुपये की भूमि की फर्जी रजिस्ट्री और दानपत्र से जुड़े षड्यंत्र का है, जिसमें बिल्डर और राजस्व कर्मियों की सांठगांठ सामने आई है. पुलिस जांच के बाद आरोप पत्र संख्या 158/2025 न्यायालय में दाखिल किया गया. आरोपितों में राजपति देवी, राजकुमारी देवी, रघुवीर सिंह, अरुण सेंगर उर्फ अमन सेंगर, RNG इंफ्रा के भागीदार अमित गर्ग, तत्कालीन लेखपाल अरुणा द्विवेदी और तत्कालीन कानूनगो आलोक दुबे शामिल हैं.
मामला कैसे शुरू हुआ
यह विवाद सचेंडी थाना क्षेत्र के कला का पुरवा से जुड़ा है. निवासी संदीप सिंह ने तहरीर देकर आरोप लगाया कि स्व. गंगा सिंह के हिस्से की भूमि पर फर्जी रजिस्ट्री कराई गई. वादी की मां मोहनलाल उर्फ लाल साहिबा ने पहले ही अपने पति के हिस्से की जमीन का कुछ भाग वसीयत और कुछ भाग दानपत्र के माध्यम से हस्तांतरित कर दिया था. इसके बावजूद राजपति देवी और राजकुमारी देवी ने संपूर्ण भूमि पर दावा करते हुए रजिस्ट्री करा ली.
नहीं हुआ चैक से भुगतान
शेष भूमि RNG इंफ्रा के भागीदार अमित गर्ग के नाम रजिस्टर्ड अनुबंध से हस्तांतरित की गई. जांच के दौरान यह भी सामने आया कि रजिस्ट्री में जिन चेक नंबरों का उल्लेख किया गया, उनका भुगतान कभी हुआ ही नहीं. विवेचना से स्पष्ट हुआ कि तत्कालीन कानूनगो आलोक दुबे और तत्कालीन लेखपाल अरुणा द्विवेदी ने यह जानते हुए भी कि विवादित भूमि खतौनी में राजपति और राजकुमारी के नाम दर्ज नहीं है, फर्जी दस्तावेज तैयार कराए.
उन्होंने न्यायालय को धोखे में रखकर नाम चढ़ाने का आदेश कराया और उसी दिन रजिस्ट्री भी कराई. अपर जिलाधिकारी (वि/रा) की त्रिस्तरीय जांच रिपोर्ट में दोनों पर अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप सिद्ध हुआ. विवेचक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह अपराध लोक सेवकों द्वारा पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में नहीं बल्कि निजी स्वार्थ के लिए किया गया, इसलिए अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है.
DM ने कानूनगो का किया डिमोशन
पूरे मामले में गवाहों के बयान, घटनास्थल निरीक्षण, वसीयतनामा, दानपत्र, खतौनियां, बैंक स्टेटमेंट समेत कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया. जांच से स्पष्ट हुआ कि विक्रेताओं को कोई वास्तविक धन नहीं दिया गया और रजिस्ट्री में अंकित चेकों का भुगतान नहीं हुआ. इससे इस पूरे प्रकरण में षड्यंत्र और कूट रचना की पुष्टि हुई. विशेष बात यह है कि इस मामले में संलिप्त आलोक दुबे को जिलाधिकारी ने पहले ही डिमोशन देकर कानूनगो से लेखपाल बना दिया था.
अवैध संपत्ति की होगी जांच
इसके अलावा, विजिलेंस विभाग आलोक दुबे की अलग से जांच कर रहा है, जिसमें उनकी करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति के संकेत मिले हैं. यह तथ्य मामले को और गंभीर बना देता है. सभी आरोपितों को भारतीय न्याय संहिता की धाराओं 318(4), 338, 336(3), 340(2), 61(2), 352 और 351(3) के तहत अभियोग पाया गया है. पुलिस ने इन धाराओं के तहत गंभीर अपराध के साक्ष्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए हैं. अब आरोपी न्यायालय में अभियुक्त के रूप में पेश होंगे.
इसी साल दर्ज हुई थी FIR
जिलाधिकारी के निर्देश पर ही मार्च 2025 में इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई थी. प्रशासन का दावा है कि भूमाफिया, बिल्डर और भ्रष्ट राजस्व कर्मियों के गठजोड़ पर यही सख्ती आगे भी जारी रहेगी. यह मामला प्रदेश में भूमाफिया और राजस्व विभाग के भ्रष्टाचार की मिलीभगत का ताजा उदाहरण है, जो यह साबित करता है कि फर्जी रजिस्ट्री और दस्तावेजों के जरिए जमीन कब्जाने की संगठित कोशिशें अब प्रशासन के रडार पर हैं.
डीएम जितेंद्र प्रताप ने कहा कि सरकारी पद पर रहते हुए यदि कोई व्यक्ति भू-माफियाओं या बिल्डरों से मिलीभगत करता है तो वह कतई बख्शा नहीं जाएगा. ऐसे मामलों में न केवल विभागीय कार्यवाही होगी, बल्कि आपराधिक मुकदमे दर्ज कर विधि अनुसार सख्त कार्रवाई सुनिश्चित कराई जाएगी.




